________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(९००)
अष्टांगहृदय ।
अ० ३१
__ अर्थ -धूप और पसीनों के कारण देहमें में जो विदारीकंद के समान कड़ी फुसियां जो राई के समान आकृति और वर्णवाली होती हैं उन्हें विदारी कहते हैं । घेदनान्वित ठोस फुसियां हो जाती हैं उन्हें शर्करावंद के लक्षण । राजिका कहते हैं।
मेदोऽनिलकफैथिः नायुमांससिराश्रयैः । जालगर्दभ पिटिका । भिन्नो वसाज्यमध्याभनवेत्तत्रोल्वणोऽनिलः दोषैः पित्तोलवसर्विसर्पतिविसर्पयत मांसं विशोज्य प्रश्रितां शर्करामुपपादयेत् शोफोऽशकस्ततुस्तानो ज्वरजालगभः दुगंधं रुधिरं क्लिनं नानावर्ण ततो मलाः। ___ अर्थ-पित्ताधिक्य वातादि दोषोंके कारण तां नाययंति निचितां विद्यात्तच्छर्कराव॒दम् विसर्प की तरह फैलनेवाली पतली और
अर्थ- मेद, वायु और कफ स्नायु, मांस · ताम्रवर्ण सूजन पैदा हो जाती है. यह पकती ! और सिराओं का आश्रय लेकर गांठ पैदा नहीं है और ज्वर पैदा कर देती है, इसे कर देते हैं । जब यह गांठ फट जाती है जालगर्दभ कहते हैं।
तब इसमें से चर्वी, घी और मधुके समान ___ अग्निरोहिणी के लक्षण ।
स्राव होने लगता है । उस समय वायु कुपित मलै पित्तोल्बणैःस्फोटाज्वरिणोमांसदारणाः होकर मांसको शुष्क करता हुआ शर्करा को कक्षाभागेषुजायतेयेऽन्याभासाऽग्निरोहिणी उत्पन्न करता है । तदनंतर वातादि दोष पंचाहात्सप्तरात्राद्वा पक्षाद्वा हंति जीवितम्
इस संचित शर्करा से दुर्गधयुक्त, रुधिर और __ अर्थ-पित्ताधिक्य वातादि दोषों के कारण
| अनेक प्रकार के केदका स्राव करते हैं। बगल में ज्वर पैदा करने वाली, मांसको
इसको शर्करावुद कहते हैं। विदीर्ण करनेवाली अग्नि के समान तीक्ष्ण
वल्मीक पिटिका । जो फंसियां हो जाती हैं उन्हें अग्निरोहिणी
पाणिपादतले संधौ जत्रूचं वोपचीयते । कहते हैं। ये पांच वा सात वा पन्द्रह दिन
वल्मीकवच्छनैग्रंथिस्तद्वदहणुभिमुखैः । में रोगी का प्राणनाश कर देती हैं।
रुग्दाहकंक्लेदाढयोवल्मीकोऽसौसमस्तजा इरिबेल्लिका । ___ अर्थ--हथेली में, पत्रिके तलुए में, संधिचिलिंगा पिटिकावृत्ता जमिरिचेल्लिका यों में अथवा जत्रसे ऊपर जो गांठ पैदा __ अर्थ-जत्रु अर्थात् गर्दैन के जोतोसे ऊपर / होकर सांपकी बांबी के तुल्य धीरे धीरे बहुत होनेवाली तीनों दोषों के लक्षणों से युक्त जो से छोटे छोटे छिद्रोंसे युक्त हो जाती हैं। गोलाकार फुसियां होती है, उन्हें इरबेल्लिका | उन्हें वल्मीक कहते हैं । वल्मीक में अत्यन्त कहते हैं।
वेदना, दाह, खुजली, और क्लेद उत्पन्न होता विदारी पिटिका। है। यह व्याधि त्रिदोष से पैदा होती है । विदारीकंदकठिना विदारी कक्षवंक्षणे।
कदर के लक्षण। अर्थ--बगल और वंक्षण (जंघाकी संधि) शर्करोन्मर्थिते पादे क्षते या कंटकादिभिः ।
For Private And Personal Use Only