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अ० ३
( ७३९ )
अर्थ-ज - जब बालक वा बडा हिंसात्मक प्रहों द्वारा आक्रमित होता है तब उसकी नाक में से जल बहने लगता है । जिह्वा में घाव हो जाते हैं, बुरी तरह कराहता है, अपने को असुखी कहने लगता है, नेत्रोंमें जल भरता है, विवर्णता, बोली में झीनापन, और दुर्गंधि पैदा हो जाती है क्षीण होजाता है, अपने मलमूत्र को आपही कुरेदता है निंदित नहीं समझता है । क्रुद्ध हो दोनों हाथों को उठाकर अपने तई वा औरों को मारता है, इसी तरह शस्त्र वा लाठी से भी करने लगता है । जलती हुई अग्नि में घुस पडता है, पानी में डूबता है, कुए में गिरता है या और भी ऐसे ही काम करता है, तृषा, दाह, प्रमोह, से पीडित होता है । राधकी वमन करता है । और संपूर्ण स्रोतों द्वारा रुधिर निकलने लगता है । ऐसे अरिष्ट लक्षणों से आक्रान्त रोगी को त्याग देना चाहिये ।
शुष्करेवती द्वारा बध |
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भुजtarsi बहुविधं यो बालः परिहीयते तृष्णागृहीतक्षामाक्षी हंति तं शुष्करेवती । अर्थ- जो बालक अनेक प्रकार के भो जन करते करते भी क्षीण होता चला जाता है और प्यासकी अधिकता से जिसकी आंखों पर क्षीणता होती चली जाती हैं उस बालक को शुल्करेवती नामक ग्रह मार डालता है ।
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उत्तरस्थान भाषाटीकासमेत ।
खाता
वर्ण में
देहमें
aah बाल झडजाते हैं, अन्न नहीं है, स्वर में झीनापन और शरीर के विकृति होजाती है, रोता है, जिसके fra की सी गंध आने लगती है, जो रोग बहुत पुराना पडजाता है, जिसके उदर में गोल गोल गांठ पैदा हो जाती हैं, विष्टा का रंग अनेक प्रकार का होजाता है जीभ बीचमें नीची पडजाती है और तालु श्याववर्णता होजाती है । ऐसा बालक असाध्य होजाता है ।
ग्रहग्रहण के लक्षण । हिंसारत्यर्थनाकांक्षा ग्रहणकारणम् । अर्थ-हिंसा, रति और अर्चनाकांक्षा इन तीन कारणों से ग्रह बालक पर आक्रमण किया करते हैं ।
रतिकामी ग्रहों के लक्षण । रहः स्त्रीरतिसंलापगंधस्रग्भूषणप्रियः ३७ दृष्टः शांतश्चदुःसाध्यो रतिकामेन पीडितः
माला
अर्थ - रतिकामी ग्रहों से पीडित रोगी एकान्त में स्त्रियों के साथ रमण और वार्तालाप में प्रवृत होता है । सुगंधित द्रव्य, और आभूषणादि से प्रेम रखता है, प्रफुल्लित चित्त और शांत रहता है । रतिकाम से पीडित रोगी दुःसाध्य होता है ! अर्चाकामी ग्रहों के लक्षण | दीनः परिमृशेद्वक्त्रं शुष्कोष्टगलतालुकः । दाहमोहान् पूयस्य छर्दनं च प्रवर्तयेत् शंकितं वीक्षतेरोति ध्यायत्यायातिदनि ताम् एकं च सर्वमार्गेभ्यो रिष्टात्पत्तिश्च तं त्यजेत् | अन्नमन्नाभिलाषेऽपि दत्तं नाति बुभुक्षते ।
हिंसात्मक ग्रहके लक्षण | सत्र हिंसात्मकेवालोमहान वास्तुतनासिकः । क्षतजिह्वः क्वणेद् घाढमसुखी साधुलोचनः दुर्वणों हीनवचनः पूतिगंधिश्व जायते । क्षामो मूत्रपुरीषं स्वं मृङ्गाति न जुगुप्सते । हस्तौ चोयम्यसंरब्धोहंत्यात्मानं यथापरम् तद्वश्च शस्त्र काष्ठाद्यैर वा दीप्तमाविशेत् । अप्सु मत्पतेत्कूपे कुर्यादन्यच्च तद्वियम् ।
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