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( ७४४) अष्टांगहृदय ।
अ०४ और वह दुरात्मा, गुरुदेव और द्विजद्वेषी, | रहस्यभाषिणं वैद्यद्विजातिपरिभाविनम् । निर्भय, मानी, शूर, क्रोधी, व्यवसायी, | अल्परोष हतगति विद्याद्यक्षगहीतकम् । मद्यपी और मांसभक्षी होजाता है, तथा ___ अर्थ-आंखों में पानी भरना, आंखों का अपने को रुद्र, स्कंद, विशाख और इन्द्र | भयान्वित और लाल होना, शरीर में सुगंकहने लगता है ।
धि आना, तेज होना, नाचना, बातचीत ___ गंधर्वग्रह के लक्षण । | कहना सुनना, गाना, स्नान करना, माला धास्वाचारं सुरभि दृष्टं गीतनर्तनकारिणम् ।। रण करना, चंदन लगाना, मछली के मांस स्नानोद्यानरुचि रक्तवनमाल्यानुलेपनम् ॥ | में रुचि, हर्षित होना, संतुष्ट होना, अव्यय शंगारलीलाभिरतं गंधर्वाध्युषितं वदेत् ।
बल धारण करना, हाथ आगेको बढाकर अर्थ-गंधर्व प्रहसे आक्रांत मनुष्य अपने कर्तव्यकर्ममें परायण, सुगंधि युक्त प्रफुल्लित,
कहना कि किसको क्या दूं, गूढ बातोंका क. गाने नाचने में तत्पर, न्हाने में रुचि, रखने
हना, वैद्य और ब्राह्मण का तिरस्कार करना, वाला बाग बगीचे की सैर में दत्त चित्त. अल्पक्रोध करना, और सीधीगति से न चलाल वस्त्र लाला माला और रक्तचंदन इनका लना ये सब लक्षण यक्षग्रह के आक्रमण में धारण करना, शंगार करना, क्रीडा में तत्पर
होते हैं। इन लक्षणों से युक्त हो जाता है ।
ब्रह्मराक्षस के लक्षण । . सर्वग्रह के लक्षण ।
हास्यनृत्यप्रियं रौद्रचेष्टं छिद्रप्रहारिणम् । रकाशं क्रोधनं स्तब्धष्टि वक्रगति चलम। आक्रोशिमं शीघ्रगति देवद्विअभिषगद्विषम् श्वसंतमनिशं जिहालालिनं सृकिर्णालिहम् ।
आत्मानं काष्टशस्त्राद्यैर्नतं भोःशब्दवादिनम् प्रिय दुग्धगुडस्रानमधोवदनशायिनम् २०॥
शास्त्रवेदपठं विद्याद् गृहीतं ब्रह्मराक्षसैः । उरगाधिष्ठितं विद्यात्रस्यंत चातपत्रतः। अर्थ-ब्रह्मराक्षस से आक्रांत मनुष्य हैं___ अर्थ-लाल आंख, क्रोधी स्वभाव, दृष्टि सने लगता है, नाचनेलगता है, उसकी में स्तब्धता, चालमें टेढापन, चंचलता, नि | चेष्टा भयानक होजाती है, तथा छिद्रप्रहारी, रंतर श्वासप्रश्वास, जीभसे लार गिरना, ओ. आक्रोशी, शीघ्रगामी, देवद्वेषी, द्विजद्वेषी, ष्ठ के अग्रभागों का चाटना, दूध और गुड | वैद्यद्वेषी, शस्त्र और लाठी से आत्मघाती, से प्रेम, स्तनमें रुचि, ओंधे मुख सौना, छ- | भो भो शब्दका उच्चारण, शास्त्र और त्री से डरना ये सब लक्षण उस मनुष्य के | वेदपाठ इन लक्षणों से युक्त होता है । होते हैं जो सर्वग्रहों से आक्रमित होता है । | पिशाचगृहीतके लक्षण । यक्षग्रह के लक्षण ।
सक्रोधाष्टिं भकुटिमुहंतं ससंभ्रमम् २६ विप्लुत प्रस्तरक्ताक्षं शुभगंधं सुतेजसम् । प्रहरंतं प्रधावंतं शब्दतं भैरवाननम् २७ प्रियनृत्यकथागीतस्नानमाल्यानुलेपनम् । | अन्नाद्विनापि बलिनं नष्टनिद्रं निशाचरम । मत्स्यमांसरुचिं दृष्टं तुष्टं बलिनमव्ययम् २२ | निर्लज्जमशुचिं शूरं करं परुषभाषणम् । चलितानकरं कस्मै किं वदामीति वादिनम् | रोषणं रक्तमाल्यस्त्रीरक्तमद्यामिषप्रियम् २८
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