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अबरस
१२०
अबाध
वि० दे० (अ+बरन-जलन ) जलन अबवाब-संज्ञा, पु० (१०) मालगुजारी जिसमें न हो, लपट-रहित अग्नि । पर लगने वाला सरकारी कर विशेष, अधिक संज्ञा, पु. ( सं० आवरण ) ढकना, आच्छा- कर, अतिरिक्त कर। दित करने वाला, ऊपर का ढक्कन । | अवा-संज्ञा, पु. (अ.) अंगे से नीचा अबरस-संज्ञा, पु० (फा०) सब्ज़ रंग से एक ढीला-ढाला वस्त्र विशेष, अचला, कुछ खुलता हुश्रा, घोड़े का एक सफ़ेद रंग,
__ चोगा, चुगा। इसी रंग का घोड़ा।
अषाक-क्रि० वि० दे० (सं० अवाक् ) अबरा-संज्ञा, पु. ( फा० ) · अस्तर' का
स्तब्ध, बिना बोले, हक्का-बक्का, (दे०) उलटा, दोहरे वस्त्र के ऊपर का पल्ला,
शून्य, वाणी शून्य । उपल्ला (दे० ), उपल्लो (दे०)। ऊपर | अबाज ----संज्ञा, स्त्री० दे० ( अ० आवाज़ ) का, न खुलने वाली गाँठ, उलझन ।
आवाज़, शब्द। वि० स्त्री० (सं० अ+वर-श्रेष्ठ ) अश्रेष्टा, अवात-वि० ( सं० ) निर्वात, वायु-हीन, जो उत्तम न हो, (हि. अ--वर ) बर या दे० ( अ-- बात ) वार्तालाप-रहित, बिना पति-विहीना।
बात के। श्रबरी-संज्ञा, स्त्री० (फा० अब ) एक प्रकार
अँबात--दे० (हि. अवाना समात, का धारीदार चिकना कागज, पच्चीकारी के
| समाना, अटना। काम में आने वाला एक प्रकार का पीला अबाती -- वि० (सं० अ-बात ) बिना पत्थर, एक प्रकार की लाह की रंगाई। वायु का, जिसे वायु न हिला सके, भीतर यौ० ( हि० अब---री) वि० दे० ( अ--बरी | ही भीतर सुलगने वाला । ----जली) विवाही हुई )।
वि० दे० (हि० अ-बाती ) बाती या अबरू-संज्ञा, स्त्री० (फा० ) भौंह, भ्रू
बत्ती रहित ( दीपक ) । (दे०), (फा० आबरू ) इज्ज़त, मान
अयातुल-- वि० ( पं० ) जो बकबादी मर्यादा ।
न हो। अबल-वि० (सं० ) निर्बल, कमज़ोर,
अबादान--- वि० (अ० अावाद ) बसा हुआ, दुर्बल, कृष, बल-रहित ।
पूर्ण, भरा-पूरा। स्त्री० अबला।
प्रधादानी-संज्ञा, स्त्री० (फा० अबादानी) संज्ञा, स्त्री० अबलता।
पूर्णता, बस्ती, शुभचिंतकता, चपल-पहल, अबलख-वि० दे०(सं० अवलक्ष ) सफ़ेद । रौनक ।
और काले, या सफ़ेद और लाल रंग का, अबादी -संज्ञा, स्री. (अ. श्राबादी ) कबरा, दोरङ्गा ।
श्राबादी, बस्ती, जन-संख्या, गाँव, बस्ती। अबलखा-संज्ञा, पु० दे० ( सं० अवलक्ष ) | वि० ( दे० ) जो बादी या वायु ( बात ) एक प्रकार का काला पक्षी।
कारक न हो। अबला-संज्ञा, स्त्री० (सं० ) स्त्री, औरत, अबाध-वि (सं० ) बाधा-रहित, बेरोक, नारी, बल हीना।
निर्विघ्न, अपार, अपरिमित, बेहद, जो भा० संज्ञा, स्त्री० अबलता।
असङ्गत न हो। दे० वि० अबली (हि. ) जो बली या | “सँग खेलत दोउ झगरन लागे, सोभा बलवान न हो।
बड़ी अबाध "-सूर०
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