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मष्टांगहृदय ।
बाक्यिनाशक रसापन ।
| अक्षमा ततो मूलाच्चूर्णितात्पयसापिबेत् ब्राह्मीवचासैंधवशंखपुष्पी
| लियाम्मधुकृताभ्यां वा क्षीरवृत्तिरनन्नभुक्
एवं वर्षप्रयोगेण जीवेद्वर्षशतं पली ।। मत्स्याक्षकब्रह्मसुवर्चलेद्रयः। वैदेहिका व त्रियवाः पृथक्स्यु.
अर्थ-शरत्काल के प्रारंभमें पुष्य नक्षत्र र्यवौ सुवर्णस्य तिलो विषस्य ॥ ५० ॥
के दिन नागबला की जडलाथै । इस जड सर्पिषश्च पलमेकत एत
का चूर्ण करके एक तोला दूध अथवा धी द्योजयेत्परिणते च घृताढयम् । और शहत के साथ सेवन करे । इस पर भोजनं समधु वत्सरमेवं
केवल दूबका पथ्य दे । भन्न न दे । इस निशीलयन्नधिकधीस्मृतिमेधः ॥ ५१॥ अतिक्रांतजराज्याधितंद्रालस्यश्रमलमः।
यम से एक सालतक औषधका सेवन करने जीवत्यदशतं पूर्ण श्रोतेजःकांतिदीप्तिमान् स मनुष्य बल
से मनुष्य बलवान और शतायु होता है। विशेषतः कुष्ठकिलासगुल्म
शक्तिवर्द्धक प्रयोग ॥ विषज्वरोन्मादगरोदराणि
फलोन्मुखो गोक्षुरका समूलअथर्वमंत्रादिकृताश्च कृत्याः
श्छायाविशुष्क सुविचूर्णितांगः। शाम्यत्यनेनातिबलाश्च वाताः
सुभाषितः स्वेन रसेन तस्माअर्थ-ब्राह्मी,बच,सेंधानमक, शंखपुष्पी, मात्रां परां मासूतिकी पिवेद्यः ॥५६॥ पतंग, ब्राह्मी, इन्द्रायण, पीपल प्रत्येक तीन
क्षीरेण तेनैव च शालिमश्नन्
जीणे मवेस्सद्वितुलोपयोगात् । यव, सुर्वण भस्म दो यव, विष एक तिल,
शकः सुरूपः सुभगः शतायुः घृत एक पछ, इन सब द्रव्योंको एकत्रकरके कामी ककुमानिव गोकुलस्थः ॥ ५७ ॥ मात्रानुसार सेवन करे । औषधके पचने अर्थ जिसमें फल निकलने ही को हो पर घृतप्लुत मधुमिश्रित हितकारी भोजन ऐसे गोखरूके वृक्षको जड समेत लाकर छायामें करना चाहिये । नियमपूवर्क एक वर्षतक सुखाकर बारीक पीसले, इस चूर्णको गोखरू इस औषधका सेवन करनेसे बुद्धि, स्मति के रसकी ही भावना देवै और इसमें से एक भौर मेधाकी अधिक वृद्धि होती है। जरा. प्रसूति दूधके साथ सेवन करे । औषधके पचने व्याधि, तंद्रा, आलस्य,थकावट, और क्वांति । पर दूधके साथ शालीचांवलों का भात सेवन जाते रहते है और आयुभी पूरे सौ वर्षकी | करे । इस नियम से जो मनुष्य क्रमसे दो सौ होनाती है, शरीर की श्री. तेज.कांति और | पल इस औषधका सेवन कर लेता है, वह दीप्ति होती है । कुष्ठ, किलास, गुल्म,विष
कार्यपटु, सुरूप, सौभाग्यशाली, शतायु, ज्वर और गरोदर नष्ट होजाता है । अपर्व. और गोकुळस्थ सांदकी तरह कामी हो जाता है मंत्रोद्भूत कृत्या और अति प्रबल वातप्रकोप । अन्य प्रयोग ॥ . शांत होजाते हैं।
पाराहीकरमाद्र क्षीरेण क्षीरपः पिवेत् । अन्य अवलेह ॥ | मासं निरनोमास व मीराबादोजराजयेत् शरन्मुख्ने नागवला पुष्ययोगे समुद्धरेत्। अर्थ-गीले वाराहीफंद को एक महिने
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