Book Title: Ashtangat Rudaya
Author(s): Vagbhatta
Publisher: Kishanlal Dwarkaprasad

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Page 1073
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ( ९७६ ) www.kobatirth.org अष्टांगहृदय । अर्थ- जो मनुष्य सत्यवक्ता, कोचरहित, जितेन्द्रिय, शांत और सदाचाररत होता है उसको निरंतर रसायनरूप समझना चाहिये | रसायनसेवी के लक्षण ॥ गुणैरेभिः समुदितः सेवते यो रसायनम् । सनिवृत्तात्मा दीर्घायुः परश्रेह व मोदते । अर्थ - उक्त सत्यभाषणादि गुणवाला मनुष्य रसायन सेवन करे तो वह चित्त की वृत्तियों से निवृत्त और दीर्घायु होकर इस लोक और परलोक में परम सुख भोगता है। शास्त्रानुसारी रसायन । शास्त्रानुसारिणी चर्याचितज्ञाः पाश्र्ववर्तिनः बुद्धिरस्खलितार्थेषु परिपूर्ण रसायनम् । अर्थ - रसायन के परिपूर्ण होनेपर चेष्टा शास्त्रानुसारिणी होजाती है, पास बैठने वाले आदमियोंके मन की बात का बोध होजाता है और बुद्धिअर्थों के जानने में अस्खलित होजाती है । इति श्री अष्टांगहृदयसंहितायभाषाटीका न्वितार्या उत्तरस्थाने रसायनाध्यायनाम एकोनचत्वारिंशोऽध्यायः ॥ चत्वारिंशोध्यायः । -HOOOK अथातो वाजीकरणाध्यायं व्याख्यास्यामः अर्थ-अव हम यहां से वाजीकरण नामक अध्याय की व्याख्या करेंगे बाजीकरण औषधका फळ । वाजीकरणमन्विच्छेत्सततं विषयी पुमान् तुष्टिः पुष्टिरपत्यं च गुणवतत्र संधितम् । अपत्य संतानकरं यत्सद्यः संप्रहर्षणम् । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir म० ४० अर्थ-विषयी पुरुष को उचित्त है कि बाजीकारण औषधों का निरंतर सेवन करता रहै क्योंकि बाजीकरण में तुष्टि, पुष्टि और गुणवान् संतान होती है वाजी कारण औषध संतान को स्थिर करनेवाली और सदा आनन्द देनेवाली होती है । बाजीकरण का अर्थ | वाजी वाऽतिबलो येन यात्यप्रतिहतोगनाः भवत्यतिप्रियः स्त्रीणां येन येनोपचीयते । तद्वाजीकरणं तद्धि देहस्योर्जेस्करं परम् । अर्थ - जिसके द्वारा पुरुष वलवान् और अप्रतिहत सामर्थ्यवाला होकर घोड़े की तरह स्त्रीसंगम में समर्थ होता है जिसके द्वारा कामिनीगणों का अति प्रियपात्र होजाता है। और जिसके द्वारा शरीर का उपचय होता है। उसीको वाजीकारण कहते हैं बाजीकरण देह को परम ओजस्कर है । ब्रह्मचर्य को श्रेष्ठता | धये यशस्यमायुष्यं लोकद्वयरसायनम् । अनुमोदामहे ब्रह्मचर्यमेकांतनिर्मलम् ॥ ४॥ अर्थ- ब्रह्मचर्य धर्मयुक्त यशस्कर, आयुष्कर, इस लोक और परलोक दोनों में रसायनरूप, और सर्वथा निर्मल है, ऐसे ब्रह्मचर्य का हम अनुमोदन करते हैं । स्वदारा के साथ संतानोत्पत्ति के निमित्त संगमन निर्मल ब्रह्मचर्य कहलाता है । मार्ग दो प्रकार का होता है एक नैश्रयसिक दूसरा आभ्युदयिक | नेश्रेयसिक ब्रह्मचर्य का वर्णन किया गया है अब आभ्युदयिक मार्ग का वर्णन करते हैं । For Private And Personal Use Only forest fast । अल्पत्वस्य तु क्लेशैर्बाभ्यमानस्य रागिणः

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