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( ९७२)
अष्टांगहृदय ।
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बिडंग प्रयोग।
मासदयं तत्रिगुणं समां पा .. विडंगभल्लातकनागराणि
जीर्णोऽपि भूयः स पुनर्नवः स्यात् ॥ . येऽभति सर्पिमधुसंयुतानि।
अर्थ-देशकाल और पात्रके अनुसार. जरानदी रोगतरगिणीं ते
| पन्द्रह दिन, दो महिने, छः महिने या बरस लावण्ययुक्ताः पुरुषास्तरंति ॥ १५२ ॥
दिन तक जो मनुष्य आधा पळ नई सांठ अर्थ-जो मनुष्य वायविडंग, भिलावा
पीसकर प्रतिदिन दूध के साथ सेवन करे और सोंठ को पीसकर घी और शहत में
तो जीर्णदेह वाला मनुष्य भी फिर यौवन सानकर सेवन करता है वह लावण्ययुक्त
को प्राप्त करलेता है। होकर जरारूपनदी की रोग रूप लहरों के
मादि प्रयोग। पार विना प्रयास ही हो जाताहै । . मावृहत्यशुमतीबलानाअन्य प्रयोग।
मुशीरपाठासनसारिवाणाम् खदिरासनयूषभाविताया
कालानुसार्यागुरुचंदनानां त्रिफलाया घूतमाक्षिकप्लुतायाः।
घदंति पौनर्नवमेव कल्पम ॥ १५६ ॥ नियमेन नरा निषेवितारो
अर्थ-ऊपर लिखे हुए सांठ के फरक यदि जीवस्यरुजः किमत्र चित्रम् ॥ की तरह मूर्वा, कटेरी, शालपणी, खरैटी,
अर्थ-जो मनुष्य खैर और असनके काथ | खस, पाठा, असन, अनन्तमूल, कालीयक, की भावना दी हुई त्रिफला को घी और अगर और चन्दन इनकी भी कल्पना की शहत्त में मिलाकर सेवन करता है, वह निश्चय निरोगी होकर जीता है।
विकारनाशक घृत । . जरानाशक प्रयोग।
शतावरीकल्ककषायसिवं बीजकस्य रसमगुलिहार्य
ये सर्पिरभंति सिताद्वितीयम् । शर्करामधुघृतं त्रिफलां च ।
तान् जीविताध्वानमभिप्रपन्ना
नविप्रलुपंति विकारचौराः॥ १५७ ॥ शालयत्सु पुरुषेषु जरता स्वागतापि विनिवर्तत एव ॥ १५४ ॥
अर्थ-सितावर के कल्क और कषाय
| के साथ सिद्ध किये हुए धी में चीनी मिला अर्थ-विजैसार के गाढे रसमें शर्करा, घी और शहत मिलाकर जो नित्य सेवन
कर सेवन करने से विकार रूपी चोर मनुष्पों करता है अथवा जो प्रतिदिन त्रिफला खासा |
के जीवन मार्ग का आश्रय लेकर भी नाश है उसका स्वाभाविक वुढापा भी दूर हो
नहीं कर सकते हैं।
असगंध का प्रयोग। जाता है।
पतिाश्वगंधापयसार्धमासं अन्य प्रयोग।
घृतेन तैलेन सुखांबुना था। पुनर्नतस्यार्धपलं नवस्य .
कृशस्य पुष्टिं वपुषो विधत्ते पिटं पिवेद्यः पयसार्धमासम् ।
बालस्य सस्यस्य यथा सुवृष्टिः
जाती है।
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