________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www. kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
. (१८६)
अष्टांगहृदय ।
निवार्कान्यतरक्काथसमायुक्तो नियच्छति।
अन्य प्रयोग । बद्धमुलानपि व्याधीन्सर्वान्सतपणोद्भवान् ॥ पयः पुष्पेऽस्य निर्वत्त फले पेया पयस्कृता।।
अर्थ-मेनफलके गूदे के काढे में वत्सकादि | लोमश क्षीरसंतानं दध्युत्तरमलोमशे । गण के द्रव्यों का प्रतीवाप देकर इसको शृते पयासि दध्यम्लं जाते हरितपांडुके ॥ नीम वा आक के काढे के साथ पान करे
आसुत्य पारुणीमंडं पिवेन्मृदितगालितम् । . इससे संतर्पण से उत्पन्न हुई व्याधियां जो
फफादरोचके कासे पांडुत्वे राजयक्ष्माणि ॥
अर्थ-इस जीमूत के पुष्प के निवृत जड पकड लेती हैं वे भी नष्ट हो जाती हैं । |
होने पर नीमृत डालकर औटाया हुआ दूध . फूल सूंघने से वमन ।
और फलके निवृत होने पर जीमूत डालकर राठपुष्पफलश्लक्ष्णचूर्णैर्माल्यं सुरक्षितम् । घमेन्मंडरसादीनां तृप्तो जिघ्रन् सुखं सुखी ॥
| औटाये हुए द्ध की पेया पान करानी अर्थ-मेनफल के फूल और फलों को।
चाहिये । जीमूत कच्ची अवस्था में लोमयुक्त अच्छी तरह पीसकर मालती के पुष्प में
और पकने पर लोमराहत होता है । लोमरखे, फिर मंडरस, कृशग, क्षीर. यवाग से युक्त फल के साथ सिद्ध किये हुए दूध में तृप्त होकर उक्त फूल को सूंघे तो सुखपूर्वक
जो मलाई पड़जाती है उसका सेवन करे । वमन हो ।
अथवा लोम रहित जीमूत के साथ पकाये
हुए दूध के जमाने से उत्पन्न हुए दही की अन्य फल।
मलाई को पान करे । हरा पीला जीमूत का एवमेव फलाभावे कल्प्यं पुष्प शलाटु वा। अर्थ-मेनफल के अभाव में उसके फूलों
फल जो लोमयुक्त और लोमरहित होकर को कूटकर मुलहटी आदि के काथ में रात
मध्यावस्था को प्राप्त हुआ हो। इस फलके भर भिगोकर उक्त विधि से दूसरे दिन पान
साथ दूध को सिद्ध करके उस दूध से करे । अथवा मेनफल के कच्चे फलों का उत्पन्न हुआ स्वट्टा दही, अथवा जीमूत के उक्तरीति से सेवन करे ।
फल से वारुणीमण्ड का आसुत बनाकर
उसका मर्दन करके और वस्त्र में छान कर जीमूतादि का प्रयोग।
| कफज, अरुचि, खांसी, पांडुरोग और यक्ष्मा जीमृताद्याश्च फलवत्
| रोग में वमन के निमित्त देवे । . जीमूतं तु विशेषतः ॥ १९॥ प्रयोक्तव्यं ज्वरश्वासकासहिध्मादिरोगिणाम् तुंबी आदि की कल्पना । . अर्थ-मेनफल के सदृश ही जीमूत, । इयं च कल्पना कार्या तुवीकोशातकीष्वपि। तूबी, कोशातकी आदि की कल्पना करनी । अर्थ-तूंबी और तोरई में भी ऊपर चाहिये । परन्तु ज्वर, श्वास, खांसी, हि- | लिखी हुई पुष्प के निवृत होने से लेकर चकी आदि रोगों में विशेष करके जीमूत | वारुणीमण्ड पर्यन्त सम्पूर्ण कल्पना करनी का प्रयोग करना चाहिये । । चाहिये । .. ....
For Private And Personal Use Only