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अष्टांगहृदय ।
( ८१० )
अर्थ- दारुहलदी और प्रपौंडरीक का काढा आश्चोतन में हितकारी है । संधाव प्रयोग | संधावाश्च प्रयुंजीत घर्षरागाश्रुरुग्धरान् । अर्थ-रिगड, ललाई, भांसू पडना, और वेदना ये सब संधावाख्य औषधों के प्रयोग से जाते रहते हैं ।
अन्य प्रयोग |
ताम्र लोहे मूत्रघृष्टं प्रयुक्तं नेत्रे सर्पिधूपितं वेदनानम् । ताम्रैर्धृष्टो गव्यदभः सरो वा युक्तः कृष्णा संघवाभ्यां वरिष्ठः ॥ ३४ ॥ अर्थ-लोहे के पात्र में गोमूत्र डालकर एक तांबे के टुकड़े को घिसकर उसमें घी की धूनी देकर नेत्रों में, लगावै तो वेदना जाती रहती है, अथवा गौके दूधकी मलाई में तांवा घिसकर उसमें पीपल और सेंधा नमक मिलाकर आंख में आंजने से भी दर्द कम होजाता है ।
अन्य प्रयोग !
शंख ताम्रे स्तन्यघृष्टं घृताकैः शम्याः पत्रैर्धूपितं तद्यवैश्च । नेत्रे युक्तं इंति संधावसंज्ञ क्षिप्रं घर्षे वेदनां चातितीत्राम् ॥ ३५ ॥ अर्थ - तांबे के पात्र में स्त्री के दूध के साथ शंखको घिसकर घृत में भीगे हुए शमीपत्र वा जौ की धूनी देवै । इस संधावसंज्ञक औषधको नेत्र में लगाने से घर्ष और तीव्र वेदना शीघ्र जाते रहते हैं । दाहनाशक प्रयोग |
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अ० १६
गूलर को घिसकर घृताक्त शमीपत्र की धूनी देकर आंख में लगावै इससे दाह, शूल, ललाई, आंसू और हर्ष जाते रहते हैं ।
शोफनाशक प्रयोग | शिग्रुपल्लवनिर्यासः सुघृष्टस्ताम्रसंपुटे ! घृतेनं धूपितो हंति शोकवर्षाश्रवेदनाः ॥ अर्थ- सहजने के पत्तों के रसको तांबे में तांबे से घिसकर घी की धूनी देकर आंख में लगाने से सूजन, घर्ष, आंसू और बेदना जाते रहते हैं । अन्य प्रयोग |
के
पान
तिलांभसा मृत्कपाले कष्ट सुधूपितम् निवपत्रैर्धृताभ्यक्तर्वर्षशूलाथुरागजित् ॥
अर्थ- कांसी के पात्र में तिलके जळके साथ मिट्टी के ठीकरे को घिसकर घृताक्त नीम के पत्तों की धूनी देकर आंख में लगाने से घर्ष, शूल, भांसू और ललाई जाते रहते हैं ।
आश्चोतन | संधावेनांजित नेत्रे विगतौषध वेदने । स्तन्येनाश्चोतनं कार्यं त्रिः परं नांजयेश्च तैः ॥
अर्थ- संधावसंज्ञक औषध के नेत्रों में लगाने के पीछे जब दर्द जाता रहै और औषध का असर भी दूर होजाय तत्र स्त्री के स्तनों का दूध आंखों में टपका । संधाव नामक अंजन तीन बार से अधिक नहीं लगाना चाहिये |
घर्षादिनाशक गुटिका । तालीसपत्रचपलानतलोहरजांजनैः । जातीमुकुलकासीस संधवैर्मूत्रपेषितैः ॥
उदुंबरफलं लोहे घृष्टं स्तन्येन धूपितम् ।
खाम्यैः शमीच्छदेर्दाहशूलरागाहर्षजित् ॥ ताम्रमालिप्य सप्ताहं धारयेत्पेषयेत्ततः । अर्थ - छोहे के पात्र में दूध के साथ | मूत्रेणैवानु गुटिकाः कुर्याच्छायविशोषिताः
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