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(८०२)
- अष्टांगहृदय ।
अ० १५
लो बकरी के दूधर्म सानकर और आगपर | अर्थ-अडहर की जड, कालीमिरच, गुनगुना करके लेप करनेसे विशेष उपकार | हरताल और रसौत इन सब द्रव्यों को वृष्टि होता है।
के जलमें पीसकर और गुड मिलाकर बत्ती आश्चोतनविधि। | बनाकर विद्ध नेत्रमें लगावे । रोधसैंधवमृद्धीकामधुकैश्छागलं पयः । विद्धनेत्रमें पिंडाजन ॥ शुतमाश्चोतन योज्यं रुजारागविनाशनम् ।
जातीशिरीषधवमेषविषाणिपुष्पअर्थ-लोध, सेंधानमक, दाख और मु. वैडूर्यमौकिकफलं पयसा सुपिष्टम् । लहटी इन सब द्रव्यों को बकरी के दूधमें आजेन ताम्रममुना प्रतनु प्रदिग्धं । पकाकर आश्चोतन (आंखमें टपकाना)
सप्ताहतःपुनरिदं पयसैव पिष्टम् ३१
पिंडांजनं हितमनातपशुष्कमक्षिण करने से वेदना शांत होजाती है ।
विद्ध प्रसादजनन बलकश्च दष्टेः । अन्य प्रयोग।
अर्थ-चमेली, सिरस, धायके फूल, मधुकोत्पलकुष्टैर्वा द्राक्षालाक्षासितान्वितैः । वातघ्नसिद्धे पयसि शृतं सर्पिश्चतुर्गुणे ।।
मेंढासिंगी, वैदर्यमणि, मोती इन सब द्रव्यों पनकादिप्रतीवापं सर्वकर्मसु शस्यते २८ ।
को बकरी के दृधमें पीसकर इसको एक अर्थ-मुलहटी, नीलकमल, कूठ, दाख, तांबके पात्र पर पतला पतला लीपदे । एक लाख और चीनी इन सब द्रव्यों को बकरी सप्ताह पीछे तांबे के पात्रके प्रलेपको बकरी के दूधमें पकाकर आश्चोतन करे । वात- | के दूधर्मे फिर पीसे | फिर इस पिंडाजन को नाशक द्रव्यों के काढे के साथ घी से चौ. छाया में सुखाकर बिद्ध नेत्रमें लगावे । यह गुना दूध और पद्म कादिगण का कल्क डाल | दृष्टिको प्रफुल्लित करनेवाला और बलकारक है कर पाकविधि से घृत पकाकर आश्चोतन
अन्य प्रयोग । के काम में लाये।
स्रोतोजविद्यमशिलांबुधिफेनतक्षिणसिरामोक्षादि ॥
रस्यैव तुल्यमुदितं गुणकल्पनाभिः । सिरां तथानुपशमे स्निग्धस्विन्नस्य मोक्षयेत् ।
अर्थ-सुर्मा, मुंगा, मनसिल और समुमंथोक्तां च क्रियां कुर्याव्यधे रूढेऽजनं मृद! द्रफेन इन सब द्रव्यों को बकरी के दूधमें ___ अर्थ-उपर कही हुई बिधियों से वेदना पीसकर पूर्ववत् पिंडांजन फरे । यह भी शांत न होने पर रोगीको स्निग्ध और स्विन्न । पूर्वोक्त गुणविशिष्ट होता है। करके उसकी सिरा को खोल दे, तथा गंथ- | इतिश्री अष्टांगहृदयसंहितायां भाष टीरोग में कही हुई चिकित्सा काममें लावै ।
कान्वितायां उत्तरस्थाने लिंगनाश. सिराव्यधका घाव सूखजाने पर अंजन लगावै। विद्ध नेत्र में वर्ति ॥
प्रतिषधं नाम चतुर्दशोऽध्यायः । आढकीमूलमरिचहरितालरसांजनैः ।। विशेऽक्षिणसगुडावर्तिर्योज्यादिव्यांबुपषिता.
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