________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( ९७८)
मष्टांगहृदय ।
म. ४०
वीरां स्वगुप्तां काकोल्यौ यष्टीं फल्गूनि- घृतमें से प्रतिदिन एक पल सेवन करे और
पिप्पलीम् ॥ १७ ॥ मांसरस तथा दध का अनुपान करे । इस द्राक्षां विदारी खजूरं मधुकानि शतावरीम् तसिद्धपूतं चूर्णस्य पृथक् प्रस्थेन योजयेत् ।
घृत का सेवन करने से घोड़े और चिरोंटेके शर्करायास्तुगायाश्च पिप्पल्याः कुडवेन च सदृश स्त्रीसंगम में प्रवृत्त हो सकता है । मरिचस्य प्रकुंघेन पृथगर्धपलोन्मितैः १९ । ___अन्य चूर्ण । त्वमेलाकेसरैःश्लक्ष्णैःक्षौद्राद् द्विकुडवेन च विदारीपिप्पलीशालिप्रियालेक्षुरकाद्रजः । पक्षमा ततः खादेत् प्रत्यहं रसदुग्धभुक् | पृथक् स्वगुप्तामूलाच्च कुडवांशं तथा मधु तेनासेहति वाजीव कुलिंग इव हृष्यति।। तुलार्धशर्कराचूर्णात् प्रस्थाध नवसर्पिषः । अर्थ-सर, ईख, कुश, काश,विदारी और
सोऽक्षमात्रमतो खाईत् यस्यरामाशतं गहे
अर्थ-विदारीकन्द, पीपल, शालीचावल वीरण ( खस ) इनकी जड, कटेलीकी जड,
| चिरोंजी, तालमखाना और केंच की जड़, जीबक, ऋषभक, खरैटी, मेदा, महामेदा,
| प्रत्येक एक कुडव, शहत एक कुडब, शर्करा काकोली, क्षीरकाकोली, मुद्गपर्णी, माषपर्णी,
आधा तुला, ताजा घी आधा प्रस्थ, इन सितावर, असगंध, अतिबला, कोंच, सांठ, द्रव्यों को मिलाकर प्रति दिन दो तोले भूम्यामलक, दुग्धिका, जीवंती, ऋद्धि, रास्ना, । सेवन करने से सौ स्त्रियों के साथ संभोग गोखरू, मुलहटी और शालपर्णी, प्रत्येक तीन को शक्ति हो जाती है। पल, उरद एक आढक, इन सबको दो द्रोण - अन्य प्रयोग । जल में पकावे, एक आढक शेष रहने पर | सात्मगुप्ताफलान् क्षीरे गोधूमान्साधितान् उतार ले, इस क्वाथ में एक आढक घी,
__हिमान् ॥ २३ ॥ विदारीकन्द का रस एक आढक, आमले
माषान्वासघृतक्षाद्रानखादनगृष्टिपयोऽनुपः
जागर्ति रात्रि सकलामखिन्नः खेदयस्त्रियः का रस एक आढक, इख का रस एक । अर्थ-जो मनष्य गेंहं और कंचके बीजों आढक, दूध चार आढक, तथा भूभ्यामलक, | को दूधमें पकाकर ठंडा करके खाय, अथवा कोंच, काकोली, क्षार काकोली, मुलहटी, उरद, घी और शहत मिलाकर खाय । ऊपर काकोडुम्बर, पीपल, दाख, भूमिकूष्माण्ड, से पहिले व्याही हुई गौ का दूध पान करे, खिजूर, महुआ, सितावर इनको पीसकर ऐसा करने से वह मनुष्य रात्रि भर स्वयं छानकर सब एक प्रस्थ मिला देवे, और खेद को अप्राप्त हुए स्त्रियों को खेदित पाकविधानोक्त रीति से पकावै, पाक हो- | करता हुआ रति में प्रवृत्त रहता है । जाने पर घी को छानकर उसमें शर्करा
अन्य प्रयोग। एक प्रस्थ, वंशलोचन एक प्रस्थ, पीपल
वस्तांडसिद्ध पयसि भावितानसकातिलान्
यः खादेत्ससितानगच्छेत्सस्त्रीशतमपूर्ववत् एक कुडव, कालीमिरच एक पल, दालचीनी अर्थ-बकरे के अंडों के साथ दूध का इलायची और नागकेसर प्रत्येक आधा पलं पकाकर उस दध की काले तिलों में वार और शहत दो कुडव इनको मिलादेवै, इस बार भावना देवै । इन तिलोंको जो मनुष्य
For Private And Personal Use Only