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अष्टांगहृदप |
( ९३० )
अर्थ- जो सर्प अनेक प्रकार के मंडलाकार चिन्हों से युक्त, छोटे फणवाले, अंशु मान और मंदगामी होते हैं वे मंडली कहलाते हैं !
राजिमान के लक्षण | राजीमतस्तु राजिभिः । स्निग्धाबिचित्रवर्णाभिस्तिर्यगूर्ध्वविचित्रिताः अर्थ-जिन सर्पों के देह पर तिरछी आडी लहरियादार रंगविरंगी रेखा होती हैं उन्हें राजिमान् कहते हैं ।
गोधर के लक्षण | गोधासुतस्तु गौधेरो विषे दर्वीकरैः समः । चतुष्पादू
अर्थ - गोह के बच्चे को गोधेर वा गुहेरा कहते हैं, यह विषमें दबकर के समान और चार पैर वाला होता है ।
व्यंतरा के लक्षण | व्यंतरान्विद्यादेतेषामेव संकरात् ॥ व्यामिश्रलक्षणास्ते हि सन्निपातप्रकोपनाः । अर्थ- दकरादि सर्पों के मेल से जो सर्प पैदा होते हैं, उन्हें व्यंतर कहते हैं । व्यंतर सर्पों के लक्षण मिश्रित होते हैं, इनके विष में त्रिदोष का प्रकोप होता है ।
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करता है । इन सब हेतुओं में उत्तरोत्तर विषकी अधिकता होती है अर्थात् आहारार्थ से भय में, भवदशन से पादस्पर्शदंशन में इत्यादि इत्यादि ।
कारणानुसार चिकित्सा आदिष्टात्कारणं ज्ञात्वा प्रतिकुर्याद्यथायथम् अर्थ- सर्पदंशन के जो हेतु ऊपर कहे गये हैं, उनको जानकर यथायोग्य चिकित्सा में प्रवृत्त होना चाहिये ।
व्यंतर सर्प का मार्ग में बैठना । व्यंतरः पापशीलत्वात्मार्गमाश्रित्य तिष्ठति ॥
अर्थ-व्यंतर भुजंगम का पापाचार शील स्वभाव होता है, इसलिये यह आने जानेके मार्ग में बैठ जाता है ।
दष्टका साध्यासाध्य विचार | यत्र लालापरिक्लेदमात्रं गात्रे प्रदृश्यते । न तु दंष्ट्राकृतं देशं तत्तुंडाहतमादिशेत् ॥ एकं दंष्ट्रपदं द्वे वा व्यालीढाख्यमशोणितम् । दंष्टापदे सरक्ते द्वे व्यालुप्तं त्रीणि तानि तु ॥ मांसच्छेदादाविच्छिन्नरक्तवाहानि दंष्टकम् । दंष्टापदानि चत्वारि तद्वद्दष्टनिष्पीडितम् ॥ निर्विषं द्वयमत्राद्यमसाध्यं पश्चिमं वदेत् ।
अर्थ - शरीर में यदि सर्पकी लार का सर्पके काटने का कारण । चिन्ह दिखाई दे और दांत लगने का चिन्ह आहारार्थ भयात्पादस्पर्शादतिविषात् क्रुधः । दिखाई न दे तो उसे तुंडाहत कहते हैं । यदि पापवृत्तितया वैराद्देवर्षियमचोदनात् । सर्पकी एक वा दो डाढके चिन्ह दिखाई दें दशंति सर्पास्तेषूक्त विषाधिक्यं यथोत्तरम् पर रुधिर न निकला हो तो उसे व्यालीढ कहते हैं । दो डाढों के चिन्ह रुधिर समेत हों तो व्यालुप्त होता है। यदि तीन डाढों के चिन्ह हों और मांसमें छेद होकर निरंतर रक्त बहता हो तो उसे दंष्ट्रक कहते हैं । यदि चारा के चिन्ह हों और दंष्ट्रक
अर्थ - भूख लगने पर, अथवा भय से, अथवा पांव लगाने से, वा विषकी अधिकता से वा क्रोध से सर्प काटा करता है । अथवा पापवृत्ति से, किसी पुरातन बैर से, देवऋषि वा यमकी प्रेरणा से सर्प काटा
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