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१४३६).
अष्टांगहृदय ।
प्र० १५
अर्थ-श्रोत्रादि इन्द्रियों में कुपित वायु अनिद्रा, स्तब्धता और वेदना उत्पन्न इन्द्रियों का नाश करता है । त्वचा में | करता है। प्रविष्ट होकर त्वचा को फाड डालता है
शुक्रगत वायु। और रूक्ष करदेता है।
शुक्रस्य शीघ्रमुत्सर्ग सङ्गम् विकृतिमेव च ।
तदर्भस्य शुक्रस्था रक्त के उपद्रव॥
____अर्थ -शुक्रगत कुपितवायु वीर्य और रक्तेतीबारुजःस्वायं तापं रोगविवर्णताम् । गर्भ का शीघ्र पतन, निबंध और विकृति अरूंप्यनस्य विष्टंभमरुचि कशता भ्रमम् १० अर्थ-जब दूषित वायु रक्त में चला
करता है ।
सिरागत वायु । जाता है तब तीन यंत्रणा, स्पर्श का अज्ञान
सिरास्वाध्मानरिक्तते ॥१३॥ ताप, रोग, विवर्णता, अरूपि ( पिटिका ) तत्स्थः अन्नकी विष्टंभता, अरुचि, कृशता और भ्रम । अर्थ-सिरागत वायु सिराओं में आध्मान ये उपद्रव होते हैं।
और रिक्तता करता है। . मांसभेदोगत वायु के उपद्रव ॥
स्नायुगत वायु । मांसदोगतो ग्रंथीस्तोदोद्यान कर्कशान्- नावस्थितः कुर्याद्ध्रस्यायामकुजता ।
_ भ्रमम् ।। अर्थ--स्नायुगत होने पर वायु प्रधूसी, गुर्वगं चातिरुपस्तब्धमुष्टिदंडहतोपमम् ॥ आयाम और कबडापन इन रोगों को - अर्थ-कुपित वायु के मांसगत और | करता है। भेदोगत होने पर तोदादि वेदनायुक्त कर्कश
संधिगत वायु । ग्रंथियां होजाती हैं, तथा भ्रम, देहमें भारा वातपूर्णहातिस्पर्श शोफम् संधिगतोऽमिल: पन, अत्यन्त वेदना, स्तब्धता, और लाठी | प्रसारणाऽऽकुंचनयोः प्रवृत्तिं च सवेदनाम् । वा मुष्टिकी चोट के समान आहत होताहै। अर्थ--संधिगत वायु भरी हुई मशक के अस्थिगत वायु ॥
समान सूजन, तथा पसारने और सकोडने अस्थिस्थः सक्थिसध्यस्थिशलं तीनं
में वेदना करता है। बलक्षयम्।
सर्वांगगत वायु। . अर्थ-अस्थिगत कुपित वायु, सक्थि,
| सर्वांगसंश्रयस्तोदभेदस्फुरणभञ्जनम् १५॥ संधि और अस्थि में तीन झूल उत्पन्न करके
स्तंभमाक्षेपणं स्वापं संध्याकुंचनकंपनम् ।
अर्थ--सर्वागगतवायु सूचीवेधवत् पीडा बल को क्षीण करदेता है।
भेदन, स्फुरण ( फडकन ) भंजन, स्तब्धता मज्जागत वायु।
आक्षेप, स्पर्श का अज्ञान, संधि का आमज्जस्थोऽस्थिषु सौषियमस्वप्नम्
कुंचन और कंपन करता है। स्तब्धतां रुजम् ॥ १२॥
धमनीगत वायु । अर्थ-मज्जागत वायु अस्थियों में छिद्र, यदा तु धमनीः सर्वाः कुद्धोऽभ्येति
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