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उत्तरस्थान भाषाटीकासमेत ।
(८९५)
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लेप की विधि ।
आची पर तेल। शमीमूल फशिग्रणां बीजैः सयवसर्षपैः। तैलं लांगलिकीकंदकल्कपादे चतुर्गुणे ।.. लेपः पिष्टोम्लतऋण ग्रंथिगंडविलापनः १६ निर्गुडीस्वरसे पक्कं नस्यायेरपीप्रणुत् २१
अर्थ--ममी के बीज, सहजने के बीज, अर्थ-कल्हारी की जड का कल्क एक जौ और सरसों इन सब द्रव्यों को खट्टे | भाग, तेल चार माग, निर्गुडी का रस चार • तक में पीसकर लेप करने से प्रथि और भाग । इनको पाकविधि से पकावै । फिर गण्ड रोग बैठ जाते हैं।
| नस्यद्वारा इस तेल का सेवन करनेसे अपची पाकोन्मुख ग्रंथि का उपाय। रांग जाता रहता है। पाकोन्मुखान्तावस्यपित्तश्लेष्महरैजयेत् कुष्ठादि नाशक तेल । साक्षानेव चोद्धत्य क्षाराग्निभ्यामुपाचरेत् भद्रश्रीदारुमरिचद्विहरिद्राप्रिवृद्घनैः।।
अर्थ-- जो ग्रंथि पकने लगगई हो उसका | मनाशिलालनलदविशालाकरवीरकैः २२ । रुधिर निकालकर पित्त कफनाशक औष
गोमूत्रपिष्टैः पलिकर्षिषस्थापलेन च ।
| ब्राह्मीरसार्कजक्षीरगोशकृद्रससंयुतम् २३ वियों का प्रयोग करना चाहिये । अपक्क
| प्रस्थं सर्षपतैलस्य सिद्धमाशु व्यपोहति । ग्रंथि को शस्त्र से उधृत करके क्षाराग्नि से पानाद्यैः शीलितं कुष्ठं दुष्टनाडीव्रणापची। दग्ध करदेवै ।
___ अर्थ-चंदन, देवदारु, कालीमिरच, . गंडमाला की चिकित्सा। हलदी, दारुहलदी, निसोथ, मोथा,मनसिल, काकादनीलांगलिकानहिकोत्तडिकीफलैः। | हरताल, बालछर, इन्द्रायण, कनेर प्रत्येक जीमूतवीजकर्कोटीविशालाकृतवेधनः १८ | एक पल विष आधा पल इन सबको गोमूत्र पाठान्वितैः पला(शैर्विपकर्षयुतैः पचेत् । । में घोट डाले । इस कल्क के साथ ब्राह्मी प्रस्थं करंजतैलस्य निर्गुडीस्वरसाढकैः ।। अनेन मालागंहानां चिरजा प्रयवाहिनी। का रस, आक का दूध, और गोवर का सिध्यत्यसाध्यकल्पाऽपिपानाभ्यंजननावनैः | रस मिलाकर एक प्रस्थ सरसों का तेल
अर्थ-काकादनी, कल्हारी, तुंडकी, पकावै । पान, अभ्यंजन और नस्य द्वारा नागरमोथा, ककडी के बीज, इन्द्रायण, । इस तेलका प्रयोग करने से कुष्ठ, दुष्ट नाडी कटु तोरई, और पाठा प्रत्येक आधा पल, व्रण और अपची रोग जाते रहते हैं। विष एक कर्ष इनका फलक करके एक
. अपचीनाशक अन्य तैल । . प्रस्थ कंजे के तेल, और एक आढक निर्गुडी
वद्याहरीतकीलाक्षाकटुरोहिणिचंदनैः। . के रस के साथ पकावै । इस तेलको पान, तैलं प्रसाधितं पीतं समूलामपची जयेत् । अभ्यंजन और नस्य द्वारा सेवन करने से अर्थ-बच, हरड, लाख, कुटकी और बहुत दिनकी गंडमाला भी जिससे राध चंदन इनके कल्क के साथ सिद्ध किया बहने लगगई हो और असाध्य भी हो चुकी हुआ तेल पान करने से अपची जद से हो नष्ट होजाती है। . | जाती रहती है।
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