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(७८८)
- अष्टांगहृदय ।।
अ०.१३
उष्णविदग्धा, और अम्लविदग्धा दृष्टिरोग | यष्टीमधुकसंयुक्तां मधुना च परिप्लुताम् । जाते रहते हैं।
मासमेकं हिताहारः पिबन्नामलकोदकम् । त्रिफला घृत । सौपर्ण लभते चक्षुरित्याह भगवानिमिः । त्रिफलाष्टपलं काथ्यं पादशेष जलाढके।। अर्थ-त्रिफलाघृत में त्रिफला, मुलहटी तेन तुल्यपयस्केन त्रिफलापलकल्कवान् । और मधु मिलाकर रात्रिमें चाटै, हितकारी अर्धप्रस्थो घृतात्सिद्धः सितयामाक्षिकेण वा भोजन अामले का रसपान करता रहे, इस युक्तं पिबेत्तत्तिमिरी तद्यक्तं वा वरारसम् । अर्थ-त्रिफला आठ पलको एक आढक
तरह एक महिने तक इस प्रयोग के करने जलमें औटावे, चौथाई शेष रहने पर उतार
से मनुष्य की दृष्टि गरुड की सी हो जाती
है। यह निमिमुनि का अनुभूत प्रयोग है । कर छानले, फिर इसके समान दूध त्रिफला
तिमिररोग पर त्रिफला। का कल्क एक पल, आधा प्रस्थ घृत इन
ताप्यायोहेमयष्टयाइसिताजीर्णाज्यमाक्षिकैः सबको पाकबिधि के अनुसार पकाकर खांड
संयोजिता यथाकामं तिमिरघ्नी घरा वरा । वा शहत के साथ पानकरे तो तिमिररोग अर्थ-सौनामाखी, लोह, सुवर्ण, मुलहटी जाता रहता है, तथा दोषदूष्यादि के अनु-मिश्री, पुराना घी, और शहत इनमें त्रिफला सार इस घृत को त्रिफला के काढेके साथ मिलाकर यथेच्छ सेवन करने से तिमिर नष्ट सेवन करे। यह त्रिफलात कहलाता है। होजाता है, यह प्रयोग बहुत उत्तम है । . महात्रफल घत ।
अन्य प्रयोग। यष्टीमधुद्विकाकोलीव्याघ्रीकृष्णामृतोत्पलः। सघृतं वा वराकाथं शीलयेत्तिमिरामयी । पालिकः ससिताद्राक्षश्रुतप्रस्थं पचेत्समैः । अपूपसूपसक्तन्वा त्रिफलाचूर्णसंयुतान् । खजाक्षीरवरावासामार्कवस्वरसैः पृथक् १३ अर्थ-तिमिररोगी को उचित है कि महात्रफलमित्येतत्परं दृष्टिविकाराजित् ।।
त्रिफला के काढे में घृत मिलाकर सेवन अर्थ-मुलहटी, काकोली, क्षीरकाकोली,
करने का अभ्यास करे | अथवा त्रिफलाका कटेरी, पीपल, गिलोय, नीलोत्पल, मिश्री
चूर्ण मिलाकर मालपुआ, दाल और सत्तू और दाख इनको एक एक पल लेकर कल्क
का सेवन करे । कर लेवे । तथा बकरी का दूध, त्रिफला का
तिमिररोग में पायस । काढा, अडूसे का रस तथा भांगरे का रस
पायसं वा वरायुक्तं शीतं समधुशर्करम् । एक एक प्रस्थ लेकर इसमें एक प्रस्थ घी को प्रातर्भक्तस्य या पूर्वमधात्पथ्यां पृथक पृथफू पाकविधि के अनुसार पकावे, इसके सेवनसे मृद्धीकां शर्कराक्षौद्रैः सततं तिमिरातुरः॥ दृष्टिविकार नष्ट हो जाते हैं । इस घृत को अर्थ-प्रात:काल के समय त्रिफला डाल महात्रैफल घृत कहते हैं।
| कर दूध की खीर को ठंडी करके शहत गारुडीदृष्टि प्राप्तकरने का अवलेह । और खांड मिलाकर सेवन करे, अथवा फलेनाथ हविषा लिहानत्रिफलां निशि।। भोजन करने से पहिले हरङ वा मुनका
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