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(८४१)
अष्टांगहृदय ।
क्षीरिवृक्षांबुगंडूषो नस्यं तैलं च तत्कृतम् ।। अर्थ-नवीन जिहबालस रोगमें ऐसी है।
अर्थ-विरेचन और नस्यादि द्वारा देह चिकित्सा करनी चाहिये. अर्थात् इसमें सर्ष. और मस्तक दोनोंका संशोधन करके दंत । पादि तीक्ष्ण द्रव्यों के द्वारा प्रतिसारण करे, मूलगत नाली की चिकित्सा करनी चाहिये।
किन्तु इसमें शस्त्रका प्रयोग नहीं करना चाहिये दांतको उखाड कर उस स्थान को अग्नि ।
आधिजिह्वाका उपाय । . से दग्ध करदे । वहुमुख वक्रगति वाली नाली को मेंनफल वा गुडसे भरकर दग्ध करदे ।।
उन्नम्यजिहूवामाकृष्टां बडिशेनाधिर्जि
व्हिकाम् । चमेली, वकुल, खैर, और गोखरू की छेदयेन्मंडलाग्रेण तीक्ष्णोष्णैर्घर्षणादि च टहनियों से दंतधावन करे | बटपिप्पलादि | अर्थ-अधिजिह्वा को बडिश यंत्रसे दूधवाले वृक्षोंके काढे से गंडूष धारण तथा खींचकर और उठाकर मंडलाग्र शस्त्रसे छेदन इन्हीं दूधवाले वृक्षोंसे तेल पकाकर इस तेल करे । पीछे तीक्ष्ण और उष्णवीर्य द्रव्यों से की नस्य ग्रहण करनी चाहिये । घर्षण और प्रतिसारणादि करे। - वातकंटक की चिकित्सा ।
उपजिहवाका उपाय ।। कुर्याद्वाताष्ठकोपोक्तं कंटकेष्वनिलात्मसु ।।
उपजिहयांपरिस्राव्य यवक्षारेण घर्षयेत् । जिह्वायां
अर्थ-उपजिहया को शाकपत्र वा अगुअर्थ-वातात्मक जिह्वाकटकरागमें वातज, भोष्ट प्रकोप में कही हुई चिकित्सा करे ।
लिशस्त्रसे परिस्रावित करके जबाखारसे रिंगडे पित्तजिव्हा का उपाय ।
शूडिका का उपाय ।। पित्तजातेषु घृष्टेषुरुधिरे स्रते । । कफनः शुडिका साध्या नस्यगंडूषघर्षणैः प्रतिसारणगंडूषनावनं मधुरैर्हितम्॥ अर्थ-शुडिका रोगीकी चिकित्सा कफ- अर्थ-पित्तज जिव्हाकंटक रोगमें जिव्हा | नाशक नस्य, गंडूष वा घर्षण द्वारा करे। को रिगड कर रुधिर को निकाले फिर मधुर बृद्धगल शुंडिका का उपाय। द्रव्यों का प्रतिसारण, गंडष, और नस्य ऐर्वारुबीजप्रतिमं वृद्धायामशिराततम् । प्रयोग करे ।
अग्रे निविष्टं जिव्हाया बडिशाधवलंबितम् कफजजिव्हाकंटक ।
छेदयेन्मंडलाओण नात्यग्रेन च मूलतः।
छेदेऽत्यसृक्क्षयान्मृत्युहीने व्याधिविधते तीक्ष्णैः कफोत्थेष्वष्येवं सर्वपञ्यूषणादिभिः
___ अर्थ-गलशुडिका के बढने पर जीभके ___ अर्थ-कफज जिव्हाकंटक रोगमें ऊपर कही हुई रीतिसे जिव्हा को रिगड कर रक्त ।
| अग्रभाग पर दीर्घ आकारवाली काकडी के निकालकर सरसों और त्रिकुटादि तीक्ष्ण
बीज के सदृश जो आकृति पैदा हो जाती द्रव्यों द्वारा प्रतिसारण करे।
है, उसको बडिशादि यंत्रसे पकडकर मंडनवीन जिवालस का उपाय ।।
लाग्र शस्त्र से काट डाले, परन्तु इस बात लवे जिहवालसेऽप्येवं ते तु शस्त्रेण न ।
का ध्यान रखै कि बहुत किनारे की ओर स्पृशेत्॥४४॥ | व जीभ के मुलकी ओर न कटने पावे,
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