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सूत्रस्थान भाषाटीकासमेत ।
द्वितीयोऽध्यायः ।
उत्तर स्थान के अध्याय । | इत्यध्यायशतं बिशंषभिः स्थानैरुदीरितम्४८ बालोपचारे तद्वयाधौ तट्टहे द्वौ च भूतगौ | इस तरह सूत्रस्थान, शारीरस्थान, निदान उन्मादेऽथ स्मृतिभ्रंशे द्वौ द्वौद्मसु सन्धिषु | स्थान, चिकित्सितस्थान, कल्पस्थान और दृक्तमोलिङ्गनाशेषु त्रयो द्वौ द्वौ च सर्वगौ । उत्तरस्थान इन छः स्थानोंमें १२० अध्याय है । फर्णनासामुखशिरोवणे भग्ने भगन्दरे ॥४६॥ ग्रन्थ्यादौ क्षुद्ररोगेषु गुह्यरोगे पृथग्द्वयम् ॥ इति श्री अष्टाङ्गहृदये भाषाटीकायाँ विषे भुजङ्गे कोटेषु मूषकेषु रसायने ॥४॥
प्रथमोऽध्यायः । चत्वारिंशोऽनपत्यानामध्यायो बीजपोषणः।
(१) बालोपचरणीय २ बालामयप्रतिषेध ३ बालग्रहप्रतिषेध ४ भूतविज्ञान ५ भूतप्रति षेध ६ उन्मादप्रतिषेध ७ अपस्मारप्रतिषेध ८ वर्मरोगविज्ञानीय ९ वर्मरोगप्रतिषेध १. संधिसितासितरोगविज्ञानीय११संधिसि- अथातो दिनचर्याध्यायं व्याख्यास्यामः ॥ तासितप्रतिषेध १२ दृष्टिरोगविज्ञानीय १३
अब हम यहांसे दिनचर्यानामक अध्यातिमिरप्रतिषेध १४ लिंगनाशप्रतिषेध १५ यका व्याख्यान करग, इस तरह आत्रयादक सर्वाक्षिरोगविज्ञान १६ सर्वाक्षिरोगपतिषेध महर्षि कहने लगे।
महाष कहन लग १७ कर्णरोगविज्ञानीय १८ कर्णरोगप्रतिषेध उठनेका समयादिनिरूपण १९ नासारोगविज्ञानीय २० नासारोगप्रति ब्राह्म मुहूर्ते उतिष्ठेत् स्वस्थो रक्षार्थमायुषः। षेध २१ मुखरोगविज्ञानीय २२ मुखरोग- |
शरिचिन्तां निर्वर्त्य कृतशोधविधिस्ततः१ प्रतिषेध २३ शिरोरोगविज्ञानीय २४ शिरो
निरोग मनुष्यको उचित्त है कि ब्राह्म *
मुहूर्त, अर्थात् चार घडी रात्रिरहेसे दो घडी रोगपतिय २६ व्रणविज्ञानीय प्रतिषेध २६
रात्रि रहेतक अपनी आयुकी रक्षाके लिये सदा सद्योत्रणप्रतिषेध २७ भंगप्रतिषेध २८
उदै, पीछे जीर्ण और अजीर्ण निरूपण आदि भंगदरप्रतिषेध २९ ग्रंथ्यर्बुदश्लीपदापीना
शरीर चिंतासे निवृत होकर मूत्र और मल डीविज्ञान ३० क्षुद्ररोगविज्ञान ३१ क्षुद्ररोग
आदिके त्यागकी विधि करैः समदोष सम प्रतिषेध ३२ गुह्यरोगविज्ञान ३३ गुह्यरोग
अग्नि समधातु मल क्रियावाले पुरुषको स्वस्थ प्रतिषेध ३४ विषप्रतिषेध ३५ ग्रंथ्यर्बुदश्ली
कहते हैं ॥१॥ पदापचीनाडी प्रतिषेध ३६ सर्पविषप्रतिषेध ३७ कीटलूतादिविषप्रतिषेध ३८ मूषिकाल- ४ (नोट) जब पिछली चार घडी रात
विषप्रतिषेध ३९ रसायन, और ४ • वाजी- | रह जाती है उसे ब्राह्ममुहूर्त कहते हैं क्यों करणअध्याय । इस तरह ये चालीस अध्याय
कि यह समय ब्रह्मके ध्यानकरने तथा वेदा
ध्ययन करनेका होता है एक मुहूर्त में उत्तरस्थान में है।
दोघडी होती है।
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