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भ० २४
उत्तरस्थान भाषार्टीकासभेत ।
(८६१)
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भावना दे लेवे। फिर इनको पीसकर किसी
अन्य प्रयोग। लोहे के पात्र पर लीपदे, इस पात्रको धूप तिलाः सामलकाः पद्मकिंजल्कोमधुकं मधु॥ में गरम करले । ऐसा करने से जो तेल वृहयेच्च रजेच्चैतत् केशान्मूर्धप्रलपनात् । निकले, उसको नस्य द्वारा ग्रहण करे ।
अर्थ-तिल, आमला, पद्मकेशर,मुलहटी इमसे पलित जाता रहता है इस पर दूध
और शहत इन सब द्रव्यों का लेप लगाने का पथ्य करना चाहिये।
से केश बढ जाते हैं और उन पर रंग चढ अन्यनस्य ।
जाता है। क्षीरात्सहचराद ,गरजसः सौरसादसात् केशवधन प्रयोग। प्रस्यैस्तैलस्य कुडवः सिद्धा यष्टीपलान्वितः॥ मांसीकुष्टतिला:कृष्णाःसारिवानीलमुत्पलम् नस्थं शैलोद्भवे भांडे शंग मेषस्य वा स्थितः ! क्षौद्रं च क्षीरपिष्टानि केशसंवर्धन परम् । अर्थ-दूध, नीलकुरंटा, भांगरा और
____ अर्थ-जटामांसी, कूठ, कालेतिल, अनतुलसी हरएक का रस एक प्रस्थ, तेल एक
न्तमूल, नीलकमल और शहत इन सब द्रव्यों कुडव, मुलहटी एक पल इन सबको पाक को दूध में पीसकर मस्तक पर लेप करने विधि से पकावै । फिर इस तेल को किसी से बाल बढते हैं । पत्थर के पात्र में रखदे। अथवा मेंढे के
पलित में चर्णादिक। सींग के पात्र में रक्खे । इस तेल का नस्य अयोरजो गरजस्त्रिफला कृष्णमृत्तिका ॥ लेने से पलित का नाश होजाता है।
। स्थितीमधुरस मासं समुल पलित रजेत् ।
अर्थ-लोहेका चूर्ण, भांगरा, त्रिफला, अन्य प्रयोग।
कालीमिट्टी इन सब द्रव्यों को एक महिने क्षीरेण श्लक्ष्णपिष्टौ वा दुग्धिकाकरवीरको॥
तक ईखके रसमें पड़ा रहने दे | इसका लेप उत्पाठ्य पलित देयावाशय पलितापही।
करने से पलित केश जडसे काले पड जाते हैं अर्थ-दृध और कनेर को दूध में घोट
अन्य प्रयोग। डाले, फिर सफेद बालों को नौचकर उनकी
माषकोद्रवधान्याम्लयवागूस्लिदिनोषिता। मडपर ऊपर वाले द्रव्यका लेप करे, इससे
लोहशुक्लोत्करा पिष्टा बलाकामपि रंजयेत् । पलित रोग जाता रहता है।
अर्थ-उरद, कोदों और कांजी से ब. अन्य लेप।
नाई हुई यवागू को तीन दिन रक्खी रहने क्षीरं प्रियालंयष्टयाबंजीवनीयोगणस्तिलाः | दे । इसका लेप करने से सफेद बगला भी कृष्णाः प्रलेपो वक्त्रस्य हरिल्लोमवलीहितः
काला पड़ जाता है, इससे यदि सफेद बाल .. अर्थ-चिरोंजी, मुलहटी, जीवनीयगण
काले हो जाय तो कोई संदेह की बात नहीं है के द्रव्य, और काले तिल इन सबको दूध शिरोरोगनाशक तेल । में पीसकर मुख पर लेप करना चाहिये । प्रपौडरीकमधुकापप्पलीचंदनोत्पलैः॥ यह हरिद्रोम और बलीरोग में हितकारीहै। सिद्धं धात्रीरसे तैलं नस्पेमाभ्यंजमेन ।
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