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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ०१३ उत्तरस्थान भाषाठीकासमेत । (७९५) - अर्थ--नेत्रवाला, देवदारु, हलदी, दारु. । करनी चाहिये, इसमें शीतोपचार द्वारा हलदी और पीपल इनका कल्क तथा दूध चिकित्सा की जाती है। और दसमूल का काढा इन सबके साथ । ___रक्तज तिमिर की औषध । .. पाक विधि के अनुसार तेल पकाकर नस्य द्राक्षया नलदरोध्रयष्टिभिः द्वारा प्रयोग करे । शंखताम्रहिमपद्मपद्मकैः। सोत्पलैश्गलदुग्धवर्तितेकोकिलावर्ती। रन तिमिरमाशु नश्यति ॥ ७३ ॥ शंखप्रियगुनेपालीकटुत्रिकफलत्रिकैः।। दृग्वैमल्यायविमला वर्तिः स्यात्कोकिलापुनः | __ अर्थ-दाख, बालछड, मुलहटी, शंख, कृष्णलोहरजोव्योषसैंधवत्रिफलांजनैः। तावा, कपूर, कमल, पदमाख और नीलोत्पल ___ अर्थ-शंख, मालकांगनी, मनासल, त्रि. इनको बकरी के दूध में अच्छी तरह पीसकुटा और त्रिफला इन सब द्रव्यों से. बनाई कर बत्ती बनाकर नेत्रों में लगाने से तिमिर हुई वर्ति को विमल वर्ती कहते हैं. यह दाथि रोग शीघ्र जाता रहता है। के मैल को दूर करती है | तथा कृष्णलोह संसर्गज तिमिर की चिकित्सा । . चूर्ण, त्रिकुटा, सेंधानमक, त्रिफला और संसर्गसन्निपातोत्थे यथा दोषोदयं क्रिया । सौवीरांजन इनसे बनाई हुई बत्ती को को- अर्थ-संसर्गज और संनिपातज तिमिर किलावर्ति कहते हैं। यह भी दृष्टि को रोग में दोष के अनुसार चिकित्सा करनी निर्मल करती है। चाहिये। तिमिरशुक्रनाशिनी बत्ती। नस्य और मुखलेप । शशगोखरसिंहोष्टद्विजालालाटमस्थिच ७१ सिद्धं मधूककृमिजिन्मरिचामरदारूभिः ७४ श्वेतगावालमरिचशंखचंदनफेनकम । सक्षीरं नावनं तैलंपिलेपो मुखस्य च । पिष्टस्तम्याजदुग्धाभ्यां वर्तिस्तिमिरशुक्राजित् अर्थ-मुलहटी, बायबिडंग, कालीमिरच, ___ अर्थ-खर्गोश, गौ, गधा, सिंह और | देवदारु इनका कल्क करके दूध के साथ ऊंट इनके दांत और ललाट की अस्थि, तेल पकाकर नस्य का प्रयोग करे अथवा सफेद गौ की पूछ के बाल, काली मिरच, । उक्त द्रब्यों को जल में पीसकर मुख पर शंख, चंदन, और समुद्रफेन इन सब द्रव्यों | लेप करे । को स्त्री के दूध और बकरी के दूध में नस्य और शिरोवस्ति । पीसकर तयार करे, इसको नेत्रों में लगाने | नतनीलोत्पलानंतायष्टयाहसुनिषण्णकः ॥ से तिमिर और फूला जाते रहते हैं। साधितं नावने तैलं शिरोवस्तौ च शस्यते। .. रक्तज तिमिर का उपाय । अर्थ तगर, नीलकमल, धमासा, मुलरतजे पित्तवत्सिद्धिः शीतैश्वानप्रसादयेत् हटी, चौपतिया इन से सिद्ध किया हुआ , अर्थ-रक्तन तिमिर के सदृश चिकित्सा तेल नस्य और शिरोवस्ति के काममें लावे। For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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