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अ. २२
उत्सरस्थान भाषाटीकासमंत ।
(८४७)
बीज, इनका लेप करना चाहिये। घाव भर | को पकाकर इस तेलसे मर्दन करे । इसमें जाने पर सहजना, लोध, जयंती, गजपीपल, कफनाशक धूमपान, वमन और नस्यादि सांठ, कालादाना, गिलोय, आम की नड का सदा सेवन करना चाहिये। अकरकरा के फूल और निसोध इन सब मेदोभव गलगंडका उपाय । . द्रव्यों को सुरा वा कांजी में पीसकर वार मेदोभवे सिरां विध्येत्कफघ्नं च विधि भजेत् बार उनका लेप करै ।
असनादिरजश्चैनं प्रातर्भूप्रेण पाययेत् ७२ गलगंडमें तैलपान । ___ अर्थ--मेदसे उत्पन्न हुए गलगंड में सिरा• गुडूचीनिंबकुटजहंसपादीबलाद्वयैः। वेध और कफनाशक संपूर्ण क्रिया करनी साधितं पाययेत्तैलं सकृष्णादेवदारुभिः। चाहिये । और असनादि की छालका चूर्ण ___ अर्थ- गिलोय, नीम, कुडा की छाल, गोमत्र के साथ प्रातःकाल पान करना चाहिये। हंसपादी, खरैटी, अतिबला, पीपल और अशान्तिमें कर्तव्य । । देवदारू इनके साथ सिद्ध किया हुआ तेल अशांती पाटयित्वा च सर्वान्वणवदाचरेत् गलगंडरोगी को पान कराना चाहिये । अर्थ--ऊपर लिखे हुए उपागोंसे गलगंड
कफज गलगंडका उपाय | की शांति न होनेपर सब प्रकार के गलकर्तव्य कफजेप्येतत्स्वेदविम्लापने त्वति ।। गंडों को शस्त्र से चीरकर घावके सदृश चि. लेपोजगंधातिविषाविशल्यासविषाणिकाः गुंजालाबुशुकाव्हाश्च पलाशक्षारकल्किताः
कित्सा करना चाहिये । अर्थ- कफज गलगंडमें वातज गलगंड | मुखपाक का उपाय । ... के सदृश चिकित्सा करना चाहिये इसमें | मुखपाकेषु सक्षौद्राः प्रयोज्या मुखधावनाः स्वेदन और विम्लापन अधिकता से करना | क्वथितात्रिफलापाठामृद्धीका जातिपलवार चाहिये । तथा अजगंध, अतीस, कलहारी,
| निष्ठेव्याभक्षयित्वावा कुठेरादिगणोऽथवा। मेढासिंगी, चिरमिठी, तूंबी, क्षुद्रमोथा, और
___ अर्थ -मुखपाक रोगमें त्रिफला, पाठा, ढाक का क्षार इन सब द्रव्यों को पीसकर
दाख, चमेली के पत्ते इन सब द्रव्यों के इनका लेप करना चाहिये।
काढे द्वारा मुखको धोना चाहिये । अथवा . उक्तरोगमें क्षारपानादि । ये सब द्रव्य और कुठेरादि गणके द्रव्यों मृत्रशृतं हठक्षार पक्त्वा कोद्रवभुक पिबेत् को चवाकर थूकना चाहिये। साधितं वत्सकाद्यैर्वा तैलं सपटुपंचकैः ।।
। वातजमुखपाक का उपाय । - कफनान् धूमधमननावनादींश्च शीलयेत्
लियत् मुखपाकेऽनिलाकृष्णापट्वेला प्रतिसारणं ___ अर्थ--क्षार पाक की रीतिसे सेवाल के
तैलं पातहरैः सिद्धं हितं कवलनायो। खारको गोमूत्र में पकाकर जलके साथ पान | अर्थ-वातज मुखपाक में पीपल, सेंधा . करे इसमें कोदों का सेवन पथ्यहै अथवा नमक और इलायची इसके द्वारा प्रतिसारण पांचोंनमक और वरसकादि गण के साथ तेल / करे । इसमें वातनाशक द्रव्यों के साथ
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