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अष्टांगहृदय ।
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म. २५
पूतिमाससिराम्नायुछन्नतोत्सांगतातिरुक् ।। सदृश होता है। इसमें से दही के तोड, संरंभदाहश्वयथुकंड्वादिभिरुपद्रुतिः ॥४॥ मांसके धोबन के जल, वा पुलक के जल दीर्घकालानुबंधश्च विद्यादुष्टप्रणाकृतिम् ।।
के सदृश थोडा और पतला स्राव होता है, अर्थ-जो व्रण बहुत सवृत (रुकाहुआ)। इसमें मांसरहित. सुई चुभने की सी वेदना बहुत निवृत ( फटाहुआ ), कठोर वा मृदु
फटाव, रूक्षता और चटचटापन होता है । हो, जो अत्यन्त ऊंचा वा अत्यन्त नीचा हो, पित्तज व्रणके लक्षण । . अत्यन्त गरम वा अत्यन्त ठंडा हो, जो लाल
पिसेन क्षिप्रजः पीतोऽनीलः कपिलपिंगळः पीला. वा काला हो, जिसमें से दुर्गंधयुक्त मूत्रकिशुकभस्मांवुतैलाभोष्णवहुस्नतिः।. राध निकलती हो, जो ब्रण दुर्गंधित मांस क्षारोक्षितक्षतसमव्यथो रागोष्मपाकवान् । अथवा शिरा वा स्नायु से आच्छादित हो,
अर्थ-पित्तन व्रण शीघ्रही बढता चला जो भीतर को घुस रहा हो, जिसमें अत्यन्त
जाता है, यह पीला, नीला, कपिल और
पिंगल वर्णका होता है, इसमें से मूत्र वा घेदना, संरंभ, दाह, सूजन और खुजली
केसूकी राखके सदृश जल, वा तेलके सदृश आदि उपद्रव हो, जो बहुत दिनका हो गया
बहुत अधिक गरम गरम स्राव होता है। हो, ऐसे बणको दुष्ट लक्षणों वाला समझना
तथा इसमें क्षारदग्धके समान वेदना तथा चाहिये।
वर्ण में लाल और गरम पाक होता है। दुष्टब्रण के भेद ।
कफजवण के लक्षण ॥ स पंचदशधा दोषैः सरक्तैः
कफेन पांडुः कंडूमान बहुश्वेतघनमुतिः । - अर्थ-वण वातादि दोष और रक्तसे
स्थूलौष्ठ कठिनःस्नायुसिराजालस्ततोल्परक पंद्रह प्रकारका होता है, यथा- वातज,
अर्थ-कफज व्रण में पीलापन, खुजली पित्तन, कफज, वातापित्तज, वातकफज, तथा बहुत परिमाण में सफेद और गढासाव पित्तकफज, वातपित्तकफज, वातरक्तज, पित्त- होता है. इस घाव के किनारे मोट और रक्तज, कफरक्तज, वातपित्तरक्तज, वात कठोर होते हैं यह स्नायु और सिरा के जाल कफरक्तज, पित्तकफरक्तज,वातपित्तकफरक्तजसे व्याप्त और अल्प वेदनावाला होता है। भौर केवल रक्तन ।
रक्तजवण के लक्षण ॥ वातज ब्रणके लक्षण । प्रवालरक्तो रक्तेन सरक्तं पूयमुद्रेित् ।
तत्र मारुतात् ॥ ५॥ बाजिस्थानसमो गंधे युक्तोलिंगैश्चपौत्तिकः श्यावः कृष्णो भस्मकपोतास्थिनिभोऽपिच अर्थ-रक्तज व्रण मँगा के सदश लाल मस्तुमांससपुलाकांबुतुल्यतन्वल्पसंतिः वर्ण का होताहै, इसमेंसे लाल राध परतीहै निर्मासस्तोदभेदाढयो रूक्षश्चटचटायते। तथा इसमें हयशाला कीसी दुर्गन्ध आतीहै
अर्थ-इनमें से वातजण श्याववणे, | इसके शेष सब लछक्ष पित्तजनण के सदृश काला वा लाल भस्म, कबूतर वा अस्थि के होते है ।
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