Book Title: Ashtangat Rudaya
Author(s): Vagbhatta
Publisher: Kishanlal Dwarkaprasad

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Page 1068
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir म. ३९ उत्सरस्थान भाषाटीकासमेत । (९७१) . लिये कुटीप्रवेश विधि हित है । इनसे अति- | कार करता है । इसी तरह हरड को घी में रिक्त व्यक्तियों के लिये घातासप विधि | तलकर खानेवाला और उस घी को पीन उत्तम होती है। वाला सबल और दृढ हो जाता है । वातातपविधि । जराविकारनाशकलेह । यातातपसहा योगावक्ष्यतेऽतो विशेषतः । धात्रीरसक्षौद्रसिताघृतानि मुखोपचारा दंशेऽपि ये न देहस्य बाधकाः | हिताशनानां लिहतां नराणाम् । । अर्थ-अब यहांसे वातातप योग की प्रणाशमायांति जराविकारा विधि विशेषरूप से वर्णन की जाती है। ग्रंथा विशाला इव दुगृहीताः॥१४९ ।। इस योग में किसी प्रकार का कष्ट नहीं | अर्थ-अच्छी तरह न पढे हुए जैसे बडे . होता है । इसमें व्यापत्ति होने परभी शरीर ग्रंथ भूले जाते हैं वैसे ही पथ्य से रहने को किसी प्रकार की हानि नहीं होती है । वाले के वुढापे से उत्पन्न हुई सब व्याधियां ठंडेजल का पीना। आमले का रस, शहत, चीनी और घी पान शीतोदकं पयः क्षाद्रं घृतमेकैकशी द्विशः। करने से नष्ट हो जाती है। तारुण्यादि कारकयोग । विशः समस्तमथवाप्राकू पीतं स्थापयेद्वयः ___ अर्थ-ठंडा जल, दूध, शहत, घी इन धात्रीकृमिघ्नासनसारचूर्ण । सतैलसपिमधुलोहरणु में से एक एक अथवा दो दो अथवा तीन निषेवमाणस्य भवेन्नरस्य तीन अथवा सब मिलाकर भोजन से पहिले तारुण्यलावण्यमविप्रणष्टम् ॥ १५० ॥ पीना वय को स्थापन करने वाला है। अर्थ- जो मनुष्य आमला, बायविडंग, हरीतकी सेवन । असनसार चूर्ण, तेल, घी, शहत और लोह, गुडेन मधुना शुठ्या कृष्णया लवणेन वा। चूर्ण को मिलाकर सेवन करता है उसकी द्वे द्वे खादन् सदा पथ्ये जीवेद्वर्षशतं सुखी॥ गई हई युवावस्था, और नष्ट हुआ लावयय . अर्थ-गुड, शहत, सोंठ, पीपल और फिर पैदा हो जाता है । सेंधानमक इनमें से किसी के साथ दो दो बलकारक अबलेह । हरड का प्रतिदिन सेवन करने से मनुष्य लोहं रजो वेल्लभबं च सर्पिः सुखपूर्वक सौ वर्ष तक जी सकता है। क्षौद्रद्रुतं स्थापितमन्दमात्रम् । अन्य प्रयोग । सामुद्ग के वीजकसारलप्ते हरीतकी सर्पिषि संप्रताप्य लिहन् बली जीवति कृष्णकेशः ॥ .. समनतस्तत् पिवतो घृतं च। अर्थ-लोह और वायविडंग के चूर्णको भवेचिरस्थायि वलं शरीरे घी और शहत में सानकर बरस दिन तक सकृत् कृतं साधु यथा कृतज्ञे ॥ १४॥ | बिसार के संपुट में रक्खे, फिर इसके अर्थ-कृतज्ञ के साथ में उपकार करने | सेवनसे मनुष्य बलवान और काले बालों से जैसे यह बहुत दिन तक कृतज्ञता स्वी- [ वाला होकर दीर्घकाल तक जीता है। For Private And Personal Use Only

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