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उत्तरस्थान भाषाटीकासमेत ।
( ९०३)
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पाषाणगर्दभ का उपाय। सब रोगों की तथा इस्वोल्लिका की चिकित्सा
इत्यापापाणगईभात् । पित्तविसर्प के समान करनी चाहिये । अग्नि विधिस्तांश्चाचरेत्पक्वान्
रोहिणी को असाध्य कहकर चिकित्सा करनी ___ अर्थ-पाषाणगर्दभ तक सब रोगोंकी
चाहिय । अर्थात् ग्रंथ, कच्छप, शालूक और पापाग
जालक गर्दभ में कर्तब्य । गर्दभ की उक्तीति से चिकित्सा करना
विलंघनं रक्तविमोक्षणं च उचित है । अजगल्लिकादि सब रोगों की विलक्षणं कायविशोधनं च। चिकित्सा पक जाने पर घावके समान करनी धात्रीप्रयोगान् शिशिरप्रदेहान् चाहिये।
कुर्यात्सदा जालकगर्दभस्य ॥ ६॥
अर्थ--जालक गर्दभरोग में अवस्थानुसार मुखदूषिका की चिकित्सा।
लंघन, रक्तमोक्षण, रूक्षण, वमनबिरेचनादि रोधकुस्तुवरुवचाप्रलपो मुखदृषिके । वरपल्लवयुक्ता वा नरिकेलोत्थशक्तयः॥ | देहके संशोधन, आमले का प्रयोग तथा अशांती मवनं नस्य ललाटे च सिराव्यधः । अन्य शीतल लेपों का प्रयोग करना चाहिये । ____ अर्थ - मु वदूषिका पर लोध, धनियां विदारिका की चिकित्सा ।
और वच का लेप करना चाहिये । अथवा | विदारिका हते रक्ते श्लेष्मग्रंथियदाचरेत् । बडके पत्ते और नारियल का रस तथा सीपी अर्थ--विदारिका रोग, रक्तमोक्षण करके मिलाकर लेप करे । यदि इस तरह भी शांत
कफ ग्रंथिक समान चिकित्साकरना उचित है। न हो तो वमन, नस्य और ललाटकी फस्द
शर्करार्बुद की चिकित्सा । इन कामों को उपयोग में लाये ।
मेदोर्बुदक्रियांकुर्यात्सुतरां शर्करार्बुदे ॥ ७॥ पद्मट कमें उपाय ॥
___ अर्थ-शर्करावुद में मेदोज अर्बुद रोग निवांवुवांतो निवांबुसाधित पद्मकंटके ॥
| की चिकित्सा विशेष रूप से करनी चाहिये । पिवेत्क्षौदान्वितं सर्पिनिबारबधलेपनम् । बल्मीक को असाध्यता। ___ अर्थ - पद्मकंटकराग में रोगी को नामका | प्रवृद्ध सुवहुच्छिद्रं सशोफ ममणि स्थितम्। काथ पान कराके वमन करावे तथा नीमके वल्मीकं हस्तपादे चर्वजयेद् काथमें सिद्ध किया हुआ घी मधु मिलाकर ____ अर्थ-जो बल्मीक रोग बहुत बढगया पान करावे । तथा नीम और अमलतास हो, जिस में बहुत से छिद्र हों, सूजन हो. का लेप करे ।
तथा मर्मस्थान में उत्पन्न हुआ हो, तथा विवृतादिकी चिकित्सा ॥. हाथ पांवों में होने वाला बलमांक असाध्य विवृतादींस्तु
होता है। जालांतांश्चिकित्सेत्सेरिवेल्लिकान् । अन्य बल्मीक रोग पर लेप पित्तवीसर्पवत्तद्वत्प्रत्याख्यायाग्निरोहिणीम्
इतरत्पुनः ॥८॥ अर्थ-विवृतासे लेकर जालगर्दभ तक | शुद्धस्याने हृते लिंपेत् सपवारैवतामृनै ।
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