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अ० ११
उत्तरस्थान भाषाकासमेत ।
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मले के काढे में पीसकर इनसे एक तांवे | शुक्रहर्षण अंजन । के पात्र को लीपदे । फिर इस पात्र को जौ धात्रीफणिजकरसे क्षारोलांगलिकोपः। घी और आमले के पत्तों की बारबार धूनी
उषितः शोषितश्चूर्णः शुमहर्षणमंजनम् ।
___ अर्थ-आमले और मरुए के रसमें क. दे, फिर उस पात्र की औषधको जल और
लहारी के खारको भिगोकर दूसरे दिन धूप शहत से मर्दन करके गोलियां बना लेवै ।
में सुखाकर पीसकर लगाने से फुली का इन गोलियों का नाम महानीला है । ये
हर्षण दूर होजाता है । शुद्ध शुक्र को दूर करने के लिये परमोत्तम
मुद्गनिन । औषध है।
मुद्गा वा निस्तुषोः पिष्टाशंखक्षौद्रसमायुताः अन्य प्रयोग ।
सारोमधूकान्मधुमान्मजावाक्षात्समाक्षिका स्थिरे शुक्रे घने चाऽस्य बहुशोऽपहरेदसृक् अर्थ-छिलके दूर किये हुए मुंग, शंख सिरः कायविरेकांश्च पुटपाकांश्च भूरिशः। और मधु मिलाकर पीसकर इनका अंजन .
अर्थ-रोगी का शुक्र कठोर हो तो बार अथवा महुआ के सार में शहत मिलाकर बार रक्तमोक्षण तथा बार बार शिरोविरेचन,
| अथवा बहेडे के गूदे में शहत मिलाकर फायविरेचन और पुटपाक देना चाहिये।
| अंजन बनाकर लगाने से शुक्ररोग जाता . शुक्रपर घर्षण ।
रहता है। कुर्यान्मरिचवैदेहीशिरीषफलसंधवैः।।
हृष्टशुक्र नाशक बटिका। . . घर्षणं त्रिफलकाथपीतेन लवणेन वा ४३॥ गोखराश्वष्टिदशमाः शंखःफेनः समुद्रजः।
अर्थ-कालीमिरच, पीपल, सिरस का वर्तिरर्जुनतोयेन हृष्टशुक्रकनाशिनी । फल, सेंधानमक इनसे अथवा त्रिफला के ____अर्थ-गौ, गवा, घोडा, ऊंट इनके दांतकाढे में मिले हुए सेंधेनमक से नेत्रको फुली और शंख तथा समुद्रफेन इनको पीसकर पर रिगडना चाहिये ।
अर्जुन के रस में बत्ती बनाकर लगाना फुलीपर अजन ।
| हृष्ट शुक्र को दूर करदेता है। कुर्याईजनयोगी वा श्लोकार्धगदिताविमौ ।
शुक्र का लेखन । शंखकोलास्थिकतकद्राक्षामधुकमाक्षिकैः ।। उत्सन्नं वासशल्य वाशुक्रबालादिभिर्लिखेत् सुरादतार्णवमलैः शिरीषकुसुमान्वितैः ।। | अर्थ-उठे हुए और शल्ययुक्त शुक्र को ___ अर्थ-शंख, बेरकीमुठली,निर्मली, राख, | बाल और शाकपत्रादि से लेखन करे । 'मुलहटी और सौनामाखी अथवा सुरा,गजा- सिराशुक्र को चिकित्सा ॥ दि पशुओं के दांत,समुद्रफेन और सिरसके शिराशुक्रे त्वदृष्टिनेचिकित्साबणशुक्रवद फूल । आधे आधे श्लोक में कहे हए इन अर्थ-दृष्टिका नाश न करने वाले सिस दो अंजनों को तयार करके फुली पर शुक्र की चिकित्सा व्रणशुक्र की तरह करनी रिगडे ।
| चाहिये ।
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