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म. ८
उत्तरस्थान भाषाटीकासमेत ।
(७६३ )
असाध्यकी चिकित्सा । | अर्थ-अब हम यहांसे धर्मरोग विज्ञासमं ऋद्धरपस्मारोदोषैः शारीरमानसै। नाय नामक अध्याय की व्याख्या करेंगे। यजायते यतश्चष महाममसमाश्रयः॥
नेत्ररोगकी संप्राप्ति । तस्मादसायनरेनं दुश्चिकित्स्यमुपाचरेत्। सर्वरोगनिदानोक्तैरहितैः कुपिता मलाः ॥१॥ तदात चाग्नितोयादेविषमात्पालयेत्सदा ॥ | अचक्षुष्यविशेषेण प्रायः पित्तानुसारिणः ॥ ___अर्थ-शारीरक और मानसिक संपूर्ण शिराभिरूवं प्रसृता नेत्रावयवमाश्रिताः। दोष एक साथ कुपित होकर अपस्मार रोग बमसधि सितं कृष्णं रष्टिवा सर्वमक्षि या को उत्पन्न करते हैं तथा यह रोग महामर्म रोगान् कुर्युः का आश्रय लेकर उत्पन्न होता है इसलिये
____अर्थ-कठिनता से खोलने मूदने आदि यह अपस्मार रोग असाध्य होजाता है । इस
पलकों के रोगको वर्त्मरोग कहते हैं । सर्व. दुश्चिकित्स्यरोग की रसायन द्वारा चिकित्सा
रोगनिदानोक्त का तिक्तादि अहित आहार करना उचितहै । तथा इस रोगके होनेपर
और बिहार द्वारा तथा विशेष करके उन रोगी को आग्नि और जलके विषम स्थलों
| कारणों से जो नेत्रों को अहित हैं संपूर्ण से सदा बचाता रहै ।
दोष प्रकुपित और पित्तानुगामी होकर संपूर्ण . कुत्सित वाक्योंका निषेध । सिराओं के द्वारा जत्रुसे ऊपर फेंके जाकर मुकं मनोविकारेण त्वमित्थ कृतवानिति। | नेत्रके अवयवों को अर्थात् वर्मकी संधियों न अयाद्विषयैरिष्टैः क्लिष्टं चेतोऽस्थ वृहयेत् ॥ को वा सफेद भाग को वा काले भाग को
अर्थ-जब अपस्मार रोगी का अपस्मार वा दृष्टिको वा संपूर्ण नेत्रगोलक को ग्रहण का वेग शांत हो जाय, तब उस रोगी से करके अनेक प्रकार के नेत्ररोगों को उत्पन्न वेग के समय का कुछ भी वृत्तान्त न कहै कर देते हैं। कि तूने यह किया था, वा तेरी ऐसी दशा कृच्छ्रोन्मीलन के लक्षण । होगई थी। तथा उसके क्लिष्ट चित्तको प्रिय चलस्तत्र प्राप्य वर्माश्रयाः सिरा। • वाक्यों द्वारा सुस्थ करनेका उपाय करै। सुप्तोत्थितस्य कुरुते वर्मस्तंभ सवेदनम् ॥
पांशुपूर्णाभनेत्रत्वं कृच्छ्रोन्मीलनमश्रु च। इतिश्री अष्टांगहृदयसहितायां भाषाटी
विमर्दनात्स्याश्च शमः कृच्छ्रोन्मीलकान्वितायां उत्तरस्थाने अपस्मार
वदंति तम् ॥४॥ प्रतिषेधोनातसप्तमोऽध्यायः॥७॥ अर्थ-प्रकुपितवायु नेत्रों के वर्मभाग
वाला संपूर्ण शिराओं का आश्रय लेकर अष्टमोऽध्यायः। सोकर उठे हुए मनुष्य के नेत्रों में पद्मस्तंभ
अर्थात् नेत्र के कोयों में स्तब्धता करदेता अयाऽतो वमरोगविज्ञानीयमध्याय
है, इस रोग में वेदना, आंखों में धूलसी व्याख्यास्यामः। | भरना, कठिनता से आंखों का खुलना और
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