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भ० २२
उत्तरस्थान मापार्यकासमेत।
(८४५)
क्योंकि अधिक कटने से रक्तक्षय के कारण तालुशोष में कर्तव्य । मृत्यु तककी संभावना है, और कम कटने तालुशोपे त्यतृष्णस्य सर्पिरुत्तरभाक्तिकम् । से रोगकी वृद्धि हो जाती है। | कणशुठीसृतं पानमम्लैगडूषधारणम् ५३
धन्वमांसरसा:स्निग्धाक्षीरसर्पिश्चनावनं - सम्यक् छिन्नमें कर्तव्य ॥
अर्थ-तालुशोषरोग में यदि तृषा की मरिचातिविषापाठावचाकुष्टकुटनटैः।
अधिकता न हो तो भोजन के पीछे घृतपान छिनायां सपटनीट्रैघर्षणं कवलः पनः ॥ कटुकातिावेषापाठानबरामावविभिः।। कगवे | इस रोगमें पीपल और सोंठ के साथ ___ अर्थ-गलशंडिका के ठीक रीतिसे कटने सिद्ध किया हुआ जल पान करांव, कांजी पर कालीमिरच, अतीस, पाठा, बच, कूठ, आदि खट्टे द्रव्यों का गंडूष धारण, स्निग्ध और केवटी मोथा पीसकर नमक और शहत
जांगल मांस का माहार, तथा दूधके घी की मिलाकर उस स्थान पर रिगडे, अथवा
नस्य का प्रयोग करे।
कंठरोग में कर्तव्य । कुटकी, अतीस, पाठा, नीम, रास्ना और
कंठरोगेष्वसझमोक्षस्तीक्ष्णनस्यादि कर्मच बच के क्वाथ के कुले करे । | कायापानं च दात्विनिबतायकलिंगजः . पुप्पुटादि का उपाय। हरीतकीकषायो वा पेयो माक्षिकसंयुतः संघाते पुष्पुटे कूर्मे बिलिख्यैवं समाचरेत्॥ अर्थ-सब प्रकार के कंठरोगों में रक्त
अर्थ-तालु संहिति, तालुपुष्पुट, और । मोक्षण, तीक्ष्ण द्रव्यों का नस्य, और गडू. तालुकच्छप रोगों की चिकित्सा उक्त रीतिसे
पाधि धारण हितकारी होते हैं । इस में विलेखन करके करनी चाहिये । दारुहलदी की छाल, नीम, रसौत और . अपक्व तालुपाक की चिकित्सा ।
इन्द्रजौ का काढा अथवा मधुमिश्रित हरी. अपक्के तालुपाके तु कासीसक्षौद्रताय॑जैः।
तकी का काढा पान कराना चाहिये । . घर्षण कवलः शीतकषायमधुरौषधैः
कंठरोग में प्रतिसारण । अर्थ-अपक्क तालुपाकमें हीरा कसीस,
| श्रेष्ठाव्योषयवक्षारदा-दीपिरसांजनैः। शहत और रसौत द्वारा घर्षण तथा शीत
सपाठातेजिनीनिंबैः सूक्तगोमूत्रसाधितः । कषाय और मधुर औषधोंका कवल धारण करे कवलो गुटिकाचाऽत्र कल्पिताप्रतिसारणं
पक्वतालुपाक का उपाय। अर्थ--कंठरोग में त्रिफला, त्रिकुटा, पक्केऽष्टापदवद्भिन्ने तीक्ष्णोष्णैः प्रतिसारणम् । जवाखार, दारुहलदी, चीता, रसौत, पाठा, वृषनिवपटोलाद्यैस्तिक्कैः कपलधारणम् ।
मालकांगनी, नीम इन सवको कांजी और ____ अर्थ-पक्वतालुपाक में तीक्ष्ण और |
गोमूत्र में पकाकर इस काढे का कवलधारण उष्णवीर्य द्रव्यों द्वारा प्रतिसारण करके मंड- अथवा इस काढे से तयार किये हुए गुटका लाप शस्त्र द्वारा शतरंज की चालके समान द्वारा प्रतिसारण करे । छेदन करके अडूसा, नीम और पर्वल आदि उक्त रोग पर लेप । तीक्ष्ण द्रव्यों का कवल धारण करे। निचुलं कटभीमुस्तं देवदारुमहौषधम् ५७
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