________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( ९१२)
अष्टांगहृदय)
अ० २६
योनि को वामनी योनि कहते है, इसमें वे |
रक्तयोनि । दना होती भी है और नहीं भी होती है ।
रक्तयोन्याख्यासृगतिनतेः , पंडसंज्ञक योनि ।
अर्थ--योनिसे जो रक्तस्त्राव होता हो तो योनौ वातोपतप्तायां स्त्रीगर्भ वीजदोषतः । उसे रक्तयोनि कहते हैं। नृद्वेषिण्यस्तनी च स्यात्पंढसंज्ञाऽनुपक्रमा।| श्लैष्मिकी व्यापत् ! - अर्थ--वायुसे उपतप्त योनिमें स्त्री के गर्भमें
कफोभिष्यंदिभिः क्रुद्धः कुर्याद्योनिमवेदनाम् बीज के दोषके कारण मनुष्य से द्वेष और स्त-शीतलां कंडुलांपांडुपिच्छिलांतद्विधतिम् नहीनता रोग होता है, इसे षंढ कहते है, | सा व्यापच्छै लष्मिकी यह असाध्य होता है ॥
___ अर्थ --अभिष्यंद कारक भोजनादि हेतुओं महायोनि ।
से कफकुपित होकर योनिको वेदना रहित दुष्टो विष्टभ्य योन्यास्यं गर्भकोष्ट च मारुतः | शीतल, खुजलीयुक्त, पांडुवर्ण और पिच्छिल कुरुते विवृतांसस्तां वातिकीमिवदुःखिताम् | कर देती है, इस रोग में योनि से पीला उत्सन्नमांसां तामाहुमहायोनि महारुजाम् | और गिलगिला साव होताहै । इसे श्लैष्मि___ अर्थ-दुष्ट हुआ वायु योनिके मुख और | की व्यापत् कहते हैं। गर्भाशय को विष्टब्ध करके योनिको विवृत,
लोहितक्षया ॥ शिथिल और वातकीवत् दुखित और उत्सन्न
वातपित्ताभ्यां क्षीयते रजः मांस कर देती है। इसको महायोनि कहते हैं | सदाहकार्यवैवर्य यस्यां सा लोहितक्षया इसमें घोर वेदना होती है ॥
अर्थ-बात और पित्त के प्रकोप से रज पैत्तिकी ब्यापत् ।
क्षीण होकर दाह, कृशता और विवर्णता
उत्पन्न करता है । इसको लोहितक्षया यथास्वैर्दूषणैर्दुष्टं पित्तं योनिमुपाश्रितम् । करोति दाहपाकोषापूतिगंधज्वरान्विताम्
व्यापत् कहते हैं। भृशोष्णाभूरिकुगपनीलपीतांसितार्तवाम् । परिप्लुता व्यापत् ॥ सा व्यापत्पत्तिकी
| पित्तलाया नृसंवासे क्षवथूगारधारणात् । अर्थ-पित्त अपने प्रकुपित करने वाले
पित्तयुक्तेन मरुता योनिर्भवति दूषिता । हेतुओं से प्रकुपित होकर योनि में अवस्थिति |
| शूनास्पर्शासहा सातिर्नीलपीतास्रवाहिनी
वस्तिकुक्षिगुरुत्वातीसारारोचककारिणी । करके उसमें दाह, पाक, उत्ताप और दुर्गधि श्रोणिवक्षणरुक्तोदज्वरकृत्सा परिप्लुता। पैदा कर देता है । इसमें ज्वर भी हो जाता | अर्थ-पित्त प्रकृतिवाली स्त्री पुरुष समाहै । और योनि से अत्यन्त गरम, मुर्दे की सी गम के समय छींक वा उकार को रोक लेती गंधवाला, नीला, पीला और काला आर्तव । है, तब वात और पित्त प्रकुपित होकर योनि अधिकता से निकलता है । इसे पैत्तिकी योनि
निकलता है । इसे पैत्तिकी योनि को प्रदूषित कर देते हैं । इससे योनि फूल व्यापत् कहते हैं ।
| जाती है, हाथ को नहीं सह सकती है और
For Private And Personal Use Only