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अ. ८
उत्तरस्थान भाषाटीकासमेत ।
अर्थ - रक्त के कारण से धर्ममें लालरंग । के भागमें छोटे छोटे छिद्र हो जाते हैं और की फुसी पैदा हो जाती हैं और इन फुसि- धर्म स्रावयुक्त तथा जलमें स्थित कमलनाल यों के चारों ओर वैसी ही और भी फुसियां । की तरह सछिद्र होता है, इस रोग को वि. हो जाती हैं। इस रोग को उत्संग कहते हैं। सवर्म कहते हैं । उलिष्ट वर्मरोग।
उक्लिष्ट वम । तथोकिलष्टं राजिमत्स्पर्शनाक्षमम् १२॥ यद्वोक्लिष्टमुक्लिष्टमकस्मान्म्ला__ अर्थ-उत्संग के सदृश ही उक्लिष्ट ना
नतामियात् । मक वर्मरोग होता है, इसमें रेखासी होती हैं रक्तदोषत्रयोत्क्लेशाद् वदंत्युक्लिष्टवर्म तत् और हाथ नहीं लगाया जाता है ।
___ अर्थ-रक्त और बातादि तीनों दोषों के नेत्रार्श के लक्षण । उत्क्लेश के कारण वर्म उक्लिष्ट होकर अक. अर्थोऽधिमांसं वर्मातः स्तब्धं स्निग्ध- | स्मात् स्तब्ध होकर म्लान हो जाता है, उसे
सदाहरुक् । उक्लिष्ट वर्म कहते हैं। रक्तं रक्तेन तनावीछिन्नं छिनंच वर्धते १३
श्याव वमके लक्षण । अर्थ-वर्मके भीतर की ओर रक्तके का | श्याववर्त्म मलैः सानैःश्यांघरुकक्लेदशोफवत् रण एक मासका अंकुर पैदा हो जाता है यह | अर्थ-रक्त अथवा वातादि दोषोंके कास्तब्ध, स्निग्ध, दाह और वेदना से युक्त ला- | रण वम श्याववर्ण तथा वेदना, वेद और ल रंग का होता है, इसमें से रक्तका स्राव | | सूजनसे युक्त होजाताहै तब इसे श्यावयम हुआ करता है, यह बार बार छिन्न होनेपर कहते हैं। भी बढ जाता है, इसे नेत्रार्श कहते हैं। श्लिष्टवर्त्मके लक्षण ।
श्लिष्टाख्यवर्मनी श्लिष्टे कंडूश्वयथुरागिणी __आंजन पिटिका।
अर्थ- जिस रोगमें नेत्रके ऊपर नीचे मध्ये बावमनोऽतेवाकण्डूषारुग्वती स्थिरा | के पलक गीडके कारण चिपट जाते हैं, तथा मुद्रमापासृजा ताना पिटिकांजननामिका ॥
नेत्रों में खुजली, सूजन और ललाई पैदा ___ अर्थ-रक्तके कारण से वर्मके बीचमें वा
होनाती हैं, उसे श्लिष्टवर्त्म कहते हैं। किसी किनारे की तरफ खुजली, दाह और वेदना
किसी पुस्तक में श्लिष्टकी जगह 'क्लिष्ट' से युक्त, कठोर मूंगके बराबर तांबेके से रंग
पाठ भी है। की फुसियां होती हैं इसे अंजनरोग कहते हैं |
सिकतावम॑ । विसवमके लक्षण । पद्मनोऽसासराकक्षाःपिटिकाासिकतोपमाः दोषैर्वमै पहिःशून यदंतः सूक्ष्मखाचितम्। सिकतावम सम्रावमंतरुदक बिसाभं विसबर्त्म तत् १५ अर्थ-नेत्रके पलकों के भीतर खरदरी
अर्थ-वातादि दोषों के कारण नेत्रों के और रूक्ष फुसियां बालके समान पैदा हो वर्मका वहिर्भाग सूज जाता है और भीतर जाती हैं, इन्हें सिकतावम कहते हैं ।
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