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. (८०४)
अष्टांगहृदय।
पित्ताधिमंथ के लक्षण। | अमृत निमग्नारिष्टाभं कृष्णमग्न्याभदर्शनम् ज्वलदंगारकीर्णाभं यकृत्पिडसमप्रभम् ९ अर्थ--अधिमंथमें नेत्रों के किनारे तांवे के मधिमंथे भवेन्ने
से रंगके तथा नेत्रों में उखाडने की सी ____ अर्थ-पित्ताभिष्यन्द से उत्पन्न अभिष्यन्द वेदना होती है । इसरोग में बन्दक के फल में नेत्र जलते हुए अंगार के सदृश और के समान ललाई, ग्लानि, हाथका न सहना
और यकृत पिंड के समान कांति वाला हो । रुधिर में निमग्नबत, नीमके सदृश कांति, जाता है।
कालापन और अग्नि के समान चमक कफाभिष्यन्द के लक्षण ।। | होजाती है। स्यदे तु कफसंभवे ।
अधिमंथ में विषेशता । जाइयं शोफोमहान्कंइनिंद्रान्नानभिनंदनम् अधिमथायथास्वंचसर्वस्यदाधिकव्यथाः सांद्रस्मिग्धबहुश्वेतपिच्छावक्षिकाश्रुता। शंखदंतकपोलेषु कपाले चातिरक्करः १५ अधिमंथे नतं कृष्णमुन्नतं शुक्लमंडलम् ११ / ___ अर्थ-वातादि अधिमंथरोगों मे वातजादि प्रसेको नासिकाध्मानं पांशुपूर्णमिवेक्षणम् |
अभिष्यन्द के सब लक्षण उपस्थित होते अधे-कफाभिष्यन्द नेत्र रोग में जडता,
हैं, तथा कनपटी,दांत,खोपड़ी और कपोल महान् सूजन, खुजली,निन्द्रा, अन्न में अन
में अधिक वेदना होती है। भिलाषा, आंखों के मैल और आंसुओं में
शुष्काक्षिपाक के लक्षण । गाढापन, स्निग्धता, अधिकता, श्वेतता
घातपित्तोत्तरं घर्षतोदभेदोपदेहयतः। और पिच्छिलता होती है। तथा आधिमंथ
रूक्षदारुणवाक्षिकृच्योन्मीलनमीलनम्१६ रोग में काले मण्डल में नचिापन और विकृणनं विशुष्कत्वं शीतेच्छा शूलपाकवत् सफेद मण्डल में ऊंचापन होता है । प्रसेक उक्तः शुष्काक्षिपाकोऽयं नासिका में फूलापन, नेत्रों में धूलसी भर
अर्थ-इसरोग में नेत्रमें करकरापन,तोद, जाना ये सव लक्षण उपस्थित होते हैं।
| कटनेकी सी वेदना, मलकी हिसावट, नेत्र रक्ताभिष्यन्द के लक्षण ।।
के वमों में रूक्षता और कर्कशता, आंखों रक्ताश्रराजीदूषीकशुक्लमंडलदर्शनम् १२ के खोलने और बन्द करने में कष्ट होना, रक्तस्यदेन मयनं सपित्तव्यं दलक्षणम् ।। | आंख में सुकडापन, सूखापन, शीतल वस्तु ___अर्थ- रक्ताभिष्यन्द में आंसू,नेत्र की शिरा, की इच्छा, शूल और पाक ये सब लक्षण
आंखका मल, शक्लमंडल और दृष्टिमंडल ये उपस्थित होते हैं । इस रोम को शुष्काक्षिसब लाल हो जाते हैं, तथा इसमें पित्ताभि- पाक कहते हैं, यह रोग वातपित्त की अधि. ध्यन्द के संपूर्ण लक्षण पाये जाते हैं ! कता से होता है । रक्ताधिमंथ के लक्षण ।
सूजनवाला नेत्ररोग । मंथेऽक्षि ताम्रपर्यंतमुत्पाटनसमानरुक १३/ सशोफः स्यादिभिर्मलः ॥ १७ ॥ रागेण बंधूकनिभं ताम्यति स्पर्शनाक्षमम् । सरक्तैस्तत्र शोफोऽतिरुग्दाहष्टीयनादिमान् ।
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