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(२४)
अष्टांगहृदयं ।
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नाडीयोगदिनोष्ठस्य मालासंधानवाद्विधिः। घ्राणोपरोधनिस्तोदईतशंबशिरोव्यथाः ।
अर्थ-जो नासिका हाल ही में कटी हो । कीटका इव सर्पति मन्यते परितो भ्रवौ। तो भी उक्त रीति से चिकित्सा करनी | स्वरसादश्विरास्पाकःशिशिराच्छकफनुतिः चाहिये । और कटे हुए भोष्ठ में यदि नाडी ___ अर्थ-वातनप्रतिश्याय ( जुकाम ) में का योग न हो तो नासिका के समान मुखशोष, छीकों की अधिकता, कान में चिकित्सा करनी चाहिये ।
रुकावट,निस्तोद,दांत कनपटी और मस्तक इतिश्री मठांगहृदयसहितायां भाषाटी में वेदना. दोनों भकाटियों के चारों ओर
कान्वितायां उत्तरस्थाने कर्णरोग । चींटियों कासा रेंगना, स्वर में शिथिलता, ' प्रतिषधोनामाष्टमोऽध्याय:। चिरकाल में पाक तथा ठंडे और पतले कफका
झडना । ये लक्षण उपस्थित होते हैं । एकोनविंशोऽध्यायः । | पित्तज प्रतिश्याय के लक्षण।
पित्तात्तष्णाज्वरघ्राणपिटिकासंभषभ्रमाः । अथाऽतो नासारोगविज्ञानयिं व्याख्यास्यामः नासाग्रपाको रूक्षोष्णस्ताम्रपीतकफनतिः
अर्थ-अब हम यहां से नासिका रोग अर्थ-पित्तजप्रातश्याय में तृषा, ज्वर, विज्ञानीय नामक अध्याय की व्याख्या करेंगे। नासिका में फुसियों की उत्पत्ति, भ्रम,
दोषों को प्रतिश्यायजनकत्व। नासिका के अप्रभाग में पकाव, तथा सूखे " अवश्यायानिलरजोभायातिस्वप्नजागरैः। गरम, तांवे और पीले रंग के कफका निकनीवात्युच्चोपधानेन पीतेनान्येन वारिणा । लना ये लक्षण उपस्थित होते हैं । अत्यंबुपानरमणच्छर्दिबाष्पग्रहादिभिः।।
कफन मतिश्याय के लक्षण । रुद्धावातोलपणादोषानासायांस्त्यानतांगताः कफाकासोऽरुचिःश्वासोवमथुर्गात्रगौरवम् अनयंति प्रतिश्यायं वर्धमान क्षयप्रदम् ।
अम्। माधुर्य बदने कंः स्निग्धशुक्लघमा मुतिः । अर्थ-ठंड, वायु धूलि, अत्यन्त भाषण, अतिनिद्रा,अतिजागरण,अति नीचा वा अति
अर्थ-कफजप्रतिश्याय में खांसी,अरुचि, ऊंचा तकिया लगाना, अन्यस्थान का
श्वास, वमन,देहमें भारापन, मुख में मौठाजलपान, अति जलपान, जलकलि, वमन
पन तथा खुजली और चिकने सफेद और और वाष्पके वेगको रोकना, इन सब कार
कफका निकलना । ये लक्षण उपस्थित होते हैं णों से वाताधिक्य दोष नासिका में रुककर
त्रिदोषज पतिश्याग ।
सर्वजो लक्षणैःसर्वैरकस्माद्वृद्धिशांतिमान् ॥ गाढे हो जाते हैं और इससे प्रतिश्याय की
___ अर्थ-त्रिदोषज प्रतिश्याय में वातादि उत्पत्ति हो जाती हैं । और प्रतिश्याय के
तीनों दोषों के लक्षण पाये जाते हैं । यह बढने से क्षयी पैदा होजाती है।
वातज अतिश्यायके लक्षण । . अकस्मात् बढभी जाता है और घट भा तन यातात्प्रतिश्याये मुखशोषो भृशं क्षयः । | जाता है ।
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