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अ. २५
उत्तरस्थान भाषाठीकासमेत ।
(८६७)
.. अर्थ-बड, गूलर, पीपल, पाकर और करने से अविदग्ध शोफ बैठ . जायगी और बेत इनकी छाल को पीसकर घी में सान- विदग्ध शोफ पक जायगी। कर लेप करने से सूजन जाती रहती है। उपनाहनमें सत्तका गोला।
दाहादिनाशक लेप। |सकोलतिलवल्लोमा दध्यम्लासक्तपिंडका। बातोल्वणानांस्तम्धामांकठिनानांमहारुजाम् सकिण्वकुष्ठलवणा कोणा शस्तोपनाहने । स्रतासृजां च शोफानां व्रणानामपिचेदृशाम् अर्थ-बेर, तिल, अलसी, सक्तापंडिका, आनूपवेसवाराधैः स्वेदः सोमास्तिलाः पुनः किण्व, कूठ, नमक इन से प्रस्तुत की हुई भृष्टा निर्वापिताः क्षीरे तत्पिष्टा दाहरुग्घराः ___ अर्थ-वे सूजन और वे घाव जिनमें ।
खट्टे दही में मिलाकर गरम गरम पिंडिका वातकी अधिकता हो, स्तब्धता, कठोरता,
उपनाहन के लिये श्रेष्ठ है। और अत्यन्त वेदना हो, जिनसे रक्त निक
सूजनमें विदारण प्रयोग ।
सुपक्के पिंडते शोफे पीडनै रुपपीडिते । ला हो, उनमें जांगल मांसके वेसवारादि से
। दारणं दारणार्हस्य सुकुमारस्य चेप्यते ॥ स्वेदन देना चाहिये । तथा अलसी और
। अर्थ-सूजनके अच्छी तरह पक जाने तिल को भूनले और दूधमें ठंडा करके दूध
पर तथा पिंडाकार और पाडन द्रव्योंसे उपके साथ पीसकर लेप करे तो दाह और
। पीडित होने पर विदारण के योग्य सुकुमार वेदना शांत हो जाते हैं । मंदवेदना में स्वेदादि ।।
मनुष्यकी सजनको विदीर्ण कर देना चाहिये स्थिरान् मंदरुजाशोफान् हर्वातकफापहैः
जो द्रव्य सूजनके भीतर से मवाद को बाहर अभ्यज्यस्वेदयित्वाचवेणनाड्याशनैः शनैः | निकाल लाते हैं, उन्हें पीडन द्रव्य कहते हैं। विम्लापनार्थमृद्गीयात् तलेनांगुष्ठकेन वा । पक्वशोफके विदारक द्रव्य । यवगोधूममुद्रेश्च सिद्धीपष्टैः प्रलेपयेत् ॥ गुग्गुल्वतसिगोदतस्वर्णक्षीरी कपोतविद। __ अर्थ-स्थिर और मंद वेदना वाले सूजनों क्षारौषधानिक्षाराश्चपक्कशोफविदारणम् में वातनाशक स्नेहों द्वारा अभ्यंजन करके
___अर्थ-गूगल, अलसी, गोदंती हरताल, स्वेदन करे और इसके विम्लापनके लिये बांस स्वर्णक्षारी, कबूतर की बीट, क्षारौषध और की नली से वा अंगूठे से धीरे धीरे मर्दन क्षार विधिमें कहे हुए क्षार पकी हुई सूजन करे, तथा जौ, गेहूं और मूंग को पकाकर
को विदीर्ण करने वाले होते हैं । जिन द्रव्यों पीसकर लेप करे ।
से सूजन फट जाती है उन्हें विदारक कहते हैं सूजन पर उपनाहादि। पूपगर्भसूजन का पीडन । बिलीयते स ततस्तमपनाहयेत्। पूयगर्भानणु द्वारान् सोत्संगान्ममंगानपि । भविदग्धस्तथाशांतिविदग्धःपाकमश्नुते। निःस्नेहै। पीडमद्रव्यैः समंतात्प्रतिपीडयेत्।
अर्थ-ऐसा करने पर भी यदि सूजन अर्थ-जिस सूजन के भीतर राध पड़गई कम न हो तो इन करे । उपनाहन | हो, छोटा छिद्र हो, उत्संगयुक्त और मर्म
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