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भ० १३
उत्तरस्थान भाषाटीकासमेत ।
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अन्य प्रयोग । । धूमरादिरोग की चिकित्सा। . भजामूत्रेण वा कौतीकृष्णास्रोतोजसैंधवैः॥ धूमराज्याम्लपित्तोष्णविदाहे जर्णिसर्पिषा। ____ अर्थ-रेणुका, पीपल, सुर्मा और सेंधा- स्निग्धं विरेचयेच्छीतैः शीतैर्दिह्याच्च सर्वत: नमक इनको बकरी के दूधौ पीसकर बत्ती _ अर्थ--धूमर, अम्लविदग्धा, पित्तविदग्धा बनाकर लगाने से रतौंध जाती रहती है।।
और उष्णविदग्धा दृष्टिमें पुराने घी के द्वारा अन्य प्रयोग ।
अम्यंजन, शीतल द्रव्य द्वारा विरेचन और कालानुसारीत्रिकटुत्रिफलालमनःशिलाः॥ लेपका प्रयोग करना चाहिये । सकेनाश्छागदुग्धेन रात्र्यंधे वर्तयो हिताः।
अन्य अंजन । अर्थ-शैलेय, त्रिकुटा, त्रिफला, हरताल, | गोशकृद्रसदुग्धाज्यर्विपक्कं शस्यतेऽजनम् । मनसिल, और समुद्रफेन इन सब द्रव्यों को स्वर्णगैरिकतालीसचूर्णावापा रसकिया। बकरी के दूवमें पीसकर बत्ती बनाकर अंजन । अर्थ--गोवरकारस, दूध और घी इनके लगाने से रतोंध जाती रहती है । | साथ पकाया हुआ सुर्मा हितकारी होता है, अन्य प्रयोग ।
तथा स्वर्णगेरू और तालीसपत्र के चूर्णसे सनिवेश्य यकृन्मध्ये पिप्पलीरदहस्पचेत युक्त रसक्रिया हितकारी होती है । ताःशुष्कामधुना धृष्टानिशांध्ये श्रेष्ठमंजनम्।
घृतकी नस्य ।। अर्थ-यकृतके बीचमें पीपलों को रखकर मेदाशावरकानंतामंजिष्ठादावियधिभिः। भागपर ऐसी रीतिसे सेके कि जलने न
क्षीराष्टांशं घृतं पक्कं सतैलं नावमं हितम् । पावै । फिर उस पीपल को शहतमें घिसकर
.. अर्थ--मेदा, सावरलोध, अनंतमुल,मजीठ आंखों में आंजें इससे रतोब जाती रहती है ।
दारूहलदी और मुलहटी इन सब द्रव्यों
तथा अठगुने दूध के साथ तेल मिला हुआ अन्य उपाय । खादेच प्लहियकृतीमाहिषे तैलसर्पिषा। घी पकाकर नस्यद्वारा प्रयोग करें। ___ अर्थ-इस रोगों घी और तेल के साथ
. अन्य प्रयोग । . भेतकी तिल्ली और यकृति खाने चाहिये। "तपेण क्षीरसर्पिः स्यादशाम्यति सिरा
_अन्य प्रयोग। घृते सिद्धानि जीवंत्याः पल्लवानिच भक्षयेत्
___ अर्थ--दूधसे उत्पन्न हुए घी का ताण तथातिमुक्तकैरंडशेफाल्यभिरुजानि च।
द्वारा प्रयोग करै । यदि इससे शान्ति न भ्रष्टं घृतकुंभयोनेः पत्रैः पाने व पूजितम् ॥
हो तो सिराबेध करना चाहिये। __ अर्थ-जीवंती के पत्ते, अथवा गावपत्र
अन्य प्रयोग ॥ अंडी के पत्ते, संभालू के पत्ते और शतमूली चिताभिघातभाशोकरौक्ष्यात्सोत्कटका : के पत्ते घी में भूनकर खाना चाहिये तथा
सनात् ॥
विरेकनस्यवमनपुटपाकादिविभ्रमात् । अगस्तिके पत्तोंके साथ घी को पकाकर
| विदग्धाहारवमनाक्षुत्तष्णादिविधारणात् । पीना चाहिये।
| अक्षिरोगावसानाच्च पश्यत्तिमिररोगिवत्
- व्यधः।
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