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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ( ७९६ ) www.kobatirth.org अष्टांगहृदय । अन्य अंजन | दद्यादुशीरनिर्यूहन्चूर्णितं कण सैंधवम् ॥ तच्छ्रतं सघृतं भूयः पचेत्क्षौद्रं घने क्षिपेत् । शीते चास्मिन् हितमिदं सर्वजे तिमिरे . मज्ना से भरी हुई अस्थि लाकर उस सुरमा भरकर बहते हुए पानी में एक महिने वा बीस दिन तक रक्खे | फिर निकालकर धूपमें सुखाले । इस हड्डी को मेटासिंगी के क और मुलहटी के साथ पीसकर आंखों में लगा । सान्निपातिक तिमिररोग में यह अंजन उत्तम है । काचरोग में कर्तव्य | फूल काचेऽप्येष क्रिया मुक्त्वा सिरां यंत्रअध्याय स्युर्मला दद्यात्स्राव्ये रक्ते निपीडिताः ॥ अंजनकाचयापन | 1 | गुडः फेनांजनं कृष्णा मरिचं कुंकुमाद्रजः ॥ सक्रियेयं खक्षौद्रा काचयापनमंजनम् । ऽजनम् ॥ अर्थ - खस के काढ़े में पीपल और सेंधेनमक का चूर्ण डालकर पकावे । फिर इसमें घृत मिलाकर फिर पका । जब काथ गाढा होजाय तब उतारकर ठंडा होने पर इसमें शहद मिला देवै । इसको आंजने से त्रिदोषज तिमिररोग जाता रहता है । सान्निपातिक तिमिर में अंजन । अस्थीनि मज्जपूर्णानि सत्त्यानां रात्रिचारिणाम् । स्रोतोजनयुक्तानि वहत्यभसि वासयेत् । मालं विंशतिरात्रं वा ततश्चोद्धृत्य शोषयेत् | रोक्त क्रिया हित है । अर्थ- गुड, समुद्रफेन, सुर्मा, पीपल, कालीभिरच और कुंकुम इनके चूर्ण में शहद मिला । यह रसक्रिया काचरोग में उत्तम अंजन है । नक्तान्ध्यनाशक वर्ति । समेषशृंगीदुष्पाणिष्टयावानितानि तु । चूर्णितान्यजनं श्रेष्ठं तिमिरे सान्निपातिके । | रसक्रियाघृतक्षौद्रगोमयस्वरसद्रुतैः ॥ अर्थ - रात में फिरनेवाले प्राणियों को तार्क्ष्यगैरिकतालीसैर्निशांध्ये हितमंजनम् । अर्थ - रसौत, गेरू और तालीसपत्र इन सव द्रव्यों के चूर्ण को घी, शहत और गोवर के रस में मिलाकर रतोंध में अंजन लगाना चाहिये । रतोधनाशक वर्ति । I दना विघृष्टं मरिचं रात्र्यांध्ये जनमुत्तमम् ॥ अर्थ- दही में कालीमिरच घिसकर नेत्रों में लगाने से रतौंध जाती रहती है। अन्य प्रयोग | करांजेकोत्पलस्वर्णगैरिकांभोज केसरैः ॥ पिष्टेगम यतोयेन वर्तिर्दोषांध्यनाशिनी । जलौकसः । अर्थ-शिराव्य को छोड़कर यहीं चिकित्सा काचरोग में करनी चाहिये । शिरो Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ० १३. पयोगी यंत्रद्वारा निपीडित दोष अध्यरोग को उत्पन्न करते हैं यदि रक्त निकालने की आवश्यकता हो तो जोक लगादे पर फस्द न खोले । रतोधका अंजन | नकुलांधे त्रिदोषोत्थे तैमिर्यविहितो विधिः अर्थ-त्रिदोषज नकुलांध नेत्ररोगमें तिमि - For Private And Personal Use Only अर्थ-कंजा, कमल, स्वर्णगरू और कमलकेसर इनको गोवर के रस में पीसकर बत्ती बनाकर लगाने से रतौध जाती रहती है ।
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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