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(६७४}
अष्टांगहृदय ।
अ०२१
भेडस्य समतं तैलें तत्कृच्छ्राननिलामयान् ॥ रहजाय तब दही का तोड ईखका रस,कांजी घातकुंडलिकोन्मादगुल्मवादिकान् जयेत् | और तेल एक एक आढक डालै, बकरीका ___ अर्थ-कुरटं के एक तुला काढे में एक
दूध आधा आढक मिलावे । फिर इस में भाढक तेल, दसपल मूली का कल्क और
कचूर, सरलकाष्ठ, देवदारु, इलायची,मजीठ, चार आढक दूध डालकर पाक की रीति |
अगर, चंदन, पद्माख, अतिबला, मोथा, से पकायै । अथवा पूर्वोक्त सहचरी के काढे
सूपपर्णी, हरेणु, मुलहटी, सुरस, व्याघ्रनख, में तगर, वच, शालपर्णी, कुडा, देवदारु,
जीवक, ऋषभक, केशू, रसौत, कस्तूरी, इलायची, बालछड, शिलाजीत, सोंफ, लाल
नीलिका, जावित्री, ब्राह्मी, केसर, शिलाजीत चंदन इनको डालकर तेलको पकावै, इसमें
चमेली, कायफल, नेत्रबाला, दालचीनी, अठारह पल खांड मिलादे । यह तेल कष्ट.
कुंदरु, कपूर, शिलारस, श्रीवेष्ट, लोंग,नखी, साध्य वातरोग, वातकुंडलिका, उन्माद,
कंकोल, कुडा, जटामांसी, प्रियंगु, गाजर, गुल्म वर्म आदि रोगों को जीत लेता है ।
तगर, रोहिषतृण, बच, मैनफल,. कैवर्तक यह तेल भेड मुनि का लिखा हुआ है।
मोथा, नागकेसर प्रत्येक एक पल इन का बला तेल ।
कल्क डालकर पाकविधि से पाक करै । वलाशतं छिन्नरुहापादं रास्नाष्टभागिकम् ॥
फिर इसे उतार कर छानले और तेजपात जलाढकं शते पक्त्वा शतभागस्थित रसे। दधिमस्त्विक्षुनिर्यासशुल्कैस्तैलाढकं समैः॥
का चूर्ण मिलादे । यह तेल खांसी, श्वास पचेत्साजपयोर्धाशं कल्कैरोभिः पलोन्मतः। ज्वर, वमन, मूर्छा, गुल्म क्षत, क्षयी, प्लीह शठीसरलार्वेलामंजिष्ठागुरुचंदनैः॥ ७४॥ शोष, अपस्मार और अलक्ष्मी को दूर करता प्रनकातिबलामुस्ताशूर्पपर्णीहरेणुभिः ।
है । तथा सब प्रकार के वातरोगों को नष्ट यष्टयाह्नसुरसव्याघनखर्षभकजविकैः ॥ पलाशरसकस्तूरीनालिकाजातिकोशकैः। ।
कर देता है। स्पृकाकुंकुमशेलयजातिकाकट्फलांबुभिः॥
उक्त तेलोंका फल ।। त्वकुंदरुककर्पूरंतुरुष्कश्रीनिवासकैः ।
"पाने नस्यऽन्वासनेऽभ्यंजने च लवंगनखकंकोलकुष्टमांसीप्रियंगुभिः ॥ स्नेहा: काले सम्यगते प्रयुक्ताः। स्थोणेयतगरध्यामवचामदनकप्लवैः।
दुष्टान्वातानाशु शांति नयेयुसनागकेसरः सिद्धे दद्याचाऽत्रावतारिते ॥ ध्या नारी:पुत्रभाजश्च कुयुः ॥ ८१ ॥ पत्रकल्कं ततः पूतं विधिना तत्प्रयोजितम् ।।
अर्थ-ऊपर कहेहुए सब प्रकार के स्नेह कासश्वासज्वरच्छार्दमूछोंगुल्मक्षतक्षयान् ॥
उपयुक्त काल में पान, नस्य, अनुवासन और प्लीहशोषमपस्मारमलक्ष्मी च प्रणाशयेत् । बलातैलमिद श्रेष्ठ बातव्याधिविनाशनम् ॥
अभ्यंजन द्वारा प्रयोग किये जानेपर बिगडे . अर्थ-खरैटी १०० पल, गिलोय २५ हुए वातरोगों को शीघ्र नष्ट करदेते हैं, इस पल, रास्ना साढे बारह पल, जल सौ आ- के सेवन से बन्ध्या स्त्रीके भी पुत्र हो जाढक इनका काढा करै जब एक आढक शेष ता है ।
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