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( ७०२ )
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अष्टांगहृदय |
बलादि निरूहण | चलापढोली लघुपंचमूलशायन्तिकैरंडयवात्सुसिद्धात् । प्रस्थो रसाच्छागरसार्धयुक्तः साध्यः पुनः प्रस्थ समः स यावत् ॥ ५ ॥ प्रियंगुकृष्णा घनकल्कयुक्तः सतैलसर्पिर्मधुसैंधवश्च । स्याद्दीपनो मांसवलप्रदश्च चक्षुर्बलं चोपदधाति सद्यः ॥ ६ ॥ अर्थ - खरैटी, पर्व, लघु पंचमूल, त्रायमाण, अरंड, और जौ इनका काढा एक प्रस्थ और बकरे के मांसका रस एक प्रस्थ इन दोनों को मिलाकर पकावे जब एक प्रस्थ रहजाय, तब उतार ले । फिर इसमें प्रियंगु, पीपल और मोथा इनका कल्क तथा तेल, घी और सेंधानमक डालकर वस्तिका प्रयोग करे । यह अग्निसंदीपन, पुष्टिकारक, वलवर्द्धक और आंखों की ज्योति को बढानेवाला है |
अन्य प्रयोग |
ऍडमूलात्रिपलं पलाशातथा पलांशं लघु पंचमूलम् । रास्नाक्लाछिन्नरुहाभ्वगंधापुनर्नवारग्वधदेवदारु ॥ ७ ॥ फलानि चाऽष्टौ सलिलाढकाभ्यां बिपावयेदष्टमशेषितेऽस्मिन् । वचाशताह्वाहपुषाप्रियंगुयष्टकिणावत्सकवीजमुस्तम् ॥ ८ ॥ दद्यात्सुपिष्टं संहताक्ष्य शैलमक्षप्रमाणं लवणांशयुक्तम् । समाक्षिकस्तैलयुतः समूत्रो वस्तिर्जयेल्लेखनदीपनोऽसौ ॥ ९ ॥ घोरुपादत्रि कपृष्ठ कोष्ठहृद्गुह्यलं गुरुतां विबंधम् ।
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अ० ४
गुल्माश्वर्मग्रहणीगुदोत्थांस्तांस्तांश्च रोगान्कफवातजातान् ॥ अर्थ - अरंड की जड तीन पल, केसू तीन पल, लघुपंचमूत्र एक पल, रास्ना, खरैटी, गिलोय, असगंध, सांठ, अमलतास और देवदारू प्रत्येक एक पल, मेनफल आठ नग इन सबको एक आढक जल में पकावे जब अष्टमांश शेष रहे तब उतार कर छान ले। फिर इसमें बच, सौंफ, हा ऊबेर, प्रियंगु, मुलहटी, पीपल, इन्द्रजौ, मोथा और रसौत प्रत्येक एक तोला, सेंधानमक चौथाई कर्ष, इन सबको बारीक पीसकर डालदें, फिर इसमें शहत, तेल और गोमूत्र भी मिलाकर वस्ति की कल्पना करे ।
पित्तरोगनाशनी वस्ति । यष्टयाह्वरोध्राभय चंद नैश्च शृतं पयोग्यं कमलोत्पलैश्च । सशर्कराक्षौद्रघृतं सुशीतं पित्तामयान्हंति सजीवनीयम् ॥ ११ ॥ अर्थ- मुलहटी, लोध, खस, चंदन, कमल और नीलोत्पल इनको डालकर औटाया हुआ दूध इसमें जीवनीयगणोक्त द्रव्यों का कल्क डालै, तथा ठंडा होने पर घी, शहत और खांड मिलाकर वस्तिं देवे, इससे सब प्रकार के पैत्तिक रोग नष्ट होजाते हैं ।
अन्यवस्ति ।
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रास्त्रां वृषं लोहितिकामनंतां बलां कनीयस्तृणपंच मूल्यौ । गोपांगनाचंदनपद्मकर्धीयष्टाधाणि पलार्धकानि ॥ १२ ॥ निःक्काथ्य तोयेन रसेन तेन तं पयोर्धाढकहीनम् ।