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अ० १४
चिकित्सितस्थान भाषाकासमेत ।
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विबद्धता हो तो गरम दूधके साथ जौ के | श्वित्रकुष्ठ, प्लीहा, उन्माद, ये रोग दूर-हो पदार्थ अथवा अधिक स्नेह और अधिक | जाते हैं | इस घी का नाम नीलिनी धृतहै। नमक स युक्त कुल्माष (जो और चना | गुल्म पर कुक्कुटादि । आदि की धूधरी ) खाने को दे । कुकुरराश्च मयूराश्च तित्तिरिक्रौंचवर्तकाः । अन्य घृत ।
शालयो मदिराःसर्पितगुल्मचिकित्सितम् नालिनीत्रिबृतादतीपथ्याकंपिल्लकैः सह ॥ ।
अर्थ-मुर्गा, मोर, तीतर, बगुला,वतक समलाय घृतं देयं सविडसारनागरम् । इनका मांस, शालीचांबल, मदिरा और घी
अर्थ-नीलिनी, निसोथ, दंती, हरड | ये सब वातगुल्म की औषध हैं। और कबीला, विडनमक, जवाखार और
पथ्यविधि । सोंठ इनके साथ घृत पान करने से मलयुक्त | मितमुष्णं द्रव स्निग्धं भोजनं धातगुल्मिनाम् गुल्म नष्ट होजाता है।
समंडावारुणी पानं तप्तं वा धान्यकैलम्।
___ अर्थ-वातगुल्मरोगी के लिये गरम,पतनीलिनी घृत। नीलिनी त्रिफलां रानां वलां कटकरोहिणीम ला, स्निग्ध और प्रमाणानुसार भोजन तथा पचेद्विडंगं व्याघ्री च पालिकानि जलाढके ।। मंडके साथ वारुणी नामक मद्य, अथवा रसेऽष्टभागशेषं तु घूतप्रस्थं बिपाचयेत् ॥ धनिये का काढा पीने की देवै । दनः प्रस्बेन संयोज्य सुधाक्षीरपलन च।।
पैत्तिक गुल्म में विरेचन । ततोघृतपलं दद्याद्यवाग्मडमिश्रितम् ॥ जीर्णे सम्यग्विरिक्तं च भोजयेद्रसभोजनम् ।
निग्धोष्णेनोदिते गुल्मे पैत्तिके वसनं हितम गुल्मकुष्ठोदरत्यंगशोफपांइबामयज्वरान् ॥
द्राक्षाऽभयागुडरसं कंपिल्लं वा मधुद्धतमा श्वित्रं प्लीहानमुन्माद हत्यतं नीलिनीघृतम् ।
कल्पोनं रक्तपित्तोक्त अर्थ-नीलिनी, त्रिफला, रास्ना, खरैटी
___अर्थ-पैतिक गुल्म यदि चिकने और
गरम पदार्थों के सेवन से हुआ हो तो दाख कुटकी, बायविडंग, और कटेरी इन सब
हरड और गुडके रस द्वारा, अथवा मधुको एक एक पल लेकर एक आढक जल
मिश्रित कवीले द्वारा अथवा कल्पस्थानोक्त में पकावै, जब अष्टमांश शेष रहै तब उतार
वा रक्तपित्तोक्त विरेचन देना हितकारीहै। कर छानले । फिर इस काथ में एक प्रस्थ घी, एक प्रस्थ दही, सेंहड का दूध एक
पित्तगुल्म में संशमन ।
गुल्मे रूक्षोष्णजे पुनः ॥ ६१॥ पल, इन सबको अग्नि पर धरकर पकावै
परं संशमनं सर्पिस्तितं वासावृतं शृतम्। इस घृत में से एक पल लेकर यवागू वा |
तृणाख्यपंचककाथे जीवनीयगणन पा॥ . मंडके साथ पीबै । घी के पचने और घी | शतं तेनैव वा क्षीरं न्यग्रोधादिगणेन वा। से अच्छी तरह विरचन होने पर मांसरस अर्थ -यदि गुल्म रूक्ष और उष्ण पदार्थों के साथ भोजन करावै । इससे गुल्म, कुष्ठ | के सेवन से हुआ हो तो कुष्ठचिकित्सित्रोक्त उदररोग, व्यंग शोफ, पांडुरोग, उबर, | तिक्तक घी, वासा घी, अथवा तृणपंचकके
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