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(७४८)
अष्टांगहृदय ।
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दुई संपूर्ण औषधियों को प्रस्तुत करके पान, नागेंद्रद्विजशूगर्हिगुमरिनस्य, अंजन, आलेप और देहपर घर्षण
चैस्तुल्यैः कृतं धूपनम् ।
स्कंदोन्मादपिशाचराक्षद्वारा प्रयोग करे यह पूर्ववत् गुणयुक्त है
ससुरावेशज्वरघ्नं परम् , ॥ १८ ॥ और राजदार में सिद्धिका देनेवाला है । ___ अर्थ-बिनौला, मयूरपुच्छ, वडोकटेरी, अन्य प्रयोग ।
शिवनिर्माल्य, पिंडीतक, दालचीनी, जटासिद्धार्थकव्योषववाश्वगंधा।
मांसी, विल्ली का विष्टा, तुष, बच, केश, निशाद्वयं हिंगुपलांडुकंदम् ।।
सर्पकी काचली, हाथीदांत, सींग, हींग, बीजं करंजात्कुसुमं शिरीषात् फलं च वल्कश्च कपित्थवृक्षात् १५
कालीमिरच, इन सबको समान भाग लेकर समाणिमंथं सनतं सकुष्टं
सबकी धूनी स्कंद, उन्माद, पिशाच, स्योनाकमूलं किणिही सिता च। राक्षस, देवग्रहों का आवेश और ज्वर को बस्तस्य मूत्रेण विभावितंतत्
दूर करदेती है। पित्तन गव्येन गुडान् विदध्यात् १६ ॥ दुष्टब्रणोन्मादतमो निशांधा
भूतरावादय घृत । नुद्वद्धकान् वारिनिमग्नदेहान् ।
त्रिकटुकदलकुंकुमग्रंथिकक्षारसिंहीदिग्धाहतान् दर्पितसर्पदष्टां
निशादारुसिद्धार्थयुग्मांबुशकावयैः । स्ते साधयंत्य जननस्यलेपैः ॥ १७ ॥
सितलशुनफलत्रयोशारीहतायचा. अर्थ-सफेद सरसों, त्रिकुटा, वच, अस- तुत्थयष्टीवलालोहितेलाशिलापत्रकैः । गंध, दोनों हलदी, हींग, प्याज, कंजाके दथितगरमधूफसारप्रियावाविशाबीज, सिरस के फूल, कैथके फल और छाल ।
ख्याविषाताय शैलैः सचव्यामयः ।
कल्कितै तमनवमशेषमृतांशसिद्धं मतम्सेंधानमक, अगर, कूठ, श्योनामून, किण
भूतरावाह्वयं पानतस्तद् ग्रहध्मं परम् १९ ही और मिश्री, इन सबको बकरे के मुत्रकी
___ अर्थ-त्रिकुटा, तमालपत्र, कुंकुम, पीपभावना देकर गौके पित्ते में मर्दन करके गो
लामूल, जवाखार, कटेरी, हलदी, देवदारू, लियां बनालेवे । इन गोरियों का नस्य,
सफेद सरसों, पीलीसरसों, नेत्रवाला, इन्द्रजी अंजन और लेप द्वारा प्रयोग करनेसे दुष्ट
सफेद लहसन, त्रिफला, खस, कुटकी, बच, ब्रण, उन्माद, तिमिर, रतोंधों तथा उद्वद्धक
नीलाथोथा, मुलहटी, खरैटी, रक्तचन्दन, जलेमें डूबे हुए देहवाले को, लेपसे आहत इलायची, मनसिल, पदमाख, दही, तगर, फो, क्रोधी सर्पसे काटे हुओं को गुणकारकहै ।
महुआ,मालकांगनी,अतीस,काकोली, रमौत, । स्कंदादिनाशक धूनी । चव्य और कूठ । इन सब द्रव्योंका कल्क काजास्थिमयूरापिच्छ
और गोमूत्रादि अष्टमूत्र के साथ सिद्ध किया वृहतीनिर्माल्यपिडीतकत्वङ्मांसीवृकदंशविटूतु
हुआ नवीन घी पान करनेसे ग्रह नष्ट हे। षवचाकेशाहिनिर्मोचनैः। जातेहैं । इस उत्तम घृतका नाम भूतरावहै ।
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