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उत्तरस्थान भाषाटीकासमेत ।
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चिकित्सातंत्रके फलत्वमें हेत् । तथा उत्पन्न हुए ज्वरादिक रोगों से. संत्रस्त अपि चाकालमरणं सर्वसिद्धान्तनिश्चितम् | मनुष्यों के लिये यह चिकित्सा शास्त्रही महतापि प्रयत्नेन वार्यतां कथमन्यथा ॥ सूत्ररहित रक्षासूत्र है । इसलिये चिकित्सा___अर्थ -संपूर्ण सिद्धान्तों से निश्चित अ.
शास्त्रको अवश्य पढ़ना चाहिये । काल मृत्यु भी चिकित्सा के सिवाय किसी
चिकित्साशस्त्र को अमृतत्व । महाप्रयत्न से भी निवारित नहीं हो सकती
एतत्तदमृत साक्षाजगत्यायासर्वर्जितम् । है अर्थात् अकालमृत्यु को भी चिकित्सा ही याति हालाहलस्वं च सद्यो दुर्भाजनसितम् निवारण कर सकता है।
अर्थ-यह चिकित्साशास्त्र मृत्युके जीतने ज्वस्में लंघनादिका शास्त्रसिद्ध होना। के लिये साक्षात् अमृतरूप है । वह अमृत तो चंदनाद्यपि दाहादौ रूढमागमपूर्वकम् । क्षीरसागरके मथनकाल में देवासुरके आयास शास्त्रादेव गतं सिद्ध ज्वरे लंघनवृंहणम् ॥ से उत्पन्न हुआथा यह आयास रहित है।किन्तु
अर्थ-शास्त्रके अनुकूल प्रयुक्त किये अयोग्य चिकित्सक के हाथ में यह अमृत भी जानेपर चंदनादि संपूर्ण औषध दाहादि को
हलाहलत्व को प्राप्त होता है, अर्थात् यह शांत कर देती हैं । इसीतरह आयुर्वेद के
बिषके समान मारात्मक होता है । अनुसार लंघन और वृंहण क्रियाओं से ज्वर. मिषकपाश का त्याग ॥ रोग की निवृत्ति हो जाती है। अक्षातशास्त्रसद्भावान् शास्त्रमात्रपरायणान्
चिकित्सा में संशयत्याग । त्यजेडूराद्भिषपाशान्पाशान्वयस्थतानिच चतुष्पाद्गुणसंपन्ने सम्यगालोच्य योजिते। अर्थ-जो चिकित्सक चिकित्सा शास्त्रके मा कृथा व्याधिनिर्घातं विचिकित्सा- सद्भावों को नहीं जानते हैं, जिन्हों ने शास्त्र ___ अर्थ-आयुष्कामीयाध्याय में कहे हुए |
|| का केवल पाठमात्र किया है और उसका
अनुष्ठान नहीं किया है उन यमपाशस्वरूप चिकित्सा के जो चार पाद वर्णन किये गये
भिषकों का सर्वथा त्याग कर देना चाहिये। हैं उन चारों पादों से युक्त चिकित्सा तथा
मुवैद्यों की भद्रता ॥ देश काल और पात्रके अनुसार जो चिकित्सा मिषजां साधुवृत्तानां भद्रमागमशालिनाम प्रयुक्त. की जाती है वह कदापि निष्फल नहीं अव्यस्तकर्मणां भद्रं भद्रं भद्राभिलाषिणाम् हो सकती है । इसमें संशय नहीं करना चाहिये
। अर्थ-शास्त्रार्थ के जाननेवाले, क्रियाकुशस्त्रको अकांडमृत्युषाश छेदनत्व।।
शल, हितकी कामना करनेवाले, साधुवृत एतद्धि मृत्युपाशानामकांडे छेदनं दृढम् । वैद्यों का सर्वदा कुशल होता है अर्थात् वे रोगोत्रासितभीतानां रक्षासूत्रमसूत्रकम् ॥ सर्वत्र कृत्कार्य होकर धन, मान, यश और
अर्थ-अकालमें जो ज्वरादिक मृत्युके | धर्मलाभ करते हैं और जो पुत्रमित्रादिरूप पाशस्वरूप उपस्थित होते हैं उनके छेदन के से संपूर्ण प्राणियों का कल्याण चाहते हैं, लिये यह चिकित्साशास्त्र दृढ छेदन है । उनका भी कल्याण होता है ।
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