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(९५०)
मष्टांगहृदय ।
प्र० ३८
छूनानाशक पानादि ।
चूहों के विष की प्राप्ति । रोधं सेव्यं पनपारेणुः
शुक्रं पतति यत्रषां शुक्रदिग्धैः स्पृशति वा । कालीयाख्यचंदनं यश्च रक्तम् ।
यदंगमंगैस्तत्राने दूषिते पांडुतां गते ॥३॥ कांतापुष्पं दुग्धिनीका मृणालं
ग्रंथयः श्वयथुः कोथो मंडलानि भ्रमोऽरुचिः ठूताः सर्वा नाते सर्वक्रियाभिः ॥८६॥
शीतज्वरोऽतिरुक्सादो वेपथुः पर्वभेदनम् ॥
| रोमहर्षः सति दीर्घकालानुवंधनम् । अर्थ-लोध, खस, पद्माख, कमल केसर |
श्लेष्मानुबद्धबह्वाखुपोतकच्छदन सतृट् ॥ पीतचन्दन, लालचन्दन, प्रियंगु, लालओंगा
___अर्थ-इन सब चूहों का वीर्य जिस अंग और कमलनाल, ये सब औषधे पानादिद्वारा व्यवहार में लाने से सब प्रकार की मकड़ियों
पर गिरजाता है, और यह शुक्रदिग्ध अंग के विषों को दूर कर देते हैं ।
जिस दूसरे अंग से जा लगता है, उस अंग इतिश्रीअष्टांगहृदयसंहितायभाषाटीका
का रक्त दूषित होकर पांडु वर्ण होजाता है,
उस से देह में गांठ, सूजन, सडाहट, और न्वितायां उत्तरस्थाने कीटलूतादिबिष. प्रतिषेधोनाम सप्तात्रंशोऽध्यायः ।
गोल चकत्ते पड़जाते हैं । तथा अरुचि, शीतज्वर, अतिशय, वेदना, शिथिलता,
कम्पन, पर्वभेद, रोमांच, नाव, मूर्छा, और अष्टत्रिंशोऽध्यायः।
दीर्घकाल तक रोग का अनुबन्ध तथा - - कफानुबन्धी मूषक पोतक नाम कृमियों का अथाऽतो मूषिकालर्कविषप्रतिषेधं. निकलना और तृषा, ये लक्षण उपस्थित
- व्याख्यास्यामः।। होते हैं। अर्थ--अब हम यहां से चूहे और बावले | चूहे के विषका सब देह में फैलना। कुत्ते के विष के रोकने का वर्णन करेंगे । । व्यवाय्याखुविष कृच्छंभूयो भूयश्च कुप्यति चूहों के अठारह भेद । ।
__ अर्थ--चूहे का विष सव शरीर में फैल. लालनश्चपलापु.
जाता है. यह कठिनसाध्य और वारवार मोहसिराश्चकिरोजिरः।। ज कषायदंतःकुलकः कोकिला कपिलोसितः। प्रकुपित होता है। अरुणः शवलःश्वतः कपोतः पालतोंदुरः। मूषक विष के असाध्य लक्षण । छुच्छुदरोरसालाख्यो दशाष्टौ चेति मूषिकाः मूछोगशोफवैवर्ण्यफ्लेदशरदाश्रतिज्वराः॥
अर्थ-चूहे अठारह प्रकार के होते हैं। शिरोगुरुत्वलालासृक्छर्दिश्चासाध्यलक्षणम् यथा- लालन, चपल, पुत्र, हसित, चिकिर, अर्थ-मूर्छा, सूजन, विवर्णता, क्लेद, अजिर, कषायदंत, कुलक, कोफिल, कपिल, | बहरापन, ज्यर, सिर में भारापन, लालाअसित, अरुण, शक्ल, श्वेत, कपोत, साव और रक्त की बमन । ये सव लक्षण पतितोन्दुर, छुछुन्दर और रसाल ।
असाध्य के हैं।
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