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अर्थ- - अब हम यहां वमन, हृदयरोग तृष्णा चिकित्सितनामक अध्याय की व्याख्या करेंगे
अष्टांगहृदय |
मनमें लंघनादि । "आमाशयोक्लेशभवाः प्रायश्छद्य हितं ततः लंघनं प्रागृते वायोर्वमनं तत्र योजयेत् । १ । बलिनो बहुदोषस्य वमतः प्रततं बहु ।
अर्थ - आमाशय के उत्क्लेश से ही प्रायः सब प्रकार के वमन रोगों की उत्पत्ति है, इसलिये वमन रोग में सबसे पहिले लंघन कराना चाहिये । परंतु वातजनित वमन में लंघन कराना उचित नहीं है क्योंकि लंघन से वायु प्रकुपित होजाता है, लंघन करने पर भी यदि वमन का वेग शांत नहो और रोगी वलवान हो तो वमनकारक औषधोंका प्रयोग करना चाहिये । अथवा जो रोगी वातादि बहुत से दोषों से आक्रांत हो और निरंतर बहुत परिमाण में वमन करता हो तो भी वननकारक औषध देना चाहिये
बमनरोग में विरेचनविधि | ततो विरेकं क्रमशो हृद्यं मद्यैः फलांबुभिः ॥ क्षीरैर्वा सह सह्यर्ध्वगत दोषं नयत्यधः । शमनं चौषधं रूक्षदुर्बलस्य तदेव तु ॥ ३ ॥
अर्थ- - वमन कराने के पीछे क्रमसे विरे - चक औषधियों का प्रयोग करना चाहिये ये विरेचक औषधें हृदयको हितकारी हों तथा
दि मय और द्राक्षादि फलों के रस अथवा गौके दूध के साथ देना चाहिये, ऐसा करने से ऊपर का प्रवृत्त हुआ दोष नीचे को आने लगेगा | रूक्ष और दुर्बल रोगी को शोधन अर्थात् वमनविरेचन न देकर |
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अ० ६
संशमन औषधे देना चाहिये क्योंकि वह शोधन को नहीं सह सकता है । मनरोग में पथ्यविधि |
परिशुष्कं प्रियं सात्म्यमनं लघु च शस्यते । उपवासस्तथा यूषा रसाः कांबलिकाः खलाः शाकानि लेहभोज्यानि रागखांडवपानकाः भक्ष्याः शुष्का विचित्राश्च फलानि स्नानघर्षणम् ॥ ५ ॥ गंधाः सुगंधयो गंधफलपुष्पान्नपानजाः । भुक्तमात्रस्य सहसा मुखे शीतांबुसेचनम् ॥ अर्थ-स - सब प्रकार के वमन रोगों में सूखा हुआ, प्रिय सात्म्य और लघुपाकी अन्न हित होता है । तथा उपवास, यूष, रस, कांगलिक खल, लेह्य और भोज्य पदार्थ शाक, राग, खांडव, पीनेके, अनेक प्रकार के सूखे खाद्य पदार्थ; अनेक प्रकार के फल, उबटना, अनेक प्रकार के सुगंधित द्रव्य, सुगंधित फल, फूल अन्न, पान तथा भोजन करतेही बिना जाने मुखपर ठंडे जलके छींटे मारना ये सब वमन रोग के सामान्य उपचार हैं ।
वातज वमन का उपचार । हंति मारुतजां छर्दि सर्पिः पतिं ससैंधवम् । किंचिदुष्णं विशेषेण सकासहृदयद्रवाम् ॥ व्योषत्रिलबणाद्यं वा सिद्धं वा दाडिमांबुना सशुंठीदधिधान्येन शत तुल्यांबु वा पयः ॥ व्यक्त सैंधवसर्पिर्वा फलाम्लो वैष्किरो रसः स्निग्धं च भोजन शुंठीदधिदाडिमसाधितम् कोष्णं सलवणं चात्र हितं स्नेहविरेचनम् ।
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अर्थ-सेंधानमक मिलाकर ईषदुष्ण घृत अथवा त्रिकुटा और त्रिलवणान्वित ( सेंधाकाला और सांभर नमक ) घृत अथवा दाडिम के काथमें पकाया हुआ घी. अपवा