Book Title: Ashtangat Rudaya
Author(s): Vagbhatta
Publisher: Kishanlal Dwarkaprasad

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Page 1054
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir म.३९ . उत्तरस्थान भाषाकासमैत । (९५७ ) पल शहत मिलावे । फिर इसको रई से | इस औषधका सेवन करने से मनुष्य निरोग मथ कर घी की हांडी में भग्दे । इसकी। और वृद्धावस्था से रहित होता है । तथा इतनी मात्रा सेवन करनी चाहिये जो सायं- | विशेष करके वल, पुष्टि, आय, स्मृति और काल के भोजन में बाधक न हो । औषध । मेधादि युक्त होकर सौ वर्ष का जीवन लाभ के पचने पर दूधके साथ सांठी चांवलोंका | करता है। भात खाने को दे । ब्रह्मा की बनाई हुई अन्यरसायन । इस रसायन को सेवन करके बैखानस और निरुजाईपलाशस्थ छिन्ने शिरसि तत्क्षतम अंतर्द्विहस्तं गभीरं पूर्यमामलकैर्नवैः ॥२८॥ बालखिल्यादि सपोधन मुनि तन्द्रा, श्रम, | '| आमुलं वेष्टितं दभैः पद्मिनीपंफलेपितम् । क्लान्ति,वली और पलितादि रोगोंसे रहित ! आदीप्य गोमयैर्धन्यनिर्वाते स्वेदयेत्ततः । होगये, तथा उनको मेधा, स्मृति, बल, स्विन्नामि तान्यामलकानि तृप्त्या और दीर्घजीवन का लाभ हुआ था। खादेन्नरः क्षौद्रघृतान्वितानि । अन्य रसायन । भीरं शतं चाऽनु पियेत्प्रकामं तेनैव धर्तत च मासमेकम् ॥ ३०॥ अभयामलकसहस्रं निरामयं पिप्पलीसहस्र | बानि बानि च तत्र यत्नायुतम् । स्पृश्यं च शीतांबु न पाणिनाऽपि । तरुणपळाशक्षारद्रवीकृतं स्थापयेद्भडि॥ । एकादशाहेऽस्य ततो व्यतीते उपयुक्त वक्षारेछायासंशुष्कचूर्णितंयोज्यम् पतंति केशा दशना नखाश्च ॥ ३१॥ पादांशेनसितायाश्चतुर्गुणाभ्यांमधुधृताभ्याम् तघृतकुंभे भूमोनिधायषण्माससंस्थमुद्धृत्य अथाल्पकैरेव दिनैः सुरूपः स्त्रीष्वक्षयः कुंजरतुल्यवीर्यः । प्राहे प्राश्ययथानलमुचिताहारोभवेत्सततम् इत्युपयुज्याऽशेषर्षशतमनामयोजराराहितः विशिष्टमेधावलबुद्धिसत्त्वो जीवति बलपुष्टिवपुः स्मृतिमेधाद्यन्वितो. भवत्यसौ वर्षसहस्रजीवी ॥ ३२॥ विशेषेण ॥२७॥ अर्थ-कीटादि द्वारा अप्रतिहत एक अर्थ-एक पात्र में नवीन ढाकके क्षार | हरे ढाक के वृक्षका मस्तक दूर करके उस से द्रवीभूत की हुई एक एक हजार हरड में दो हाथका गढा करके उसमें हरे आमामला और पीपल रक्खे । फिर इनको | मले भादे, उसके ऊपर से नीचे तक छाया में सुखाकर वारीक पीसले । फिर कुशा लपेट कर कमलकी कीचड हेसदे । इसमें चौथाई भाग शर्करा मिलाकर एक फिर उसको निवातस्थान में भारने ऊपलों कलश में भरकर छ: महिने तक भूमि में की आग से स्वेदित करे । इन मामलों को गाढदे । तदनन्तर औषधको निकाल करछी भोरं शहत के साथ तृप्तिपर्यन्त खाकर जठराग्नि के अनुसार इसकी मात्रा प्रात:काल | ऊपर से दुग्धपान करे और एक महिने तक के समय सेवन करे । इस पर हितकारी | केवल दूध पीकर रहै । तथा रसायनविधि आहार का पध्य करता रहे। नियमानुसार | में जो क्षारादि निषेध किये गये हैं, उनका For Private And Personal Use Only

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