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अष्टांगहृदय।
गृहीतं बलिकामेन तं विद्यात्सुखसाधनम् ।। में रक्खे । भूति औषध के पत्ते, फूल और __अर्थ-जब ग्रह अपनी पूजा कराने की | वीज. अन्न तथा सरसों उस घर में बखेर कामना से आक्रमण करते हैं तब बालक देनी चाहिये । राक्षसों का नाश करनेवाला दीन होकर अपने हाथों से मुखको मलता है तेल दीपक में भरकर जलावे जिससे पापों उसके ओष्ट, तालु और कंठ सूख जाते हैं।
का क्षय हो । रोगी का परिचारक स्त्रीसंगम शंकित चित्त होकर चारों ओर देखने लगता
मद्यपान, मांसभक्षण का परित्याग कर देवे। है, रोता है, ध्यान में बैठ जाता है, दीनता
पुराना घी देह पर लगाकर खरैटी, नीमके प्राप्त कर लेता है, भोजन की इच्छा होनेपर |
पत्ते, जैती, अमलतास, इन द्रव्यों से सिद्ध भी खाता नहीं है ऐसा रोगी सुखसाध्य होताह किये हुए सुहाते हुए गरम पानी से बारक उक्तरोगों की चिकित्सा।
| को स्नान कगवै अथवा नीम, सौनापाठा, इंतुकामं जयेद्धोमैः सिद्धमंत्रप्रवर्तितैः ४० इतरौ तु यथाकाम रतिबल्यादिदानतः ।।
जामन, बरना, कटतृण, ब्राह्मी, ओंगा, अर्थ-हिंसात्मक ग्रहों को वेदोक्त मंत्रों द्वा
पाटला, मीठा सहजना, काकजंघा महाश्वेत, रा होमादि से जय करे । तथा रतिकामी कैथ, बटादि दूधके वृक्ष कदव और कंजा अर्चाकामी होको यथाभलषित रतिप्रदान | इन द्रव्यों के जल से स्नान करावे । तत्पऔर बलिप्रदानादि से जीतने का उपाय करे । श्चात् गेंडा, व्याघ्र, सर्प, सिंह, रीछ, इनके धूपन विधि।
चमडों में घी मिलाकर धूनी देवै । अथ साध्यग्रहं बालं विविक्ते शरणे स्थितम् |
अन्य धूप । त्रिरह्नः सिक्तसंसृष्टे सदा सनिहितानले ।।
पूतीदशांगीसिद्धार्थवचाभल्लातदीप्यकैः ४७ विकीर्णभूतिकुसुमपत्रबीजान्नसर्षपे ४२ ॥ | सकुष्ट स्त
| सकुष्टैः सघृतै—गः सर्वत्रहविमोक्षणः ।।
र रक्षाध्नतैलज्वलितप्रदीपहतपाप्मनि। अर्थ-कंजा, दशांग, सरसों, बच भि. व्यवायमद्यपिशितनिवृत्तपरिचारके ॥ ४३ लावा, अजवायन और कूठ इनमें घी मिला पुराणसर्पिषाभ्यक्तं परिषिक्तं सुखांबुना। | कर धूप देने से संपूर्ण ग्रहों की शांति हो साधितेन पलानिंबवैजयंतीनृप्रदुमैः ४४ ॥ जाती है। पारिभद्रककयगजंबूवरुणकतृणैः ।।
दशांग धूप। कपोतवंकापामार्गपाटलामधुशिय॒भि ४५॥ वच.हि विडंगानि सैंधवं गजपिप्पली ४८ काफजंघामहाश्वेताकपित्थक्षीरवादपैः। सकइंबकरंजैश्च धूपं सातस्य चाचरेत् ॥
| पाठा प्रतिविषाव्योष दशांगः कश्यपोदितः द्वीपिव्याघ्राहिसिंहह्मचर्मभिघृतमिश्रितैः।
__ अर्थ-बच, हींग, बायविडंग, सेंधा अर्थ- जो बालक साध्य ग्रहों से आक्रांत
नमक, गनपीपल, पाठा, अतीस और त्रि.
| कुटा इन दस द्रव्यों की धूनी को दशंग हो उसे जनशून्य स्थान में रखना चाहिये। उस घर में प्रतिदिन तीन बार प्रोक्षण और
कहते हैं, यह कश्यप की बनाई हुई है ।
__ अन्य धूप । सफाई करनी चाहिये । सदा अग्नि पास ! सर्षपा निधपत्राणि मूलमश्वखुरा वचा ।
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