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एकविंशोऽध्यायः ।
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( ८३० )
अष्टांगहृदय ।.
कल्कितैर्वृतमध्यातां घ्राणे वर्ति प्रवेशयेत् । । ले के कफाधिक्वाले कुपित हुए दोष मुख शिम्मवादिनावनं चात्र पूर्तिना सोऽपि तंभजेत् के भीतर रोगों को पैदा करदेते हैं ?
अर्थ - नासारी और नासार्वुद को दग्ध करके निसोध, दंती, सेंधानमक, मनसिल, हरताल, पीपल, और चीता इन सब द्रव्यों के कल्क द्वारा बनाई हुई वत्ती को घी में भिगोकर नासिका के छिद्र में प्रवेश कर दे, इसमें पूतिनासा में कही हुई शिग्रु आदिकी नस्यका प्रयोग करना चाहिये । इति श्री अष्टांगहृदयसंहितायां भाषाटीकान्वितायां नासारोगप्रतिषेधोनाम
विंशोऽध्यायः ॥ २० ॥
अथाऽतो मुखरोगविज्ञानं व्याख्यास्यामः । अर्थ- - अब हम यहां से मुखरोग विज्ञा नीय नामक अध्याय की व्याख्या करेंगे ।
मुखरोग का हेतु | मत्स्यमाहिषवाराहपिशिताम कमूलकम् । माषसूपदाधिक्षीरसुक्तेक्षुरसफाणितम् ॥ वाकू शय्या च भजतो द्विषतो दंतधावनम् धूमच्छदम गंडूषानुचितच सिराव्यधम् ॥ कुखाः श्लेष्मोल्वणा दोषाः कुर्वेत्यतर्मुखेगदान् । अर्थ-मछली, भैंस का मांस, शूकरका मांस, फच्ची मूली, उरद की दाल, दही, दूध, कांजी, ईखका रस, फाणित, नीचे सिरहाने की शय्या, दंतधावन का त्याग, धूमपान बमन गंडूष का त्याग करना, सिरा ब्यधका त्याग | इन सब कामों के करनेवा
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अ० २१
वौष्ठ के लक्षण |
सत्र खंडौष्ठ इत्युक्तो वानोष्टो द्विधा कृतः ॥ अर्थ- वायुके द्वारा ओष्ठके दो भाग हो जाते हैं, इसे खंडौष्ठरोग कहते हैं । ओष्ठकी स्तब्धता । ओष्ठकोपे तु पचनात् स्तब्धावोष्टी महाराजौ दाल्येते परिपाटयते एरुवास्थितकर्कशौ ॥
अर्थ- वातजनित ओष्ठ प्रकोपमें दोनों ओष्ठ स्तब्ध, महावेदनान्वित, दलने और फटने की सी पीडा से युक्त, खरदरे, काले और कर्कश हो जाते हैं ।
पित्तदूषित ओह | पित्तात्तीक्ष्णासह पीतौ सर्षपाकृतिभिचित पिटिकाभिर्महादावाशु पाकी
अर्थ-पित्तजनित ओष्ठप्रकोप में दोनों ओष्ठ तीक्ष्ण द्रव्यको सहने में अशक्त हो जाते हैं। पीले रंग की सरसों के आकार वाली फुंसियों से व्याप्त हो जाते हैं, तथा महाक्लेदयुक्त और शीघ्रपाकी हो जाते हैं । कफदूषित ओष्ठ |
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कफात्पुनः ॥ ५ ॥
शीतासही गुरु शूनी सवर्णीपिटिकाचिती । अर्थ - कफजनित ओष्ठप्रकोप में दोनों ओष्ठ शीतलता को नहीं सहसकते हैं, भारी, पिटकाओं से व्याप्त हो जाते हैं । फूली हुई तथा त्वचा के समान वर्णवाली
सनिपातदूषित ओष्ठ | सन्निपातादने काभौ दुर्गधास्राव पिच्छिलो ॥ अकस्मान्मलान संशून रुज विषमपाकिनौं । अर्थ- सन्निपात द्वारा उत्पन्न हुए भोष्ठ