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(९८२)
मष्टांगहृदय ।
अ. ४०
अक्ष्यामयेषु त्रिफला गुडूची । संयोगज विषमें सुवर्णास्थौल्यरोगमें रसौत | वातास्ररोगे मर्थित ग्रहण्याम् । । कृमिरोग में वायबिडंग । शोषरोग में सुरा, कुष्टेषु सेव्यः खदिरस्य सारः । सर्वेषु रोगेषु शिलाह्वयं च ॥ ५० ॥ ।
बकरी का दूध और बकरे के मांस का उन्माद तमनव शोक मद्यविसस्मृतिबाली अनुपान | नेत्ररोग में त्रिफला । वातरक्तनिद्रानाश क्षीरं जयतिरसाला प्रतिश्यायम् रोग में गिलोय । ग्रहणीरोग में निर्जल मांसं काय लशुनः प्रभंजनं स्तब्धगात्रता. | मठा । कुष्ठरोग में खैरसार । सबै प्रकार
स्वेदः।
रोग में शिलाजीत । उन्माद में पुराना घी, गुडमंजर्याः खपुरो नस्यां स्कंधांसवाहुरुजम | नवनीतखंडमर्दितमौष्ट मूत्रं पयश्च हंत्युदरम
शोक और मद्य । अपस्मार में ब्राह्मी शाक, नस्यं मधविकारानविद्रधिमचिरोत्थमनवि
निद्रानाश में दूध । प्रतिश्यायरोग, रसाला, नाबः॥
कशरोग में मांस । वातरोग में लहसन । नस्यकेवलमुखजांनस्यांजनतर्पणानिनेत्ररुजः स्तब्धगात्रता में स्वेद । कंधेकी जकडन बृद्धत्वं क्षीरघूते मूर्थी शीतांवुमारुतच्छायाः |
और वाहुवेदना में काले सेमर के गोंद का समशुक्ताईकमात्रा मंदे वह्रौश्रमेसुरास्नानम् दुःखसहत्वे स्थैर्ये व्यायामो गोक्षुरहितःकृच्छे | नस्याअचिरोत्पन्न विद्रधिरोग में रक्तमोक्षण। कासे निदिग्धिका पार्श्वशूले पुष्करजा जटा। मुखजरोग में नस्य और कवल । नेत्ररोग वयसः स्थापने धात्री त्रिफला गुग्गुलुबणे ॥ में नस्य, अंजन और नेत्रतर्पण । वुढापे में बस्तिर्वातविकारान्
दूध और घी । मूीरोग में शीतलजल, पैत्तान् रेकः कफोद्भवान् बमनम् । क्षौद्रं जयति वलास
| वायु और छाया । अग्निमांद्य में समानभाग सपिः पित्तं समीरणं तैलम् ॥ ५७ ॥ शुक्त और अदरख । परिश्रम में सुरापान इत्यग्यं यत्प्रोक्तं रोगाणामौषधंशमायालम् । स्नान । दुखके सहसकने और स्थिरतामें तद्देशकालवलतो विकल्पनीयं यथायोगम् ॥
व्यायाम । मूत्रकृच्छ्र में गोखरू । खांसी में अर्थ-ज्वरमें नागरमोथा और पित्तपा.
कटेरी । पार्श्वशूलमें पुष्कर मूल । वयःस्थापडा श्रेष्ठ है । तृषारोग में प्रतप्त मिट्टीके
पनमें आमला और त्रिफला । व्रण में गूगला ढेले को डालकर बुझा हुआ पानी पिलाना
वातरोग में वस्ति । पैत्तिकरोग में विरेचन। श्रेष्ठ है । यह तृषारोग की प्रधान औषध
कफजरोग में वमन | कफमें शहत । पित्तमें है । धमनरोग में धानकी खील । वस्ति
घत । और वातमें तेल । ये सबरोग रोगके रोगों में शिलाजीत । प्रमेह में आमला,हलदी और दारुहलदी, पांडुरोग में लोह, वातकफ
प्रति प्रधान औषध है । विज्ञवैद्यको उचित
| है कि देशकाल और बलकी विवेचना करके में हरड़ । प्लीहारोग में पीपल, उर:संधान
यथोपयुक्त योगों की कल्पना करे । लाख । विषरोग में सिरसीमंद और अनिल.
- अग्निवेश का प्रश्न । रोगमें गूगल । रक्तपित्त में अडूसा । अति
इत्यात्रेयादागमय्यार्थसूत्रं सार में कुडा । अशरोग में भिलावा । तत्सूक्तानां पेशलनिर्मितृप्तः ।
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