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अष्टांगहृदय ।
अ० १.
शिरास हपिचुना प्राश्यं चास्य प्रयोजयेत् | तीसरे दिन वा कभी चौथे दिन स्तन्य की हरणमात्रं मेधायुर्वलार्थमभिमंत्रितम् ॥८॥ प्रवत्ति होती है । पेंद्रीब्राह्मीवचाशंखपुष्पीकहकं घृतमधु।। - अर्थ-तदनंतर दाहिने हाथ की तर्जनी बालक का प्रथम दिनका वर्तन । उंगली से बालक के तालु को ऊंचा करके
प्रथमे दिवसे तस्मात्रिकालं मधुसर्पिषी १२
अनंतामिश्रिते मंत्रपाविते प्राशयेच्छिशुम् । सिर पर तेल का भीगा हुआ कपडा रखदे
____ अर्थ-इसलिये प्रथम दिन तीनों काल इसके पीछे इन्द्रायण, ब्राह्मी, बच और
में अर्थात् प्रातः मध्यान्ह और सायंकाल में शंखपुष्पी इनका कल्क घी और शहत मि.
दरालभा में शहत और घी मिलाकर बालक लाकर पूर्वोक्त मंत्र से अभिमंत्रित कर के
को चटावै। छोटी मटर के बराबर बालक को चटावे,
दूसरे तीसरे दिनकी बिधि । इससे बालककी बुद्धि और आयु बढतीहै। द्वितीये लक्ष्मणसिद्धं तृतीये च घृतं ततः१३ अन्य अवलेह ।
प्राइनिषिद्धस्तनस्यास्यतत्पाणितलसम्मितम् पामीकवचाब्राह्मीताप्यपथ्या रजीकृताः९ स्तन्यानुपानं द्वौ कालौ नवनीतं प्रयोजयेत् लियान्मधुघृतोपेता हेमधात्रीरजोऽथवा । अर्थ-दूसरे और तीसरे दिन लक्ष्मणा
अर्थ-सुवर्ण, बच, ब्राह्मी, चांदी और से सिद्ध किया हुआ घी तीनों काल में हरीतकी इनका बहुत महीन चूर्ण, अथवा चटावै । प्रथम जिसको दूधका निषेध किया सुवर्ण और आमले का चूर्ण शहत और घी | गया है उस बालक की हथेली के समान मिलाकर बालक को घटावै ।
नौनी धी दोनों समय देकर ऊपरसे स्तन्य. गर्भाभ की वमन । पान का अनुपान करावै । गोभः सैंधवबता सर्पिषा वामयेत्ततः ।
उत्तमस्तन्य का प्रकार । अर्थ-तदनंतर सेंधा नमक और घी मातुरेव पिबेत्स्तन्यं तत्परं देहवृद्धये । मिलाकर देने से गर्मजल को वमन द्वारा स्तन्यधात्र्यावुभे कार्य तदसंपदि वत्सले । निकालदे ।
| अव्यंगे ब्रह्मचारिण्यौ वर्णप्रकृतितःसमे ।
नीरजे मध्यवयसौ जीवद्वत्से न लोलुपे। बालक का जातकर्म ।
हिताहारविहारेण यत्नादुपचरेषते । प्राजापत्येन विधिना आतकर्माणि कारयेत्
___ अर्थ-बालक को माता का ही दूध ... अर्थ-सदनंतर वेदोक्त रीति से गृह्यसूत्र
| पीना चाहिये क्योंकि यह बालककी देहको की विधिपूर्वक बालक का जातकर्म करावै। स्तन्यप्रवर्तन में हेतु ।
पुष्ट करने में परमोत्तम है । किसी कारण सिराणां हृदयस्थानां षिवृतत्वात्प्रसूतितः
से माता का दूध न मिले तो दूध पिलाने तृतीयेऽह्नि चतुर्थे वा स्त्रीणां स्तन्यं प्रवर्तते | वाली दो धाय नियत करनी चाहिये, ये
अर्थ-प्रसवके कारण से स्त्रियों की | धाय बालक पर स्नेह करनेवाली हो तथा दपस्थ सिरा निवृत होजाती हैं, इसलिये | वात्सल्यभाव रखती हों । उनके अंग में
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