SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 894
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भ० १३ उत्तरस्थान भाषाटीकासमेत । (७९७ ) - अन्य प्रयोग । । धूमरादिरोग की चिकित्सा। . भजामूत्रेण वा कौतीकृष्णास्रोतोजसैंधवैः॥ धूमराज्याम्लपित्तोष्णविदाहे जर्णिसर्पिषा। ____ अर्थ-रेणुका, पीपल, सुर्मा और सेंधा- स्निग्धं विरेचयेच्छीतैः शीतैर्दिह्याच्च सर्वत: नमक इनको बकरी के दूधौ पीसकर बत्ती _ अर्थ--धूमर, अम्लविदग्धा, पित्तविदग्धा बनाकर लगाने से रतौंध जाती रहती है।। और उष्णविदग्धा दृष्टिमें पुराने घी के द्वारा अन्य प्रयोग । अम्यंजन, शीतल द्रव्य द्वारा विरेचन और कालानुसारीत्रिकटुत्रिफलालमनःशिलाः॥ लेपका प्रयोग करना चाहिये । सकेनाश्छागदुग्धेन रात्र्यंधे वर्तयो हिताः। अन्य अंजन । अर्थ-शैलेय, त्रिकुटा, त्रिफला, हरताल, | गोशकृद्रसदुग्धाज्यर्विपक्कं शस्यतेऽजनम् । मनसिल, और समुद्रफेन इन सब द्रव्यों को स्वर्णगैरिकतालीसचूर्णावापा रसकिया। बकरी के दूवमें पीसकर बत्ती बनाकर अंजन । अर्थ--गोवरकारस, दूध और घी इनके लगाने से रतोंध जाती रहती है । | साथ पकाया हुआ सुर्मा हितकारी होता है, अन्य प्रयोग । तथा स्वर्णगेरू और तालीसपत्र के चूर्णसे सनिवेश्य यकृन्मध्ये पिप्पलीरदहस्पचेत युक्त रसक्रिया हितकारी होती है । ताःशुष्कामधुना धृष्टानिशांध्ये श्रेष्ठमंजनम्। घृतकी नस्य ।। अर्थ-यकृतके बीचमें पीपलों को रखकर मेदाशावरकानंतामंजिष्ठादावियधिभिः। भागपर ऐसी रीतिसे सेके कि जलने न क्षीराष्टांशं घृतं पक्कं सतैलं नावमं हितम् । पावै । फिर उस पीपल को शहतमें घिसकर .. अर्थ--मेदा, सावरलोध, अनंतमुल,मजीठ आंखों में आंजें इससे रतोब जाती रहती है । दारूहलदी और मुलहटी इन सब द्रव्यों तथा अठगुने दूध के साथ तेल मिला हुआ अन्य उपाय । खादेच प्लहियकृतीमाहिषे तैलसर्पिषा। घी पकाकर नस्यद्वारा प्रयोग करें। ___ अर्थ-इस रोगों घी और तेल के साथ . अन्य प्रयोग । . भेतकी तिल्ली और यकृति खाने चाहिये। "तपेण क्षीरसर्पिः स्यादशाम्यति सिरा _अन्य प्रयोग। घृते सिद्धानि जीवंत्याः पल्लवानिच भक्षयेत् ___ अर्थ--दूधसे उत्पन्न हुए घी का ताण तथातिमुक्तकैरंडशेफाल्यभिरुजानि च। द्वारा प्रयोग करै । यदि इससे शान्ति न भ्रष्टं घृतकुंभयोनेः पत्रैः पाने व पूजितम् ॥ हो तो सिराबेध करना चाहिये। __ अर्थ-जीवंती के पत्ते, अथवा गावपत्र अन्य प्रयोग ॥ अंडी के पत्ते, संभालू के पत्ते और शतमूली चिताभिघातभाशोकरौक्ष्यात्सोत्कटका : के पत्ते घी में भूनकर खाना चाहिये तथा सनात् ॥ विरेकनस्यवमनपुटपाकादिविभ्रमात् । अगस्तिके पत्तोंके साथ घी को पकाकर | विदग्धाहारवमनाक्षुत्तष्णादिविधारणात् । पीना चाहिये। | अक्षिरोगावसानाच्च पश्यत्तिमिररोगिवत् - व्यधः। For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy