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अष्टांगहृदय ।
अन्य अंजन | दद्यादुशीरनिर्यूहन्चूर्णितं कण सैंधवम् ॥ तच्छ्रतं सघृतं भूयः पचेत्क्षौद्रं घने क्षिपेत् । शीते चास्मिन् हितमिदं सर्वजे तिमिरे
. मज्ना से भरी हुई अस्थि लाकर उस
सुरमा भरकर बहते हुए पानी में एक महिने वा बीस दिन तक रक्खे | फिर निकालकर धूपमें सुखाले । इस हड्डी को मेटासिंगी के क और मुलहटी के साथ पीसकर आंखों में लगा । सान्निपातिक तिमिररोग में यह अंजन उत्तम है । काचरोग में कर्तव्य |
फूल
काचेऽप्येष क्रिया मुक्त्वा सिरां यंत्रअध्याय स्युर्मला दद्यात्स्राव्ये रक्ते
निपीडिताः ॥
अंजनकाचयापन |
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गुडः फेनांजनं कृष्णा मरिचं कुंकुमाद्रजः ॥ सक्रियेयं खक्षौद्रा काचयापनमंजनम् ।
ऽजनम् ॥ अर्थ - खस के काढ़े में पीपल और सेंधेनमक का चूर्ण डालकर पकावे । फिर इसमें घृत मिलाकर फिर पका । जब काथ गाढा होजाय तब उतारकर ठंडा होने पर इसमें शहद मिला देवै । इसको आंजने से त्रिदोषज तिमिररोग जाता रहता है । सान्निपातिक तिमिर में अंजन । अस्थीनि मज्जपूर्णानि सत्त्यानां रात्रिचारिणाम् । स्रोतोजनयुक्तानि वहत्यभसि वासयेत् । मालं विंशतिरात्रं वा ततश्चोद्धृत्य शोषयेत् | रोक्त क्रिया हित है ।
अर्थ- गुड, समुद्रफेन, सुर्मा, पीपल, कालीभिरच और कुंकुम इनके चूर्ण में शहद मिला । यह रसक्रिया काचरोग में उत्तम अंजन है ।
नक्तान्ध्यनाशक वर्ति ।
समेषशृंगीदुष्पाणिष्टयावानितानि तु । चूर्णितान्यजनं श्रेष्ठं तिमिरे सान्निपातिके । | रसक्रियाघृतक्षौद्रगोमयस्वरसद्रुतैः ॥ अर्थ - रात में फिरनेवाले प्राणियों को तार्क्ष्यगैरिकतालीसैर्निशांध्ये हितमंजनम् । अर्थ - रसौत, गेरू और तालीसपत्र इन सव द्रव्यों के चूर्ण को घी, शहत और गोवर के रस में मिलाकर रतोंध में अंजन लगाना चाहिये ।
रतोधनाशक वर्ति ।
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दना विघृष्टं मरिचं रात्र्यांध्ये जनमुत्तमम् ॥ अर्थ- दही में कालीमिरच घिसकर नेत्रों में लगाने से रतौंध जाती रहती है। अन्य प्रयोग | करांजेकोत्पलस्वर्णगैरिकांभोज केसरैः ॥ पिष्टेगम यतोयेन वर्तिर्दोषांध्यनाशिनी ।
जलौकसः ।
अर्थ-शिराव्य को छोड़कर यहीं चिकित्सा काचरोग में करनी चाहिये । शिरो
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अ० १३.
पयोगी यंत्रद्वारा निपीडित दोष अध्यरोग
को उत्पन्न करते हैं यदि रक्त निकालने की आवश्यकता हो तो जोक लगादे पर फस्द न खोले ।
रतोधका अंजन |
नकुलांधे त्रिदोषोत्थे तैमिर्यविहितो विधिः अर्थ-त्रिदोषज नकुलांध नेत्ररोगमें तिमि -
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अर्थ-कंजा, कमल, स्वर्णगरू और कमलकेसर इनको गोवर के रस में पीसकर बत्ती बनाकर लगाने से रतौध जाती रहती है ।