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उत्तरस्थान भाषांटीकासमेत ।
अन्य प्रयोग । अर्कस्य दुग्धेन शिरीषबीजं त्रिर्मावितं पिवलिचूर्णामेश्रम् । एषो गो हंति विषाणि कीटभुजंगतोरवृश्चिकानाम् ॥ ४३ ॥ अर्थ - सिरके वीर्जेको आक के दूध की तीन भावना देकर उसमें पीपल पीसकर मिलादे । इस अगद का प्रयोग करने से कीट, भुजंग, मकडी, चूहा और बिच्छू इनका विष दूर हो जाता है ।
विषसंक्रांतिकृत अगद । शिरीषपुष्पं सकरंजवीजं काश्मीरजं कुष्टमनः शिला च । एषो गदो रात्रिबृश्चिकानां संक्रांतिकारी कथितो जिनेन ॥ ४४ ॥ अर्थ - सिरस के फूल, कंजाके बीज, खंभारी के बीज, कूठ, और मनसिल इन सब द्रव्यों का भगद सेवन करने से रात्रिक बिच्छुओं का विष दूर होजाता है । यह जिन भगवान का बताया हुआ प्रयोग है ।
मकडियों की संख्या ।
कीटेभ्यो दारुणतरा लूताः षोडश ता जगुः अष्टाविंशतिरित्येके ततोऽप्यन्ये तु भूयसीः सहस्त्ररश्म्यनुचरा वदत्यन्ये सहस्रशः । बहुपद्रवरूपा तु तैकैव विषात्मिका ४६
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अर्थ- - सन प्रकार के कीडों में मकडी बहुत भयानक होती है । कोई इसे सोलह प्रकार की कोई अट्ठाईस प्रकार की और कोई अनेक प्रकार की मानते हैं, कोई यह कहते हैं कि सूर्य की किरणों के साथ साथ विचरनेवाली सहस्रों मकड़ियां हैं । भवतु, ये कितीही हों या कितनेही रूपवाली हों
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पर इनमें से सबही विषात्मक और अनेक उपद्रवों से युक्त होती हैं । उक्त विषय में हेतु ।
रूपाणि नामतस्तस्या दुर्ज्ञेयाम्यति संकरात् नास्ति स्थानव्यवस्था च दोषतोऽतः प्रचक्षते
अर्थ - अति संकर के कारण मकडियों . की जाति के भेदों की गिनती कर लेना बहुत कठिन है इनके स्थानकी कोई व्यवस्था भी नहीं है, इसलिये वातादि दोष भेद से इनका वर्णन करते हैं ।
लताविष का साध्यासाध्यत्व | कृच्छ्रसाध्या पृथग्दोषैरसाध्यानिचयन सा
अर्थ - वातादि पृथक् २ दोष वाली. मकड़ी कष्टसाध्य और त्रिदोषज असाध्य होती है।
पैत्तिक देश के लक्षण |
तद्देशः पैत्तिको दाहवस्फोटज्वरमोदवान भृशोष्म रक्तपीताभः क्लेदी द्राक्षाफलोपमः ।
अर्थ- मकड़ी के पैत्तिक देश में दाह, तृषा, स्फोटक, ज्वर, मोह, अत्यन्त गर्मी और द होता है । यह देश रक्तपीत वर्ण से युक्त दवाला और दाख के फलके सदृश होता है ।
कफज देश के लक्षण | लैष्मिकः कठिनः पांडुः परुषकफलाकृतिः निद्राशीतज्वरं कासकं न कुरुते भृशम्
अर्थ-कफज दंश कठोर, पांडुवर्ण, और फालसके फल समान आकृति वाला होता है। तथा इसमें नींद, शीतज्वर, खांसी और खुजली की अधिकता होती है ।
वातिक देश के लक्षण | वातिकः परुषः श्यावः पर्वभेदज्वरप्रदः ।
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