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ये सब निषादगृहीत मनुष्य के लक्षण जा
चाहिये |
औकिरण के लक्षण | चितमुदकं चान्नं त्रस्तालोहितलोचनम् । उग्रवाक्यं च जानीयान्नर मौकिरणादितम् । अर्थ- जल और भिक्षा मांगते फिरना, त्रस्त और लोहित वर्ण नेत्रों का होना, उत्र वाक्य कहना ये सब लक्षण औकिरण गृहीत के होते हैं ।
अष्टांगहृदय |
वेतालगृहीत के लक्षण | गंधमाश्यरति सत्यवादिनं परिवेपिनम् । बहुच्छिद्रं च जानीयाद्वेतालेन वशीकृतम् ।
अर्थ- सुगंधित द्रव्य और फुटाओं का धारण करना, सत्य बोलना, कांपना, और बहुत से व्यसनों में आसक्त होना ये सब वेतालगृहीत के लक्षण हैं । पितृगृह के लक्षण |
अप्रसन्नदृर्श दीनवदनं शुष्कतालुकं । चलन्नयनपक्ष्माणं निद्रालु मंदपावकं ४१ अपसव्यपरधान तिलमांसगुडप्रियम् । स्खलद्वाचं जानीयात् पितृग्रहवशीकृतम् ।
अर्थ - दृष्टिमें अप्रसन्नता, मुखपर मलीनता, तालुका सूखना, नेत्र और पलकों का चंचल होना, निद्रालु न रहना, अग्निमांद्य, उलटे वस्त्र पहरना, तिल मांस और गुड का भोजन करना, मुख से टूटते हुए शब्द कहना, ये सब पितृग्रह गृहीतके लक्षण होते हैं ।
सामान्य लक्षण |
गुरुवृद्धार्यसिद्धाभिशापचितानुरूपतः । व्याहाराहारचेष्टाभिर्यथास्वं तदहं वदेत् अर्थ- - गुरु, वृद्ध, ऋषि और सिद्ध नो के अभिप्राय और चिंतानुरूप आहार विहार
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और चेष्टाओं द्वारा यथायोग्य ग्रहों के लक्षण जानने चाहियें ।
अ० ५
असाध्य लक्षण । कुमारवृंदानुगतं नामुद्धतमूर्धजम् । अस्वस्थ मनसं दैर्ध्यकालिकं तं ग्रह त्यजेत् अर्थ- ग्रह से आक्रांत मनुष्य यदि बा लकों के पीछे दौड़े, नंगा होजाय, मस्तक के बालों को खोलकर घुमावै, चित्तमें बेचैनी हो, और रोग देह में दीर्घ काल से व्याप्त हो गया हो तो जान लेना चाहिये कि यह रोगी असाध्य है | इतिश्री अष्टांगहृदयसंहितायां भाषाटीकान्वितायां उत्तरस्थाने भूतविज्ञानीयो नाम चतुर्थोऽध्यायः ।
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पंचमोऽध्यायः
tersतो भूतप्रतिषेधं व्याख्यास्यामः
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अर्थ - अब हम यहां से भूनप्रतिषेध नामक अध्याय की व्याख्या करेंगे । अहिंसक भूतोंका उपाय 1 भूतं जयेदहिंसेच्छं जपहोमबलिव्रतैः ! तपः शीलसमाधानज्ञानदानद यादिभिः १ अर्ध-अहिंसा की इच्छा न रखने वाले भूत को जप, होम, बलिदान, वृत, तप, शील, समाधान, ज्ञान, दान और दया आदि के करने से शांत करने का उपाय करे । ग्रहनाशक प्रयोग । हिंगुव्योपाल नेपाली लशुनार्कजटाजटाः । | अजलोमी सगोलोमी भूतकेशी चंचा लता