Book Title: Ashtangat Rudaya
Author(s): Vagbhatta
Publisher: Kishanlal Dwarkaprasad

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Page 1081
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (९८४) मष्टांगहदप । नियमाण अर्थात् असाध्य होचुके हैं उनका | यह षोडशामिका चिकित्सा दैवापराध से जीवन औषध से भी नहीं होसकता है। । कदाचित् सिद्ध नहीं होती है, इस पर भी उपायसाध्यों को सिद्धत्व । . जो उपाय जहां कहागया है वह वहां अनु. नापायमपेक्षते सर्वे रोगा न चान्यथा। पाय नहीं होसकता है । चिकित्सक, औषध, उपायसाध्या सिध्यति माहेतुहेतुमान् यतः परिचारक और रोगी ये चिकित्साके चार यदुक्तं सर्वसंपत्तियुक्तयापि चिकित्सया । पाद हैं और इनमें से हरएक के चार चार मृत्युभवति तन्नैवं नोपायेऽस्त्यनुपायता । गुण होते हैं । इसीको षोडषात्मिका चिकित्सा अर्थ-वे सव रोग जो असाध्य होतेहैं ने चिकित्सा की अपेक्षा नहीं करते हैं, कहते हैं, इसीको पहिले विस्तारपूर्वक वर्णन अधोत् चिकित्सा द्वारा उनका प्रतीकार | करचुक है ॥ नहीं होसकत्ता । किन्तु रोहिणी आदि रोग उक्तसिद्धांतका प्रतिपादन । कस्यासिद्धाऽग्नितोयादिस्वेदस्तभादिकर्मणि जो चिकित्सासाध्य होते हैं,उनकी चिकित्सा न प्रीणनं कर्शनं वा कस्य क्षीरंगवेधुकम् ॥ न करने पर किसीसे भी उनकी शांति नहीं | कस्य माषात्मगुप्तादौवृष्यत्वेनास्तिनिश्चयः हो सकती है, क्योंकि जो हेतु है वह किसी विण्मूत्रकरणाक्षेपौ कस्य संशयिती यवे ॥ विष कस्य जरां याति मंत्रतंत्रविवार्जतम् । तरह हेतुमान् नहीं हो सकता है । इसलिये का प्राप्तः कल्पतो पथ्यातेरोहिणिकादिषु तुम जो यह कहते हो कि चिकित्सा बिना __ अर्थ-किस पुरुष के स्बेदकर्म में अग्नि भी रोगकी शान्ति देखने में आती है, और स्तंभनादि कार्य में ठंडा जल असिद्ध और सर्वसंपत्तियुक्त चिकित्सा करने पर मृत्यु होते हैं ? दूध किस मनुष्य को पुष्ट नहीं होजाती है । तुम्हारा ऐसा हेतुवाद युक्ति करता है ! गवेधुक धान्य किसको कृश विरुद्ध है,क्योंकि उपायमें अनुपायता नहीं हो नहीं करता है ? उरद और केंचके बीजों सकती है । जिस युक्तिद्वारा जिसका जो | का पौष्टिक गुण किसको धृष्यत्व करने में उपाय कहागया है, वह उपाय किसी तरह । अनिश्चित है ? जौ के भोजन से मलमत्र भी उसका अनुपाय नहीं होसकता है, जैसे के उत्पादन और प्रवर्तन में किसको संशय है ? मंत्रतंत्रादि से रहित किसका विष शांत घटके कारणभूत मृतिका, दंड और चक्रादि होता है ? तथा रोहिणी आदि रोगों में पथ्य सामिग्री कभी घटके अनुपाय नहीं होसकते । के विना किसको कल्पता प्राप्त हुई है। हैं। इसी तरह चतुष्पात् चिकित्सा साध्यरोग | इसलिये चिकित्सा को निश्चित फल जानना का उपायही चिकित्सा है, अनुपाय नहींहै। चाहिये । इसका फल किसी तरह अनिश्चित दैववैगुण्य से सिद्धत्व न होना। नहीं हो सकता है तथा चिकित्साशास्त्र में मप्येवोपाययुक्तस्य धीमतो जातुचिकिया। भी किसी तरह काकदंत परीक्षा शास्त्रवत् न सिध्येहैववगुण्यान त्वियं षोडशात्मिका निष्फलारंभ नहीं है । अवश्यही इसका __ अर्थ-उपाययुक्त बुद्धिमान मनुष्यके भी | आरंभ सफल होता है । For Private And Personal Use Only

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