Book Title: Ashtangat Rudaya
Author(s): Vagbhatta
Publisher: Kishanlal Dwarkaprasad

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Page 1014
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org अ० ३४ उत्तरस्थान भाषा टीकासमेत । ( ९१७) वेवन करे | बाहर निकली हुई योनि को | अजमोदायवक्षारशर्करा चित्र कान्वितम् । पिष्टवाप्रसन्नयाऽलोडयखादेत्तदूघृतभर्जितम् योनिपश्वाद्रिोग गुल्माशीविनिवृत्तये । भीतर कर देवे । निवृत हुई योनि को परिवर्तित करे | क्योंकि अपने स्थान हटी हुई योनि स्त्रियों को शा के समान कष्टकारक होती हैं । इसलिये उसको स्थान पर लगाने का यत्न करे | वमनादि का प्रयोग । कर्मभिर्वमनाद्यैश्च मृदुभिर्योजयेत्त्रियम् ॥ सर्वतः सुविशुद्धायाः शेषं कर्म विधीयते । वस्त्यभ्यंग परीषेकप्रलेप पिचुधारणम् २७ अर्थ - योनिव्यापत् रोग में मृदु वमनादि कर्म का प्रयोग करना चाहिये | वमन और विरेचन द्वारा स्त्रीको ऊपर नीचे से शुद्ध करके वस्ति, अभ्यंग, परिषेक, प्रलेप और पिचुधारण रुई का फोआ लगाना ) की ब्यवस्था करे । अर्थ-बच, काला जीरा, सफेद जीरा, पीपल, अडूसा, सेंधानमक, अजमोद, जवाशर्करा, और चीता इन सब औषधों को प्रसन्ना नामक सुरा में पीसकर और आलोडित करके घी में भूनकर खाना चाहिये | इसके सेवन करने से योनिशूल पसली का दर्द, हृद्रोग, गुल्मरोग और अरोरोग नष्ट होजाते हैं । | वृषकादि पान | ' घृत का प्रयोग | काश्मर्यत्रिफलाद्राक्षा काखमदनिशाद्वयैः । गुहवी सैर्य का भीरुशुकनासा पुनर्नवैः २० परुषकैश्च विपेचत्प्रस्यमक्षसमैर्धृतात् । योनि वातविकारनं तत्पीतं गर्भदं परम् । अर्थ--खंभारी, त्रिफला,दाख, कसौंदी, हल्दी, दारूहल्दी, गिलोय, सैर्यक, शतमूली, श्योना, पुनर्नवा और फालसा प्रत्येक दो तोला | इनका कल्क करके एक प्रस्थ घी पाक की रीति से पकावे । इस घृतके पीने से योनि में होनेवाले संपूर्ण वातरोग नष्ट हो जाते हैं । यह गर्भोत्पादक परमोत्तम औषध है । खार, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वृषकं मातुलुंगस्य मूलानि मद्यांतकाम् । पिवेन्मद्यैः सलवणैस्तथा कृष्णोपकुंचिकैः । अर्थ - अडूसा की जड, बिजौरे की जड और मदयंती की जड, इन सब द्रव्यों को अथवा पीपल और काला जीरा इनको पीसकर नमक मिलाकर मद्य के साथ पान करने से योनिशूलादि रोग नष्ट होजाते हैं । रास्नादि दुग्ध । रास्नाश्वदंष्ट्रानृषकैः शतं शूलहरं पयः । अर्थ - रास्ना, गोखरू और अडूसा, इनके साथ में औटाया हुआ दूध पान करने से योनिशूल नष्ट होजाता है। योनिमें परिषेक | गुडूचीत्रिफलादतीकाथैश्च परिषेचनम् । अर्थ - गिलोय, त्रिफला और देती इनके काढेका योनि में परिषेक करना हित है । योनिमें पिचुप्रयोग | अन्य औषध । नतवार्ता किनी कुष्टर्सधवा मरदारुभिः । वचापकुचिकाजाजीकृष्णावृषकसैंधवम् ।। तैलात्प्रसाधिताद्वार्यः विद्युयोनी रुजापहः For Private And Personal Use Only

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